इस महाकवि की जाति का पता लगाने के लिए राज्य सरकार ने 14 सदस्यों की एक कमेटी गठित कर दी है।

संस्कृत में 'रामायण' लिखने वाले वाल्मीकि को ब्राह्मण बताने वाली एक किताब पर राज्य सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था।

इसके बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर इस कमेटी का गठन किया गया है।

लेकिन इस विवाद ने एक नया रूप इसलिए लिया है कि कुछ कन्नड़ लेखक इसे पिछड़े वर्गों से संबंधित महापुरुषों को ‘समाहित करने’ की कोशिश के रूप में देखते हैं।

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वाल्मीकि ब्राह्मण थे या फिर ओबीसी?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया।

जाने माने कन्नड़ साहित्यकार और आलोचक प्रोफ़ेसर मरुलासिडप्पा ने बीबीसी से कहा, “सरकार को इस क़िताब को नज़रअंदाज कर देना चाहिए था। आज कोई भी वाल्मीकि, व्यास या कालिदास की जाति का पता नहीं लगा सकता। उनके बारे में जो कुछ पता है, वो है लोगों का विश्वास, जिसे वे हज़ारों सालों से मानते चले आए हैं।”

लेकिन सरकार इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकी। ‘वाल्मीकि कौन है’ किताब जब छपी तो हंगामा खड़ा हो गया।

वाल्मीकि या बेडा समुदाय के लोगों ने धारवाड़ के प्रोफ़ेसर नारायणचार्य की लिखी इस क़िताब के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। इसके बाद सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया।

लेकिन किताब के प्रकाशक ने इस मामले में हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। अदालत ने कहा कि बग़ैर किसी जांच के प्रतिबंध नहीं थोपा जा सकता।

प्रोफ़ेसर मरुलासिडप्पा कहते हैं, “प्रोफ़ेसर नारायणचार्य ने अपनी किताब में यह साबित करने की कोशिश की है कि वाल्मीकि ब्राह्मण थे। लेकिन उनके जो श्लोक हैं, उसके मुताबिक़ भी वो वाल्मीकि या बेडा ही हैं। पर लेखक का कहना है कि इस महाकवि ने ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया था।”

जाति

वाल्मीकि ब्राह्मण थे या फिर ओबीसी?कन्नड़ के प्रोफ़ेसर और शोधकर्ता प्रोफ़ेसर मल्लिका घांटी वाल्मीकि के जन्म को लेकर हो रहे विवाद से हैरान हैं।

उनके मुताबिक़, “वाल्मीकि एक राष्ट्रीय कवि थे। वे एक महान कवि थे, जिन्होंने देश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पक्ष को अपनी रचना में जगह दी। हम इसकी व्याख्या कर सकते हैं और इसके सहारे हम आज के समाज के बारे में एक समझ बना सकते हैं।”

घांटी के अनुसार, “वाल्मीकि ने अपने समय की सामाजिक तस्वीर खींची है। मुझे नहीं लगता कि उस संदर्भ में, आज के दौर में उनके जन्म पर विचार करना वैज्ञानिक होगा।”

लेकिन दलित लेखक इंदुधारा होन्नापुरा का इस मामले को देखने का नज़रिए दूसरा है।

होन्नापुरा ने कहा, “यह कहना मूर्खता है कि वाल्मीकि ने ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया था। इसके बारे में वाल्मीकि ने रामायण में खुद लिखा है। यहां तक कि बासवाना ने वाल्मीकि के जन्म के बारे में लिखा है। लेकिन इस विवाद का कुछ और ही मतलब है।”

उनके मुताबिक़, सभी महापुरुषों को ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने का दावा करना, "साम्प्रदायिक समूहों का छिपा एजेंडा” है।

कन्नड़ कवि और नाटककार प्रोफ़ेसर केवाई नारायणस्वामी होन्नापुरा से सहमति जताते हैं। वे सांस्कृतिक इतिहास में इसे एक चलन के रूप में देखते हैं।

राजनीतिक एजेंडा?

वाल्मीकि ब्राह्मण थे या फिर ओबीसी?

प्रोफ़ेसर नारायणस्वामी कहते हैं, “पिछले दो दशकों से हम ऐसी कई घटनाएं देख रहे हैं। वाल्मीकि का मुद्दा तो अभी आया है, इससे पहले मुद्दा था कालिदास या कनकदास का। एक वर्ग कहता है कि इनमें से एक का उच्च जाति या ब्राह्मण समुदाय से संबंध है। इस वर्ग का तो यह भी कहना है कि कालिदास ने ब्राह्मण जाति में जन्म नहीं लिया होता तो उन्हें दुनिया देखने का वह नज़रिया नहीं मिलता या इतना बड़ा बौद्धिक क़द हासिल नहीं हुआ होता।”

यह क्या दिखाता है?

उनके मुताबिक़, “ग़रीब समुदायों से आने वाले महापुरुषों को अपने में मिला लेने की कोशिश का एक साफ चलन दिखाई देता है। यह मुद्दा दक्षिणपंथी दलों के राजनीतिक एजेंडे का एक हिस्सा है।”

हाई कोर्ट के निर्देश पर बनी कमेटी दो महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। उसके बाद ही इस विवाद पर कोई नया मोड़ आएगा।

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