रवांडा के साइकिलिस्ट एड्रियन नियोनशुटी ने साल 2007 से पहले ओलंपिक के बारे में सुना भी नहीं था.

लेकिन 2012 ओलंपिक में रवांडा की छह सदस्यों वाली टीम का प्रतिनिधित्व कर इतिहास रच दिया.

25 वर्षीय एड्रियन ने लंदन ओलम्पिक में एकल साइकिलिंग रेस में भाग लिया और उसे पूरा कर रेस में 39 वां स्थान हासिल किया. इसके बाद उन्हें खूब सराहना मिली.

'कैसे बनी टीम'

साइकिलिंग टीम के गठन की कहानी भी काफ़ी दिलचस्प है.

अमरीका के टॉम रिचे एक सफल बाइक डिजाइनर थे. लेकिन अपने ब्रेकअप के बाद वह परेशान थे.

इसी दौरान वह दो हफ्तों के एक बाइक टूर के सिलसिले में रवांडा गए. बस यहीं से जन्म हुआ रवांडा की ''वुडन बाइक क्लासिक'' रेस का, जिसने टॉम और एड्रियन दोनों की जिन्दगी बदल दी.

रवांडा के स्थानीय लोगों द्वारा चलायी जाने वाली लकड़ी की साइकिलों ने टॉम को इस रेस की शुरुआत करने की प्रेरणा दी.

इस रेस में अमरीका के बहुत से प्रतिभागियों को पछाड़कर रवांडा के एड्रियन ने रेस में पहला स्थान हासिल कर जीत दर्ज की.

बाइक डिजाइनर टॉम ने रवांडा में यह अनोखी बाइक डिजाइन की.

लकड़ी की साइकिल से ओलंपिक का शानदार सफ़र

लकड़ी की बनी इन साइकिलों को रवांडा में हर तरह के कामों में (भारी-भरकम सामान ले जाने में भी) इस्तेमाल किया जाता है.

'एड्रियन का करियर'

इसके बाद टॉम ने रवांडा की राष्ट्रीय टीम का गठन किया और टीम को प्रशिक्षित करने के लिये अमरीका से साइकिलिंग कोच जोनाथन बोयर (पूर्व अमरीकी साइकिलिस्ट) को भी बुलवाया.

एड्रियन भी टीम में बतौर सदस्य शामिल थे.

16 साल की उम्र में साइकिलिंग की शुरुआत करने वाले एड्रियन ने बीबीसी को दिये एक साक्षात्कार में कहा, ''ओलंपिक में अपने देश का प्रतिनिधित्व करना मेरे लिए बहुत गर्व की बात थी, यह एक सुखद अनुभव था.''

एड्रियन ने पांच साल तक 'टूर द रवांडा' रेस में टॉप टेन में जगह हासिल की. जबकि 2006 और 2010 में उन्होंने इस साइकिलिंग रेस को जीत पहला स्थान हासिल किया.

2010 और 2011 में वह रवांडा के 'नेशनल रोड रेस चैंपियन' भी रह चुके हैं.

'भाइयों की कमी'

एड्रियन के मुताबिक रवांडा की इन लकड़ी का साइकिलों की रेस होना बहुत ही सुखद था. इस तरह की कोई रेस पहली बार रवांडा में आयोजित हो रही थी.लकड़ी की साइकिल से ओलंपिक का शानदार सफ़र

एक बहुत पिछड़ा देश है, और यहाँ अधिकतर भारी-भरकम सामानों को ले जाने के लिये लकड़ी की इन बाइकों का इस्तेमाल होता है.

1994 में रवांडा में हुए संहार में एड्रियन ने अपने छः भाइयों को खो दिया था. इस बारे में पूछने पर एड्रियन का कहते हैं, ''मेरे लिये अपने भाइयों को खोना बहुत दर्दनाक था, ओलम्पिक में रेस के वक्त मुझे अपने भाइयों के अपने साथ न होने की कमी बहुत महसूस हुई. लेकिन वे हमेशा मेरे प्रेरणास्रोत रहे हैं.''

एड्रियन के मुताबिक लंदन ओलम्पिक का टिकट मिलना उनके परिवार के लिए गौरव की बात थी.

एड्रियन रवांडा में पढ़ाई, बिजनेस क्षेत्र में तरक्की चाहते हैं, और रवांडा को विकसित होते देखना चाहते हैं.

एड्रियन बचपन में फुटबॉल खेलते थे, लेकिन शुरुआन से ही वह एक साइकिलिस्ट बनना चाहते थे.

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