सवाल पूछने को कोई अधिकार नहीं
अपने ब्लॉग में राकेश पारिख ने अरविंद केजरीवाल से पूछा है कि क्या पार्टी में किसी को सवाल पूछने का कोई अधिकार नहीं है. यहां पर भी और जगहों की तरह सवाल पूछने वालों की आवाज बंद करा दी जाती है. गज्ञैरतलब है कि 28 मार्च को आप की प्रस्तावित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले इस तरह के एक और ब्लॉग का बम पार्टी के सिर पर आ गिरा है. इससे पहले पार्टी की महाराष्ट्र और दिल्ली इकाई से भी इस तरह के कुछ ब्लॉग आ चुके हैं. इस ब्लॉग में खास बात यह है कि यहां भी सिर्फ उन्हीं बातों को ही दोहराया गया है, जो कि आप नेता प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने कही थीं. इस ब्लॉग से कम से कम यह तो साबित हो गया है कि पार्टी के दोनों खेमों में चल रही लड़ाई अभी भी थमी नहीं है. भले ही ये दिखावे के तौर पर हो, लेकिन दोनों तरफ से सुलह के बयान आ रहे हैं. वहीं अंदरखाते दोनों खेमें 28 मार्च को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में एक-दूसरे पर वार करने की पूरी तैयारी में भी नजर आ रहे हैं.

एक पत्र में जताई गई थी ब्लॉग की संभावना
इस बात का अंदाजा तो सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि शनिवार को आप के पक्ष में आए एक अज्ञात पत्र में भी इस तरह के ब्लॉग की संभावना जताई गई थी. उस पत्र में यह कहा गया था कि प्रशांत और योगेंद्र के बाद अब राकेश पारिख सरीखे नेता भी पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाने की तैयारी में लगे हुए हैं. सिर्फ इतना ही नहीं ये सभी नेता राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जमकर हंगामा करने का मूड बनाए बैठे हैं.

ब्लॉग में लगाया आरोप
वहीं 'आप' नेता डॉ. राकेश पारिख ने अपने ब्लॉग में इस बात का भी आरोप लगाया है कि पार्टी को केंद्रीयकृत करने की इच्छा अरविंद केजरीवाल भी रखते हैं.  'अरविंद ये आप को क्या हो गया' शीर्षक पर लिखे गए इस लेख में यह भी कहा गया है कि यहां पर सवाल पूछने का अधिकार किसी को नहीं है. यहां पर उन्होंने शांति भूषण का जिक्र करते हुए यह भी लिखा है कि क्या 80 साल की उम्र में पार्टी के उस साधारण सदस्य को अपनी राय रखने का भी कोई अधिकार नहीं है.  ऐसे में पारिख ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा है कि वे यह सब बातें राष्ट्रीय परिषद में सबके सामने रखना चाहते थे, लेकिन उन्हें अपनी बात कहने का महज एक मौका भी नहीं दिया गया.

जब हुआ था मिशन बुनियाद कार्यक्रम  
ब्लॉग में पारिख ने लिखा है कि जयपुर में मिशन बुनियाद कार्यक्रम का आयोजन हुआ था. उसमें सभी के आग्रह के बावजूद वह जयपुर जिला कार्यकारिणी से बाहर ही रहे. इसकी वजह थी, एक अच्छे राजनीतिक विकल्प का बुनियादी ढांचा बन जाए, उन्होंने यह सोचा था. उन्होंने लिखा कि दो माह बाद कौशांबी में हुई वो मुलाकात भी उन्हें याद रहेगी, जब मनीष सिसोदिया ने उनसे कहा था कि अच्छे लोग अपनी जिम्मेदारियों से हमेशा भागते हैं और फिर आखिर में शिकायत करते हैं कि राजनीति गंदी है. डॉ. साहब आपको इस बात की जिम्मेदारी लेनी होगी.

गुलामी सेनापति की भी नहीं करूंगा
उन्होंने लिखा कि कुछ दिन बाद उन्हें राजस्थान सचिव की जिम्मेदारी सौंप दी गई. तब उन्होंने यह बात कही थी कि आप दोनों की तरह आजादी की लड़ाई का सिपाही हूं, गुलामी अपने सेनापति की भी नहीं करूंगा. अगर, जी हजूरी करनी होती तो इतना संघर्ष ही क्यों करता. यहां उन्होंने लिखा कि बेहद दुख के साथ उन्हें कहना पड़ता है कि आज पार्टी में ऐसे लोगों की ही जरूरत रह गई है, सवाल पूछने वालों की नहीं. राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठकों में उन्होंने इस प्रस्ताव को कई बार रखा कि संगठन में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को चुनाव नहीं लड़ना चाहिए. अब देखिए ये राजनीति उन्हें कहां ले आई, आज चुनाव लड़ने और मंत्री बनने की इच्छा रखना बिल्कुल सही है, लेकिन जान लीजिए, सवाल पूछना बिल्कुल गलत है.

स्वराज की बात करने वालों को बताया जाता पार्टी विरोधी
पारिख कहते हैं कि उन्होंने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कई बार इस सवाल को उठाया था, कि क्या आप सिर्फ अरविंद केजरीवाल हैं. क्या देश माने सिर्फ दिल्ली है. आज पार्टी में यह सवाल पूछना तो देशद्रोह से भी बड़ा अपराध बन चुका है. 'आप' की टोपी पर लिखा था, मुझे स्वराज चाहिए. वहीं दूसरी ओर आज स्वराज की बात करने वालों को पार्टी विरोधी बताया जाता है.

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