विदेशियों ने बीते वर्ष गोद लिये 27 बच्चे

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LUCKNOW : समय बदल रहा है, बेटियां सभी क्षेत्रों में नई उपलब्धियों के झंडे गाड़ रही हैं। बावजूद इसके हमारा समाज अब भी बेटों की चाहत में लगा है। 2017 में प्रदेश में गोद लिये गए बच्चों की संख्या पर गौर करें तो समाज की यह हकीकत खुद-ब-खुद सामने आ जाती है। हालांकि, ठीक इसके उलट विदेश में रहने वाले भारतीय परिवारों को गोद लेने के लिये बेटियां भा रही हैं। यह हालत तब है जब शिशुगृहों में आने वाले शिशुओं में अधिकांश संख्या बच्चियों की ही होती है।

बेटे फर्स्ट प्रेफरेंस

प्रदेश में वर्तमान में 22 राजकीय शिशु गृह हैं। जहां अनाथ बच्चों का पालन पोषण किया जाता है और उपयुक्त दंपति को उन्हें नियमानुसार गोद देने की प्रक्रिया की जाती है। प्रदेश सरकार के महिला एवं कल्याण विभाग के तहत आने वाले इन शिशु गृहों में केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण विभाग की वेबसाइट 'कारा' (चाइल्ड एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी) के जरिए आवेदन करने वाले दंपत्तियों को ही बच्चे गोद दिये जाते हैं। विभागीय सूत्र बताते हैं कि 'कारा' में आवेदन करने वाले भारतीय दंपतियों की पहली प्रेफरेंस बेटों की होती है। हालांकि, विदेश में रहने वाले दंपति बेटियों को प्रेफरेंस देते हैं।

आंकड़े दे रहे गवाही

'कारा' के जरिए प्रदेश में 2017 में गोद दिये गए बच्चों के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि पूरे वर्ष में कुल 110 बच्चों को गोद दिया गया। इनमें 83 दंपति यूपी के हैं जबकि, 27 विदेश के निवासी। इन दंपतियों द्वारा गोद लिये गए बच्चों के लिंगानुपात पर गौर करें तो पता चलता है कि प्रदेश के दंपतियों को गोद दिये गए बच्चों में 33 लड़के वहीं, 50 लड़कियां शामिल हैं।

नहीं मिला लड़का तो ले ली लड़की

यहां यह बताना बेहद जरूरी है कि बच्चे गोद लेने वाले प्रदेश के दंपतियों में ऐसे लोगों की संख्या ठीक-ठाक है, जिनकी पहली प्रेफरेंस बेटे ही थे। हालांकि, शिशु गृहों में लड़कों के मौजूद न होने की वजह से उन दंपतियों को बेटियां गोद लेनी पड़ीं। वहीं, अगर विदेश में रह रहे भारतीय दंपतियों की बात करें तो उनके द्वारा बीते वर्ष प्रदेश के शिशु गृहों से गोद लिये गए 27 बच्चों में बेटियों की संख्या 26 है। सिर्फ बेल्जियम में रहने वाले एक दंपति ने बेटा गोद लेने के लिये आवेदन किया था।

'सामाजिक ढांचा बदलना जरूरी'

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ काम करने वाली समाजसेवी डॉ। नीलम सिंह कहती हैं कि समाज में बेटों की चाहत के लिये हमारा सामाजिक ढांचा जिम्मेदार है। दंपति को लगता है कि अगर बेटा होगा तो वह जीवन भर साथ रहेगा और बुढ़ापे में माता-पिता का सहारा बनेगा। लेकिन, बेटी को पढ़ाने-लिखाने के बाद शादी होने पर वह दूसरे घर चली जाएगी। धार्मिक परंपरा में वंश चलाने के लिये बेटा जरूरी माना गया है। जब तक सामाजिक ढांचे में बदलाव नहीं होगा तब तक बेटियों के साथ सौतेले व्यवहार को रोका नहीं जा सकता।

'पुरुष प्रधान मानसिक्ता जिम्मेदार'

लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के एचओडी डॉ। दीप्ति रंजन साहू इस माहौल के लिये समाज की पुरुष प्रधान मानसिकता को जिम्मेदार मानते हैं। उन्होंने कहा कि समाज में अब भी यही सोच है कि बेटा होगा तभी वंश आगे बढ़ेगा। पुरुष प्रधान मानसिकता से ग्रसित सामाजिक ढांचे को बदलने में अभी लंबा वक्त लगेगा। तभी इस समस्या से पूरी तरह मुक्ति मिल सकेगी और बेटियों को बराबरी का दर्जा मिल सकेगा।

'कारा' में आवेदन में दंपति द्वारा बताई गई जरूरत के मुताबिक बच्चे गोद दिये जाते हैं। इस दौरान हमारा विभाग यह सुनिश्चित करता है कि गोद दिये जा रहे बच्चे को अच्छी से अच्छी परवरिश मिल सके।

- अलका टंडन भटनागर, निदेशक, महिला एवं बाल कल्याण, उत्तर प्रदेश

फैक्ट फाइल

- 110 बच्चे दिये गए गोद

- 83 बच्चे प्रदेश के दंपतियों को

- 27 बच्चे विदेश के दंपतियों को

रिपोर्ट कार्ड, प्रदेश के दंपति

कुल बच्चे    बेटे    बेटियां

83    33    50

विदेश के दंपति

देश    बेटे    बेटियां

अमेरिका    0    8

फ्रांस    0    3

स्पेन    0    3

इटली    0    2

बेल्जियम    1    1

न्यूजीलैंड    0    2

इंडोनेशिया    0    1

कनाडा    0    1

इंग्लैंड    0    1

सिंगापुर    0    1

स्वीडन    0    1

यूएई    0    1  

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