इस श्रृंखला में दो मुख्य किरदार बेहद सदृढ़ महिलाएं थी जो किसी की बकवास नहीं झेलती थी.

लेकिन अब मैं डीआर के नए शो ‘ब्लाचमन’ के बारे में बात करने जा रहा था, जिसमें 28 से 85 साल की महिला आदमियों के सामने निर्वस्त्र अवस्था में खड़ी होती हैं.

रोल के दौरान उन्हें बिलकुल खामोश खड़े रहना होता है, जबकि कपड़े पहने हुए आदमी उनके शरीर के बारे में बात करते हैं.

शो के निर्माता थॉमस ब्लाचमन कहते हैं, ‘ये रियैलिटी टीवी नहीं है, न ही ये कोई कविता है और न ही पोर्न.’

लेकिन फिर भी इस नाटक को देखते हुए अजीब सा लगता है. ब्लाचमन की कमीज़ के बटन खुले होते हैं और वो स्टेज पर अपने एक दोस्त के साथ मिल कर निर्वस्त्र खड़ी महिला के निजी अंगों पर बात कर रहे हैं.

टिप्पणी करते हुए वे कहते हैं, “मुझे शेविंग और वैक्सिंग में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है.”

इसके बाद वे उस महिला के खूबसूरत पैरों के बारे में बात करना शुरू कर देते हैं.

भड़काऊ

नाटक में भाग लेने वाली इस महिला को हर एक शो के लिए 250 यूरो मिलते हैं.

ब्लाचमन कहते हैं, “महिलाएं अकसर ऐसी बातें करती हैं. इस शो के ज़रिए आप ये जान सकते हैं कि आदमी महिलाओं के शरीर के बारे में क्या सोचते हैं.”

ब्लाचमन का मानना है कि आधुनिक डेनमार्क में जहां पुरुषों और महिलाओं के लिए बराबर संभावनाएं हैं, वहां आत्मविश्वासी महिलाओं से पुरुष दबने लगे हैं.

महिलाओं का शरीर हमेशा पुरुषों के शब्दों का प्यासा रहता है. महिलावादियों ने हमारे खिलाफ बहुत गुस्सा ज़ाहिर किया है. हालांकि मैं उन्हें थोड़ा उकसाना चाहता था, लेकिन मुझे इतनी भीषण प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी. मेरा नाटक लैंगिकवादी नहीं है.”

शो में निर्वस्त्र महिला का किरदार निभाने वाली नीना ने मुझे बताया कि वे अपने रोल से सशक्त महसूस करती है.

वे पेशे से एक प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका हैं.

हालांकि वे कहती हैं कि उन्हें ज़्यादा अच्छा लगता अगर स्टेज पर उन्हें भी बोलने का मौका दिया जाता.

शो में रोल करने के बाद नीना को सैंकड़ों पत्र आए हैं जिनमें पांच शादी के प्रस्ताव भी शामिल हैं.

'महिला कोई वस्तु नहीं'

लेकिन कॉमेडियन सैन सोंडरगार्ड जैसे महिलावादी इस नाटक से खासे गुस्से में हैं.

उनका कहना है, “डेनमार्क में लैंगिकवाद एक मुद्दा नहीं है. लेकिन फिर ऐसे नाटक आ गए हैं जो बकवास है बस. हालांकि इस नाटक में आदमी महिला के शरीर के बारे में भले ही अच्छी बातें कहते हैं, लेकिन किसी को मेरे शरीर पर टिप्पणी करने का अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं दिया जा सकता क्योंकि मैं एक महिला हूं.”

हालांकि ऐसी शिकायतों के साथ-साथ ब्लाचमन का ये शो इंटरनेट पर भी बेहद मशहूर है.

इस शो की संपादक सोफिया फ्रॉमबर्ग कहती हैं कि वे ऐसा नाटक केवल लोकप्रियता पाने के लिए नहीं, बल्कि समाज में एक बहस छेड़ने के लिए कर रही हैं.

लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि नाटक जितना भड़काऊ हो, उतना ही लोग उसकी ओर आकर्षित होते हैं.

दुनिया भर में इस तरह के रियैलिटी शो में किस मुद्दे पर कितनी हद पार की जाए, उस पर बहस छिड़ती रहती है.

नेदरलैंड में एक ऐसा शो आने वाला था जिसका नाम था ‘आई वांट यॉर बेबी’. इस शो में भाग लेने वाली महिलाएं पुरुषों की भीड़ से वो आदमी चुनती जिसके बच्चे की वो मां बनना चाहती हो.

लेकिन ये बवाल संसद तक पहुंच गया और शो को वापस ले लिया गया.

बहरहाल डेनमार्क में इस नाटक के निर्माता ब्लाचमन का कहना है कि उनका ये शो महिलाओं को एक श्रद्धांजली है.

लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें ये शो दोबारा करने का मौका नहीं दिया जा रहा है.

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