- एडीए के बाबुओं को प्यारी है अपनी कुर्सी

- लंबे समय से एक ही डेस्क से चिपके क्लर्क

- रूल अनुसार तीन साल में होना चाहिए ट्रांसफर

AGRA। सुनकर थोड़ा अटपटा लगा होगा। आप सोच रहे होंगे कि आगरा विकास प्राधिकरण का नाम चेंज हो गया क्या। यह एडीए से बीडीए हो गया क्या। नहीं ऐसा कुछ नहीं बल्कि एडीए के बाबुओं के वर्किंग सिस्टम ने एडीए को बाबू विकास प्राधिकरण (बीडीए) बनाकर रख दिया है। वजह साफ है, एडीए में क्लर्क अपना विकास करने में लगे हैं। उन्हें अपनी कुर्सी से ज्यादा प्यार है। पिछले कई सालों से तमाम क्लर्क एक ही डेस्क संभाल रहे हैं। उन्हें इधर से उधर करने में आला अधिकारी भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते।

ख्0 साल से चिपके मैप वाले क्लर्क

सुनकर चौंकना लाजिमी है, लेकिन यह हकीकत है। एडीए में मैप कार्य ले-आउट डेस्क और शास्त्रीपुरम योजना के मैप को देख रहे क्लर्क अपनी कुर्सी से ज्यादा लगाव है। जो बीस साल से एक ही जगह पर चिपके हुए हैं। वहीं, पीडब्ल्यूसी निर्माण डिपार्टमेंट में निर्माण कार्यो को छोड़कर जाना नहीं चाहते। पीडब्ल्यूसी में टोटल क्भ् कर्मचारी लंबे समय से एक ही डेस्क पर जमे हैं।

प्रॉपर्टी डेस्क भी अछूती नहीं

प्रॉपर्टी डेस्क एक ऐसी डेस्क है, जिसमें पिछले क्0 से क्भ् साल में कर्मचारी तैनात हैं। फिर चाहे वह कोई भी हों। इनकी संख्या आधा दर्जन के करीब है। बिना अधिकारियों की शह के इतने लंबे समय तक काम करना पॉसीबल नहीं है।

तीन साल से अधिक नहीं रह सकते

गवर्नमेंट रूल के मुताबिक एक विभाग में एक डेस्क पर क्लर्क तीन वर्ष से अधिक समय तक नहीं रह सकते। उन्हें तीन साल बाद नई डेस्क पर काम करने की जिम्मेदारी दी जाती है, लेकिन एडीए में ऐसा नहीं हो रहा। न सिर्फ क्लर्क बल्कि अफसर भी इस नियम की खिल्ली उड़ाते दिख रहे हैं।

ख्008 से नहीं हुए ट्रांसफर

साल ख्008 में एडीए में ट्रांसफर हुए। इस दौरान क्लर्क और अन्य कर्मचारियों को इधर-उधर किया गया। तत्कालीन वाइस प्रेसीडेंट अनुराग श्रीवास्तव ने यह स्टेप उठाया था।

'पहले इनके ट्रांसफर क्यों नहीं हुए, इस पर कुछ नहीं कहना चाहूंगा, लेकिन अब एक माह के अंदर इनके ट्रांसफर कर दिए जाएंगे.'

बाबू सिंह, ज्वाइंट सेक्रेटरी एडीए