कैसा राइट टू एजुकेशन

सुप्रीम कोर्ट ने गरीब के बच्चे के लिए निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों पर एडमिशन का आदेश दिया था, लेकिन मेरठ का हाल देखिए। जनपद में 80 पब्लिक स्कूल हैं। पिछले वर्ष पर गौर करें तो, एक भी बच्चे का एडमिशन कोर्ट के आदेश के अनुसार किसी भी पब्लिक स्कूल में नहीं हुआ। अब फिर एडमिशन के लिए पब्लिक स्कूलों के गेट पर पेरेंट्स की लाइन लग रही है, लेकिन इस बार भी राइट टू एजुकेशन का लाभ शायद ही किसी को मिलेगा।

आईनेक्स्ट ने खोली पोल

राइट टू एजुकेशन अपने शहर में कितना पॉवर फुल है, इसका खुलासा शुक्रवार को आईनेक्स्ट की टीम ने किया था। सिटी के चार टॉप स्कूलों में शिक्षा के अधिकार के क्या मायने है, सामने आया। एक साठ वर्षीय वृद्ध पब्लिक स्कूल में अपनी पोती के एडमिशन के लिए दिनभर चक्कर काटता रहा, लेकिन एडमिशन फॉर्म देना तो दूर, वृद्ध स्कूलों के गेट की दहलीज पार करते ही लौटा दिया गया।

बेपरवाह सरकारी तंत्र

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को धरातल पर लाने की जिम्मेदारी सरकारी मशीनरी की थी, लेकिन यहां तो तंत्र ही बेपरवाह है। पिछले वर्ष दो तीन बार दिखाने के लिए डीएम ने मीटिंग जरूर हुई। पर किसी भी स्कूल में एक भी गरीब के बच्चे का एडमिशन कराने में नाकाम रही। उधर, इस बार भी एडमिशन शुरू हो चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई मीटिंग राइट टू एजुकेशन को लेकर नहीं हो सकी है। उधर, शासन की लापरवाही का लाभ उठाकर पब्लिक स्कूल भी जमकर मनमानी में लगे रहे।

"राइट टू एजुकेशन को लेकर अभी तक कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है। वैसे भी इसे अमल कराने की जिम्मेदारी डीआईओएस और सीडीओ की है."

- एसके दूबे, एडीएम सिटी

"पिछले वर्ष भी किसी पब्लिक स्कूल में आरटीई के तहत एडमिशन नहीं हुआ था। इस बार अभी तक इस संबंध में कोई मीटिंग नहीं हुई है."

- शिव कुमार ओझा, डीआईओएस

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