छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र : बाल श्रम मानवता के प्रति अपराध और बाल अधिकारों का हनन है. यह बच्चों को शिक्षा का अधिकार, शारीरिक और मानसिक विकास से वंचित करता है. लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि लाख कानून बनने के बावजूद होटल, रेस्त्रा, ईंट भट्ठे और कारखानों में बाल श्रमिक अपना बचपन बेच रहे हैं. सर्व शिक्षा अभियान चल रहा है और बच्चे कूड़े-करकटों की ढेर में भविष्य तलाश रहे हैं.

फाइलों में हो रहा सर्वे

सरकारी आंकड़ों में पूर्वी सिंहभूम जिले की बात करें तो यहां सिर्फ 156 बाल मजदूर हैं. बुधवार को श्रम विभाग से मिली जानकारी के अनुसार पिछले साल बाल मजदूरों का सर्वे कराया गया था. इसमें 156 बाल मजदूर पाए गए थे. लेकिन हकीकत यह है कि बाल मजदूरों की संख्या हजारों में है. सभी होटल, दुकान और अन्य तमाम तरह के प्रतिष्ठानों में बाल मजदूर देखने को मिल जाएंगे. लेकिन सरकारी आंखों को बाल मजदूर नहीं दिखते.

कैसे कम होंगे बाल मजदूर

यूनिसेफ के झारखंड हेड जॉब जकारिया का कहना है कि बाल श्रम उन्मूलन के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बेहतर बनाना होगा. ताकि बच्चे नियमित स्कूल जा सकें. आर्थिक रूप से अक्षम और कठिन परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों के लिए स्पॉन्सरशिप एंड फॉस्टर केयर जैसी सामाजिक सुरक्षा योजना को विस्तार देने की जरूरत है. बच्चों के लिए स्वास्थ्य, पोषण और शैक्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रतिमाह 2000 रुपए देने का प्रावधान है. इसे सभी तबके बच्चों के लिए अनिवार्य करना होगा. ताकि बच्चों को बालश्रम से रोका जा सके. बाल श्रम सामाजिक रूप से अस्वीकार्य होना चाहिए. क्योंकि यह बच्चों के खिलाफ अपराध और उनके अधिकारों का हनन है. सामाजिक तौर पर लोगों को एकजुट करने की जरूरत है. ग्राम स्तर पर एक जागरूक बाल समिति गठित कर बाल श्रम और तस्करी पर रोक लगाई जा सकती है.

सरकार को नहीं दिखते बाल मजदूर

1 साल का बबलू एक होटल में नौकर के रूप में काम करता है. पूछने पर बबलू ने बताया कि मां घरों में बर्तन मांजती है, पिता सुखदेव दास रिक्शा चलाता है. घर में दो बड़ी बहन है. मां बाबा की कमाई से घर नहीं चल पाता है. इसलिए बाबा ने उसे काम पर लगा दिया है. 10 साल का सोनू भी उसी होटल में काम करता है. सोनू ने बताया कि वह कभी स्कूल नहीं गया. लेकिन पढ़ने का मन करता है.

2.5 फीसदी बच्चे कामकाजी

जनगणना 2001 के अनुसार झारखंड में 5-14 वर्ष आयु तक के 4 लाख(5.4 प्रतिशत)बाल मजदूर थे. वार्षिक स्वास्थ्य सर्वे(एएचएस)2012-13 के अनुसार 5-14 वर्ष तक 2.5 प्रतिशत बच्चे कामकाजी हैं. सर्वे में यह भी जिक्र है बड़े और औद्योगिक जिलों में बाल मजदूरों की संख्या कम है. जबकि ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में बाल मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा है.

पूर्वी सिंहभूम जिले के उपश्रमायुक्त एसएस पाठक का कहना है कि बाल श्रम निषेध एवं विनिमयन अधिनियम 1986 में उल्लेख है कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों को 18 व्यवसायों और 65 प्रक्रियाओं के तहत नियोजित किया जाता है तो उस व्यक्ति या फर्म के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है. रोजगार देने वाले को 3 महीने से एक साल तक की सजा और 10 हजार से 20 हजार रुपए तक जुर्माने या दोनों का प्रावधान है. विभाग की ओर से समय समय पर धावा दल द्वारा कार्रवाई कर बाल श्रमिकों को मुक्त भी कराया जाता है.

2012-13 के आंकड़ो में बाल मजदूर

जिला प्रतिशत

पूर्वी सिंहभूम 1.5 प्रतिशत

पाकुड़ 6.9

साहेबगंज 4.7

पश्चिमी सिंहभूम 4.2

गोड्डा 3.8

कोडरमा 1.6

लोहरदगा 2.5

रांची 2.2

धनबाद 1.4

कोडरमा 1.6

देवघर 3.1

गिरिडीह गुमला, चतरा 2.6