- 15 सालों का सपा-बसपा का लगा है ठप्पा

- सत्ता बदलने से असहज कर रहे महसूस

आगरा। प्रदेश में भाजपा की एतिहासिक जीत ने जहां सभी राजनीतिक दलों को हतप्रभ कर दिया है, वहीं 17 साल बाद सत्ता में भाजपा के वापस लौटने से अधिकारी बेचैन हो उठे हैं। दरअसल डेढ़ दशक से अधिकारी भी पार्टी में बंट चुके हैं। उन पर समाजवादी या बसपा की मुहर लगी है। पार्टी के नेताओं के रहमोकरम पर अधिकारियों को मनचाही पोस्टिंग मिली और अधिकारियों ने भी इन्हीं के इशारे पर सरकारी तंत्र को चलाया। अब इन दोनों के हारने के बाद भाजपा की छत्रछाया मिलने की बेचैनी बढ़ा दी है।

अधिकारियों में खलबली

उत्तर प्रदेश में पिछले दो दशकों से सपा और बसपा की सरकार रही। इस बीच शासकीय अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक का राजनीतिकरण किया गया। सत्ता के बड़े नेताओं के इशारे पर कलेक्ट्रेट, नगर निगम, जिला पंचायत सहित महत्वपूर्ण विभागों में अधिकारियों की नियुक्ति की गई। पार्टियां बदली, तो अधिकारी भी बदल गए। इस तरह से पिछले 2002 से 2017 पार्टियों के कामकाज के अनुसार अधिकारियों ने भी कार्य किए। इस बीच पिछले 17 सालों में चयन प्रक्रिया भर्ती से लेकर पोस्टिंग में जातिवाद और नजदीकियों को ही प्रमोट किया गया। इससे सत्ता के साथ चहेते अधिकारियों के चेहरे बदले और अधिकारियों ने भी सरकारी सिस्टम उन्हीं के मुताबिक चलाया। लेकिन दोनों पार्टियों ने सत्ता खो दी है और भाजपा के पास सत्ता है। इससे अधिकारियों में खलबली मच गई है। उनको अब भाजपा का संरक्षण चाहिए और उसके लिए लखनऊ से लेकर भाजपा से जुड़े नेताओं तक संबंध ढूंढने में लगे हुए हैं।

17 साल सत्ता से रहे दूर

प्रदेश में 2000 से 2002 तक भाजपा की सरकार रही। इसके बाद करारी हार के साथ भाजपा अपनी जमीन तक खोती चली गई। 17 सालों में भाजपा के नेताओं को अपना राजनीतिक कैरियर खतरे में पड़ता दिखा। इसका असर सरकारी विभाग के अधिकारियों तक में दिखा। उन्होंने कार्यकर्ताओं के कामों को तवज्जो तक नहीं दी। इससे दोनों के बीच रिश्ते समाप्त जैसे हो गए। 17 साल बाद अब भाजपा दोबारा लौटी है। इससे अधिकारियों को अब रिश्ते जोड़ने के लिए नई शुरुआत करनी होगी, जो उनके पुराने रवैये के कारण मुश्किल खड़ा कर सकते हैं।