- फैज-ए-आम कॉलेज के केमिस्ट्री टीचर 25 सालों से दे रहे हैं फ्री कोचिंग

- कूड़ा बीनने और भीख मांगने वाली बच्चियों को पढ़ाने के लिए बना रहे हैं स्कूल कम कोचिंग सेंटर्स

- उनके पढ़ाए बच्चे बन चुके हैं डॉक्टर और इंजीनियर

- अपने मिशन में झेली हैं कई तरह की परेशानियां

Meerut : वैसे तो हमारे शास्त्रों में कई तरह के दान का वर्णन है। कोई अन्नदान करता है, तो कोई देहदान कर देता है। कोई वस्त्रों का दान करता है तो कोई रक्तदान को महादान मानता है। हमारी सोसायटी में हम सभी को कई ऐसे दानवीर मिल जाएंगे जो किसी न किसी वजह से कुछ न कुछ दान करते हैं, लेकिन आज के बाजारीकरण के दौर में जहां एजुकेशन कॉरपोरेट व‌र्ल्ड के हाथों में आ गई है। बड़े उद्योगपति अपने रुपयों को एजुकेशन सेक्टर में डालकर मोटी कमाई करने में जुटे हुए हैं। ऐसे में एक व्यक्ति भी है जो शिक्षा का दान करता है। वो भी हर तबके के बच्चों को। यहां तक कि जिन बच्चों को हम अपने पास तक फटकने देते, उन्हें गले लगाता है। उन्हें पढ़ाता है। उन्हें जीवन जीने की कला और अपने पैरों पर खड़े होने राह देता है। जी हां, ऐसे व्यक्तित्व का नाम है डॉ। आईए खान। 70 यूपी एनसीसी वाहिनी में कप्तान और फैज-ए-आम इंटर कॉलेज में केमिस्ट्री के विभागाध्यक्ष डॉ। खान पिछले ख्भ् सालों से बच्चों को कोचिंग के थ्रू फ्री एजुकेशन देने के साथ गरीब बच्चियों को पढ़ा रहे हैं। मकर संक्रांति के मौके पर जिस दिन दान करने का महत्व काफी बड़ा होता है तो इसी महादानी के जीवन संघर्ष और संकल्प के बारे में उन्हीं की जुबानी जानिए।

क्990 से शुरू हुआ पढ़ाने का सफर

जब मैंने अपनी पीएचडी पूरी की तो मेरे पास ओमान और कुवैत में केमिस्ट के तौर पर ऑफर आया था। पिता की मृत्यु के बाद मुझे यहीं रुकना पड़ा और फैज-ए-आम ज्वाइन कर लिया। उसके बाद से मैंने बच्चों को कॉलेज के बाद पढ़ाना शुरू कर दिया। मैंने सबसे पहले श्रद्धापुरी से शुरुआत म्0 बच्चों के साथ की। मैंने वहां काफी सालों तक पढ़ाया। फिर मैं आबूलेन में आ गया। सन ख्000 में आबूलेन में पढ़ाते हुए मुझे कुछ बच्चों ने पढ़ाते हुए देखा। वो बच्चे भीख मांगने वाले, कूड़ा बीनने वाले और अनाथ थे। फिर मैंने निश्चय किया कि अब इन्हें भी रास्ते पर लेकर आऊंगा।

फ्भ्0 बच्चों की जमात

फिर मैंने ऐसे बच्चों को तलाश करना शुरू कर दिया। कई लोगों के इन बच्चों के बारे में पूछा। फिर मैं आशियाना कॉलोनी, जाहिदपुर और लोहियानगर, अंबेडकर आवासीय योजना में रहने वाले लोगों के यहां गया। वहां के बच्चों को एकत्र किया। फिर चाहे वो लड़के हों या फिर लड़कियां। वहां के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। खासकर लड़कियों को। आज के समय में मेरे पास करीब फ्भ्0 लड़कियां हैं, जिन्हें मैं पढ़ा भी रहा हूं और उन्हें वो बाकी काम, जिनसे वो अपना पेट पाल सकें, सिखाने की कोशिश कर रहा हूं।

दिखाई दे रहा है 'एफर्ट'

अब मैंने इन बच्चों को एक बैनर नीचे लाने का काम कर रहा हूं। मैंने ढाई वर्ष पहले एफर्ट नाम की एक एकेडमी खोली थी। ये एकेडमी शताब्दी नगर सेक्टर-क्क् में हैं। पहले हमारी एकेडमी सिर्फ एक कमरे में चल रही थी। अब मैंने वो 80 गज की लैंड खरीद ली है। उसे मैंने तीन मंजिला तैयार कराया है। हर फ्लोर पर एक-एक हॉल है। एक लाइब्रेरी के लिए भी जगह छोड़ी गई है। ऊपर स्पैरो हाउस भी बनाया गया। मैंने इसके लिए ब्ख् लाख रुपए का लोन भी लिया है। इस एफर्ट हाउस में कोचिंग भी होगी। साक्षरता का भी काम चलेगा और स्कूल भी चलेगा। मेरी योजना है कि इस साल इसे आईटीआई का एफिलिएशन दिला दूं। वर्तमान में इस एकेडमी में बालिकाओं को विभिन्न तरह की शिक्षा दे रहे हैं। यहां हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, गणित, विज्ञान आदि विषयों के साथ ही बालिकाओं को सिलाई, कढ़ाई, श्रृंगार, खिलौने बनाने आदि की ट्रेनिंग दी जा रही है।

विरोध भी काफी झेलना पड़ा

जब ऐसे बच्चों को पढ़ना शुरू किया काफी विरोध झेला। आबूलेन और यहां शास्त्रीनगर के लोगों ने कहा कि ये बच्चे यहां क्यों आते हैं? ये बच्चे इलाके में चोरी करने लगेंगे। हमारे बच्चे भी इनकी तरह से बिगड़ जाएंगे। कुछ लोगों ने ऐसी बातें भी कहीं कि उन्हें बयां करना मुश्किल है। मैं सिर्फ इतना ही कहता है कि चलो हम इन बच्चों को अपने बच्चों जैसा बनाते हैं, लेकिन मैंने इन बच्चों में कई माता-पिता के विरोध भी को भी झेला। काफी समझाने के बाद भी उन्होंने बच्चों को पढ़ाने की इजाजत दी।

नहीं ली किसी से मदद

बच्चों की पढ़ाई व अच्छी किताबें मुहैया कराने में मैंने आज तक किसी से कोई मदद नहीं ली। मैं हर महीने अपने वेतन का 80 से 8भ् प्रतिशत खर्च कर देता हूं। जो करीब फ्0 हजार रुपए प्रतिमाह होता है। हर साल करीब क्ख्00 बुक्स बांट देता हूं। अगर मैं याद करूं तो अब तक फ्0 हजार से अधिक बच्चों को फ्री पढ़ा चुका हूं। एकेडमी में पढ़ने वाले बच्चों की खास बात ये है कि यहां नाम नहीं लिखे जाते हैं। हर किसी का नाम एफर्ट है।

ये हैं अचीवमेंट्स

- आईआईटी कानपुर में जुगनू सैटेलाइट बनाने वाली टीम मेंबर अनुराग मेरा स्टूडेंट है।

- आईआईटी दिल्ली से एमटेक करने वाला सलीम मेरा स्टूडेंट है।

- सिटी के मशहूर आई सर्जन डॉ। शकील मेरा ही स्टूडेंट है।

- डॉ। रूही अंसारी एमडी डॉक्टर है और केजीएमसी की टॉपर मेरी ही स्टूडेंट रही है।

- एसडी सदर से ट्वेल्थ में यूपी बोर्ड में यूपी टॉप करने वाला स्टूडेंट तस्लीम अहमद भी मेरा ही स्टूडेंट रहा है।

- एनसीसी निदेशालय ने राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने के साथ ही 'वन मैन एनजीओ' के खिताब से भी नवाजा है।

मैंने खान सर से काफी कुछ सीखा है। मैं जब तक उनसे पढ़ा तब तक उन्होंने मुझसे एक भी रुपया नहीं लिया। बड़े ही डेडीकेशन के साथ पढ़ाते थे। पढ़ाते भी काफी अच्छा थे। मैं उनका सदा आभारी रहूंगा।

- डॉ। शकील, आई सर्जन

आईए खान सर मुझे आज भी याद हैं। मैं उन्हें कभी नहीं भूल सकता हूं। मेरी सफलता के पीछे काफी बड़ा हाथ है। हर मोड़ पर मुझे गाइड किया। पढ़ाया। यहां तक फीस तक नहीं लेते थे। बहुत अच्छा पढ़ाते थे। वो मुझे हमेशा याद रहेंगे।

- डॉ। असीम अली खान, एचओडी डिपार्टमेंट ऑफ यूनानी मेडिसिन/एडवाइजर फॉरेन स्टूडेंट्स काउंसिल, हमदर्द यूनिवर्सिटी नई दिल्ली