120 सीट के लिए आती थी 1000 से अधिक अप्लीकेशन

समाज पर भले ही संस्कृत के बजाए इंग्लिश पूरी तरह हावी हो चुका है, मगर यूनिवर्सिटी में संस्कृत का क्रेज बरकरार है। डिपार्टमेंट में पीजी के लिए 120 सीटें है, जिसमें एडमिशन के लिए 1000 से अधिक अप्लीकेशन हर साल आती थी। प्रो। पाठक ने बताया कि 2011 तक संस्कृत की सीटें कभी खाली नहीं रहीं। हालांकि 2012 और 2013 में कुछ एडमिशन कम हुए। क्योंकि कई कॉलेज के रिजल्ट न निकलने से स्टूडेंट्स एडमिशन के लिए फार्म फिलअप नहीं कर सके। जब रिजल्ट निकला, तब तक एडमिशन का टाइम खत्म हो चुका था। इससे भले ही यूनिवर्सिटी की सीट खाली रह गई हो, मगर ऐसे भी स्टूडेंट्स की संया कम नहीं है, जो एडमिशन लेना चाहते थे। हालांकि फिर भी स्टूडेंट्स की संया 90 के पार है।

सिटी में है आचार्य बनने का क्रेज

नई-नई टेक्नोलॉजी और जॉब ओरिएंटेड कोर्सेस आने के बावजूद गोरखपुराइट्स में आचार्य बनने का क्रेज कम नहीं हुआ है। सिटी में टीचर से अधिक यूथ आचार्य बनना चाहते हैं। यह हम नहीं बल्कि डीडीयू यूनिवर्सिटी के संस्कृत डिपार्टमेंट के रिकार्ड बयां कर रहे हैैं, जहां हमेशा एडमिशन के लिए मारामारी रहती है। एक ओर जहां बी-टेक और एमबीए में एडमिशन के लिए कॉलेज मैनेजमेंट को स्टूडेंट्स की तलाश करनी पड़ रही है, वहीं दूसरी ओर डीडीयू यूनिवर्सिटी में चल रहे संस्कृत डिपार्टमेंट में सीट कब फुल हो जाती है, पता ही नहीं चलता। साइंस और इंग्लिश के जमाने में अभी भी संस्कृत का क्रेज कम नहीं हुआ है। हालांकि लास्ट टू इयर में सीटें फुल नहीं हो पाई है, मगर उसका रीजन क्रेज कम होना नहीं बल्कि समय से रिजल्ट का न आना है।

स्टूडेंट्स के बीच संस्कृत का क्रेज जबरदस्त है। संस्कृत में एडमिशन के लिए हमेशा मारामारी रही है। मगर फैकल्टी की कमी लगातार बाधा बन रही है। 1989 से लेक्चरर की भर्ती न होना और 2006 से प्रोफेसर का अप्वाइंटमेंट न होना समस्या बना हुआ है। जबकि रिटायरमेंट लगातार हो रहा है। इसके चलते आलरेडी 9 पद रिक्त है। जबकि 2014 में दो लोगों के और रिटायर होने से पढ़ाने के लिए सिर्फ तीन लोग बचेंगे।

प्रो। एमएम पाठक, हेड संस्कृत डिपार्टमेंट

report by : kumar.abhishek@inext.co.in

National News inextlive from India News Desk