दस साल से वह मज़ार-ए-शरीफ़ में 20 बिस्तरों वाला अस्पताल चला रहे हैं.

उनके अस्पताल में महिलाओं और पुरुषों की लंबी लाइन लगी रहती है और यहां आने वाले ज़्यादातर लोग ग्रामीण इलाकों से ताल्लुक रखते हैं.

तालिबान से डर नहीं

तो अस्पताल चलाने को लेकर उन्हें तालिबान से क्या कभी डर नहीं लगा?

वह कहते हैं, "तालिबान के लिए डॉक्टर दुश्मन नहीं हैं. मैंने उनके शिविरों में भी काम किया. यहां तक कि तालिबान के परिजन भी मुझसे इलाज करवाने आते हैं."

'तालिबान का दिमाग़' ठीक करने वाला डॉक्टर

डॉक्टर नादेर कहते हैं, "यहां आने वाले कुछ तालिबान कभी-कभी रोते हैं, चिल्लाते हैं. वे बहुत ज़्यादा डिप्रेस्ड होते हैं. वे अपने घर कब जाएंगे, उन्हें नहीं पता. उनके घर कहां हैं, यह भी उन्हें नहीं पता होता है. सिर्फ़ तालिबान कमांडर को ही उनके घरों का पता होता है."

हर रोज यहां 90-100 लोगों की जांच होती है और इनमें से ज़्यादातर महिलाएं होती हैं.

अस्पताल में लाइन में लगी 18 साल की मरियम तीन साल से डिप्रेशन की शिकार हैं. वह दिमागी तौर पर इतनी परेशान थीं कि उन्होंने कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की.

बढ़ रहे हैं दिमागी मरीज

'तालिबान का दिमाग़' ठीक करने वाला डॉक्टर

मरियम बताती हैं, "मेरे पति मुझे मारते रहते थे. मैं बहुत डिप्रेस्ड हो गई थी. मेरे पिता ने मेरा निकाह ऐसे व्यक्ति से कर दिया जिनका एक ही पैर था. मुझे वह बिल्कुल भी पसंद नहीं थे. यही वजह है कि मैं इस अस्पताल में हूं."

वह बताती हैं कि और भी महिलाएं उनकी जैसी दिमागी बीमारी का शिकार हैं.

अफ़गानिस्तान युद्ध और ग़रीबी से जूझ रहा है और आंकड़े बताते हैं कि यहां की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या किसी न किसी बीमारी से जूझ रही है.

नादेर अलेमी कहते हैं, "दुर्भाग्य से, अनिश्चितता यहां के युवाओं की सबसे बड़ी चिंता है. यही कारण है कि दिमागी तौर पर बीमार लोगों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है."

भूमिगत स्कूल भी

'तालिबान का दिमाग़' ठीक करने वाला डॉक्टर

डॉक्टर नादेर अलेमी अपनी पत्नी के साथ लड़कियों के लिए एक भूमिगत स्कूल भी चला रहे हैं.

वह कहते हैं, "अभी-अभी कुछ लड़कियों ने 12वीं पास की है. गर्व होता है कि इनमें से अधिकतर ने पहली श्रेणी में परीक्षा पास की है."

अफ़ग़ानिस्तान के हालात से नादेर अलेमी भी बेहद मायूस हैं.

यह पूछने पर कि अगर अफ़ग़ानिस्तान उनका मरीज़ होता तो इसका इलाज कैसे करते? वह कहते हैं, "दुनियाभर के 150 से अधिक देश यहां इस काम में लगे हुए हैं. वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो मैं क्या कर लूंगा?"

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