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PATNA: करीब ख्फ्फ् साल पुराने धरोहर की दरारें भरने में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और कला संस्कृति विभाग को भ् साल से ज्यादा समय लग गया। लेकिन फिर भी काम पूरा नहीं हो सका है। लोग जब गोलघर की सुंदरता को देखने पहुंचते हैं तो लोहे की बल्ली से पटा हुआ मिलता है। वे न तो इसके ऊपर चढ़ पाते हैं और न ही अंदर का नजारा ही देख पाते हैं। ज्ञात हो कि अंग्रेजों के जमाने में गोल घर का निर्माण ख्0 जनवरी क्78ब् में शुरू हुआ था और केवल ख् साल में बनकर तैयार हो गया था। लेकिन आज आधुनिक युग में दरारें भरने में भ् साल से ज्यादा लग गया लेकिन फिर भी कार्य पूरा नहीं हो पाया है। आज दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की स्पेशल स्टोरी में पढि़ए गोलघर का सच

क्979 में स्मारक की पहचान

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया न गोलघर को क्979 में प्राचीन स्मारक और पुरात्तव स्थल के अवशेष मानते हुए संरक्षित स्मारक घोषित किया था। लेकिन इसके विकास के लिए मरम्मत के अलावा और कोई कार्य नहीं हुआ है।

मरम्मत पर 98 लाख रुपए खर्च

गोलघर की दरारें भरने के लिए बिहार सरकार ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को 98 लाख रुपए वर्ष ख्0क्ख् में सौपी थी। भ् साल के बाद भी काम अधूरा है। हालांकि अधिकारियों की मानें तो काम पूरा हो गया है लेकिन लोहे की बल्ली गोलघर की सुंदरता पर कोहरे की तरह जमा है। ज्ञात हो कि गोलघर का निर्माण अनाज रखने के लिए हुआ था। आजादी के बाद सरकार ने अनाज रखना आरंभ किया। क्999 में इसे भी बंद कर दिया गया। इसे लेकर पुरातत्व विभाग के निदेशक अतुल वर्मा से डीजे आई नेक्स्ट के रिपोर्टर ने बात की आप भी जानिए।

पुरातत्व विभाग के निदेशक अतुल वर्मा से रिपोर्टर की सीधी बातचीत

रिपोर्टर - गोलघर के मरम्मत का काम कब पूरा होगा?

निदेशक- मरम्मत का काम तो पूरा हो गया है।

रिपोर्टर - लेकिन लोहे की बल्ली से पूरा गोलघर पटा हुआ है आप कह रहे हैं कि कार्य पूरा हो गया है?

निदेशक- काम पूरा हो चुका है जल्द ही लोहे की बल्ली हटा ली जाएगी।

रिपोर्टर- मरम्मत में कितनी राशि खर्च की गई है?

निदेशक - 98 लाख रुपए का बजट है।

रिपोर्टर- क्या मरम्मत का सब काम हो गया है?

निदेशक - अभी मैं मीटिंग में हूं कुछ देर के बाद बात करिए।

रिपोर्टर- क्या काम हुआ ये तो बता दीजिए?

निदेशक- फाइल देखनी पड़ेगी, बाद में कॉल करें। यह कहते हुए फोन डिकनेक्ट कर देते हैं।

इसके लिए आप पुरातत्व विभाग के अधिकरियों से बात करें। इस बारे में कुछ भी बोलने के लिए सक्षम नहीं हूं।

राजकुमार झा, डायरेक्टर, कला संस्कृति विभाग