ट्रेन लेट हो गई

हमें इलाहाबाद में एक परिचित के यहां जाना था जो झूंसी इलाके में रहते हैं। ट्रेन लेट हो गई थी, इसलिए वो स्टेशन नहीं आए थे और इतनी रात गए वहां जाना भी ठीक नहीं था। हमने कुछ घंटे प्लेटफॉर्म पर ही बीताने का फैसला किया। वहां पुलिस और जवान मुस्तैदी से तैनात थे। प्लेटफॉर्म पर जहां-तहां तीर्थ यात्री सोए हुए थे। वहां बैठने की भी मुश्किल से जगह मिली। सुबह पांच बजे हम झूंसी के लिए निकले। हमें सिटी का आइडिया नहीं था। कोई ऑटो वहां के लिए नहीं मिल रहा था। रिजर्व में चार सौ रुपये तक की मांग हो रही थी। हमने रिक्शा किया, जिसने दो सौ रुपये वसूले।

जगमगाता कुंभ

गंगा पुल से गुजरते वक्त वहां का नजार विहंगम था। दोनों छोर पर जहां तक नजर जा सकती थी वहां जगमगाता कुंभ क्षेत्र नजर आ रहा था। अलग-अलग अखाड़ों और साधु-संन्यासियों के टेंट लगे थे। कई जगह टेंट उखड़ भी रहे थे, जिससे लग रहा था कुंभ अपने चरम पर पहुंच के अब ढलान की ओर है। परिचित के घर फ्रेश होकर हम लोग स्नान के लिए निकले। रास्ते में कुछ देर के लिए बारिश भी शुरू हुई, लेकिन फिर मौसम साफ हो गया। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मी तैनात दिखे। लेकिन सिक्योरिटी चेक करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं दिखी। मन में आया अगर कोई आतंकवादी घुस आया तो क्या होगा?

चेहरे पर मुस्कुराहट

संगम तट पर स्नान किया तो पानी में पूजा के फूल, दीये, नारियल आदि तैर रहे थे। किनारे कोई पूजा कर दीया और अगरबत्ती जलाकर छोड़ गया था तो कोई श्राद्धकर्म कर अन्न बिखेर गया था। कुछ विदेशी भी दिखे जो वहीं स्नान कर भारतीय संस्कृति के रंग में रंगे दिखे। उस भीड़ और गंदगी के बावजूद उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी। महिलाओं के लिए कपड़े चेंज करने का वहां कोई इंतजाम नहीं था। लोग ग्र्रुप में आते कोई नहाने जाता तो कोई सामान की रखवाली करता, फिर वहीं कपड़े बदलना और कपड़े सुखाना इससे वहां अनावश्यक भीड़ इकïट्ठा हो रही थी।

पुलिस की बैरिकेटिंग

शाम में एक बार फिर हम कुछ मंदिरों के दर्शन के लिए निकले जो कुंभ क्षेत्र के आसपास ही थे। लेकिन न तो कोई ऑटो मिल रहा था और रिक्शे वाले भी दो किलोमीटर के सौ रुपये मांग रहे थे। हम पैदल ही गए। वेणी माधव, नरसिंह और अलोपी देवी का दर्शन किया। फिर इलाहाबाद की कचौड़ी सब्जी, इलाहाबादी समोसे का लुत्फ उठाया, जो लाजवाब था। सादा समोसा छह रुपए प्लेट था। अगले दिन माघी पूर्णिमा का प्रमुख स्नान था। शाम से पुलिस की बैरिकेटिंग शुरू हो गई थी। पता चला कि रात से ही वाहनों की एंट्री बंद हो जाएगी। हमें सुबह स्नान कर दिल्ली के लिए ट्रेन पकडऩी थी।

लौटकर राहत

सुबह हम लोग छह बजे स्नान के लिए निकले। नहाकर निकलने में नौ बज चुके थे। मुझे दिल्ली के लिए नार्थ ईस्ट या सीमांचल ट्रेन पकडऩी थी। रिजर्वेशन नहीं था। स्टेशन तक जाना बड़ा मुश्किल लग रहा था। सडक़ों पर पैर रखने की भी जगह नहीं थी। जनसमुदाय रेंग रहा था। आने जाने का कोई साधन नजर नहीं आ रहा था। थोड़ा टेंशन होने लगा। खुद को कोसने भी लगा कि क्यों इस दिन आया। पहले दिन से ही बहुत पदयात्रा हो चुकी थी, इसलिए और दस किलोमीटर पैदल चलने की स्थिति में नहीं थे। कानपुर के लिए बस दिखी हमने स्टेशन जाने का फैसला टाला और बस से कानपुर निकल गए। कानपुर पहुंचकर राहत मिली। वहां से ट्रेन से हम अपने साथी के संग सकुशल दिल्ली लौट आए।

कुंभ जाने से पहले

कुंभ के लिए जाने से पहले कई निगेटिव बातें सुनने को मिल रही थी। जैसे गंगा का पानी नहाने लायक नहीं है। वहां नहाने से स्कीन डिजीज हो सकती है। वहां महामारी फैलने का खतरा है, कुछ हादसे भी हो चुके थे, कई लोग वहां जाने का प्रोग्र्राम कैंसिल कर चुके थे। लेकिन उस अनुभूति को जीने की इच्छा थी। आखिर बारह वर्ष के अंतराल पर आयोजन होता है और देश-ïिवदेश से लोग आते हैं। इस ग्रेट ओकेजन को तो फील करना ही चाहिए।

एक बार अनुभव लें

सरकार और प्रशासन व्यवस्था को और बेहतर करे। आखिर कुंभ से सिर्फ एक राज्य ही नहीं बल्कि देश की छवि देश और दुनिया में बनती या बिगड़ती है। कुंभ क्षेत्र में फूल-पत्ती, नारियल, पूजा या श्राद्धकर्म पर बैन लगाना चाहिए। कुंभ के दौरान केवल स्नान ही करने की इजाजत हो, जिससे गंदगी ना फैले। अस्थाई शौैचालय की प्रॉपर इंतजाम हो। लोगों को भी समझना होगा वो वहां अच्छे उद्देश्य से गए हैं वहां गंदगी ना फैलाएं, महिलाओं के लिए कपड़े बदलने के लिए व्यवस्था होनी चाहिए। आने-जाने की प्रॉपर व्यवस्था होनी चाहिए। अगर आप अभी तक नहीं गए हैं तो जरूर जाएं। अब कुछ ही दिन बचे हैं और यह मौका बारह साल बाद ही मिलेगा। वहां के अद्भुत अनुभूति और विहंगम नजारे को जाकर महसूस कीजिए और हां इलाहाबादी समोसे का लुत्फ जरूर उठाएं।

Reported By : Divyanshu Bhardwaj