जलजमाव पैदा हो रहा है

पानी आसपास के एरिया में चला जा रहा है, जिससे भारी जलजमाव पैदा हो रहा है। यही हालत कंकड़बाग एरिया के नालों की है। नाले की उंचाई सड़क और आसपास के घर से अधिक होने की वजह से पानी एरिया में ही रह जा रहा है, वहीं जब यह पानी मैनहोल के आसपास आता है, तो उसे निकलने की जगह भी नहीं मिल पाती है। कर्मी किसी दिन आ भी जाते हैं, तो 70 साल पुरानी लकड़ी की टेक्निक का सहारा लेते हैं। इस वजह से जलजमाव जस का तस लगा रहता है और धीरे-धीरे अपने आप सूख जाता है।

कागजों पर सफाई की पूरी तैयारी

नाले के निर्माण को एकबारगी छोड़ भी दिया जाए, तो किसी भी एरिया के जलजमाव से निपटने के लिए निगम की तैयारी कागजों पर खूब दिखती है। जलजमाव से निजात दिलाने के लिए निगम कागजी तौर पर काफी मजबूत रहता है। हर वार्ड और हर एरिया के लिए लोगों की तैनाती रहती है। इसमें सफाई मजदूर से लेकर सेनिटरी इंसपेक्टर, चीफ सेनिटरी इंसपेक्टर, एग्जीक्यूटिव ऑफिसर तक की तैनाती रहती है। ये पानी खत्म होते ही अपने-अपने एरिया में घूमकर जलजमाव को हटाते हैं, पर ग्राउंड लेवल पर ऐसा कुछ भी नहीं होता। बारिश के 48 घंटे बीत जाने के बाद भी पाटलिपुत्रा एरिया की हालत वैसी ही है. 

अभी ड्रेनेज की व्यवस्था

डोर टू डोर नाले को सीधे मेन नाला में मिलाने की कोशिश की जाती है। इसमें डोर टू डोर नाला सड़क से उंचा है, जिससे पानी उस पर नहीं चढ़ पाता है। इसका दूसरे नाले से कनेक्शन भी प्रोपर चेन में नहीं किया गया है, जिस कारण परेशानी आती है।

मैन्युअल साफ होने से आती है परेशानी

पूर्व काउंसलर ज्योति गुप्ता ने बताया कि निगम की ओर से सफाई सिर्फ मेन नाला का ही हो पाता है। छोटे नालों की सफाई हर वार्ड में मैन्युअली की जाती है। इसमें काउंसलर के लोग होते हैं, जो काम भी नहीं करते हैं और सफाई का पैसा भी उठाते हैं। लिहाजा नाला जस का तस बना रहता है। बरसात के बाद यह भी उंचा उठ जाता है और पानी की निकासी नहीं हो पाती है।

नाले में फेंकते हैं घर का कचरा

काउंसलर की बेरुखी झेल रहे नाले के ऊपर आसपास के लोग का कहर भी जारी रहता है। लोकल नाले में कचरा भी फेंका जाता है, जिससे नाला पूरी तरह से जाम हो जाता है और सफाई नहीं होने की वजह से वो गंदगी और कचरा का रूप ले लेती है।

निगम कर्मी जुटे हुए रहते हैं

जलजमाव की प्रॉब्लम को दूर करने के लिए निगम कर्मी जुटे हुए रहते हैं। एरिया से लोगों की शिकायत पर तो फौरन कार्रवायी होती है। बारिश खत्म होने के बाद ही निकासी पर ध्यान दिया जाता है। अगर कोई टाइम पर नहीं पहुंचा होता है, तो शिकायत पर फौरन कार्रवायी होती है।

48 घंटे बाद भी जस का तस पानी

निगम एरिया से जलजमाव हट नहीं पाया है। 48 घंटे बाद भी निगम के विभिन्न एरिया में जलजमाव की वजह से लोगों का चलना दुश्वार हो गया है। एसकेपुरी और पुनाईचक एरिया में दर्जनों मैनहोल खुले होने की वजह से एक्सीडेंट की घटना आए दिन होती रहती हैं। शास्त्रीनगर और पटेल नगर रहने वाले दिनभर फजीहत झेलते रहे। पुनाईचक पेट्रोल पंप से आगे की स्थिति काफी भयावह है। डॉ। एसएस झा के घर के सामने की सड़क टूटी होने की वजह से आने-जाने वालों को भारी परेशानी होती है।

निगम की नींद नहीं खुलती है

एडवोकेट सुशांत सिंह चौहान ने बताया कि बारिश के बाद भी निगम की नींद नहीं खुलती है। दो सालों से सड़क की यह हालत है और इसे अब तक ठीक नहीं किया गया है। वहीं, पाटलिपुत्रा एरिया की हालत जस की तस बनी हुई है। पानी की निकासी के लिए लोकल लेवल पर जेनरेटर का यूज कर इधर से उधर पानी को निकाला जा रहा है, लेकिन जलजमाव की प्रॉब्लम बरकरार है। रोजाना पाटलिपुत्रा आने जाने वाले राकेश कुमार ने बताया कि हर बार जलजमाव होता है, पर फिर वो खुद व खुद हट जाता है। हटाने के लिए निगम की ओर से कोई खास कदम नहीं उठाया जाता है.

 
ऐसी होनी चाहिए ड्रेनेज की व्यवस्था

डोर टू डोर नाला - जो थोड़ा उंचा हो

एरिया वाइज नाला - यह डोर टू डोर नाला से नीचे हो

मेन नाला - यह एरिया वाइज नाला से भी नीचे होनी चाहिए, ताकि पानी आसानी से नीचे गिरते हुए आगे बढ़े।

(जैसा इंजीनियर रविंद्र कुमार ने बताया)
 

जलजमाव के दोषी ऑफिसर्स

- जलजमाव को हटाने के लिए 25 कर्मी रहते हैं तैनात।

- इसकी निगरानी के लिए सेनिटरी इंसपेक्टर की होती है बहाली।

- इसके ऊपर चीफ सेनिटरी इंसपेक्टर और सर्किल वाइज एग्जीक्यूटिव ऑफिसर होते हैं।

- सेनिटरी इंसपेक्टर, चीफ सेनिटरी इंसपेक्टर और सर्किल वाइज एग्जीक्यूटिव ऑफिसर पर 60-70 हजार का आता है खर्चा।

- इसके अलावा एनसीसी में दो और रेस्ट सर्किल में एक-एक एग्जीक्यूटिव इंजीनियर होते हैं रिस्पांसिबल।