डीजे आई-नेक्स्ट ने पहले दी थी जानकारी
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लखनऊ।
देश के सबसे बड़े एक्सप्रेस वे पर यह सिस्टम लगाने के लिए रिलायंस भी अपनी इच्छा जता चुका है। इसकी स्थापना के बाद एक्सप्रेस वे पर गाडिय़ों को अधाधुंध स्पीड पर दौड़ाने वाले चालक भी बचकर नहीं निकल पाएंगे। उल्लेखनीय है कि दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट ने विगत 7 जुलाई 2016 के अंक में एक्सप्रेस वे पर एडवांस टै्रफिक मैनेजमेंट सिस्टम की स्थापना किए जाने की जानकारी दी थी। राज्य सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह ने कैबिनेट द्वारा इस बाबत लिए गये फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि इस आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से ताजनगरी तक सुरक्षित सफर किया जा सकेगा। मालूम हो कि इस सिस्टम में तमाम अन्य खूबियां भी होंगी। उदाहरण के तौर पर सफर के दौरान फॉग, आंधी, बारिश, तूफान के बारे में भी यात्रियों को पहले जानकारी दी जा सकेगी।

मोबाइल नेटवर्क के लिए एमआरसीएस लगाए जाएं
पूरे एक्सप्रेस-वे पर आप्टिकल फाइबर केबिल (ओएफसी) का जाल बिछाने के अलावा निर्बाध मोबाइल नेटवर्क के लिए एमआरसीएस लगाए जाएंगे। इस सिस्टम में करीब 125 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है जिसमें से 30 करोड़ रुपये मंजूर कर दिए गये है। यूपीडा इसके लिए एक्सप्रेस-वे के किसी एक टॉल प्लाजा पर कंट्रोल सेंटर स्थापित करेगा। यह सेंटर करीब तीन सौ किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस-वे में छह जगहों पर लगने वाले मीटिरियालोजिकल स्टेशन से जुड़ा रहेगा। ये स्टेशन तापमान, मौसम, हवा की गति व दबाव आदि कंट्रोल को भेजेंगे जिसे रास्ते में लगे वैरियेबिल मैसेज साइन बोर्ड के जरिए प्रदर्शित किया जाएगा। इसके अलावा यह स्टेशन पेवमेंट (सड़क) का तापमान भी बताएगा जिससे गति नियंत्रित कर वाहनों के टायर फटने से बचा जा सकेगा।

कंट्रोल सेंटर को फोन करके तुरंत मदद मांग सकेंगे
वहीं इमरजेंसी में कंट्रोल सेंटर से संपर्क करने के लिए प्रत्येक दो किलोमीटर पर इमरजेंसी कॉल बॉक्स भी लगाए जाएंगे। रास्ते में कोई भी अनहोनी होने पर यात्री इसके जरिए कंट्रोल सेंटर को फोन करके तुरंत मदद मांग सकेंगे। अक्सर ग्रामीण अथवा दूरस्थ इलाकों में मोबाइल नेटवर्क बाधित होने जैसी समस्या को ध्यान में रखते हुए एक्सप्रेस-वे पर मोबाइल रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम स्थापित किए जाएंगे जो हर जगह मोबाइल नेटवर्क की उपलब्धता सुनिश्चित करेंगे। इतनी खूबियां समेटने के बाद यह देश का पहला हाईटेक एक्सप्रेस-वे होने का तमगा भी हासिल कर सकेगा। मालूम हो कि मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे और यमुना एक्सप्रेस-वे पर इस तरह का प्रयोग करने की कोशिश तो हुई थी लेकिन इसे पूरी तरह लागू नहीं किया जा सका।

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