प्रोजेक्ट कॉस्ट बढ़ गया, पर दस सालों में आधा भी नहीं बन पाया है एम्स पटना

- एम्स पटना को 25 दिसंबर को नेशनल को डेडिकेट करने की है योजना

- अभी 70 परसर्ेंट काम हैं बाकी, पेशेंट तो बढ़ रहे पर सुविधाएं जस की तस

PATNA: ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) पटना दस साल के बाद भी आधा भी नहीं बन पाया है, जबकि प्रोजेक्ट कॉस्ट तीन गुना हो गई है। ख्00ब् में इस प्रोजेक्ट का कॉस्ट फ्भ्0 (एस्टिमेटेड) करोड़ रुपया था। गवर्नमेंट की सुस्त चाल के कारण जहां एक ओर प्रोजेक्ट कॉस्ट बढ़ा, वहीं पेशेंट की संख्या भी बढ़ी। नहीं बढ़ी तो हेल्थ फैसिलिटी जिसका लक्ष्य रखा गया था। वर्तमान समय में ओपीडी के अलावा आयुष और पल्मुनरी मेडिसिन रिहैबिलिटेशन डिपार्टमेंट रन कर रहा है। सैकड़ों एकड़ में फैला एम्स आज सालों बाद भी चौबीसों घंटे हेल्थ केयर की सर्विस देने में नाकाम है।

सिर्फ घोषणाएं होती हैं यहां

पिछले मंथ ख्क् जून को एम्स पटना में केन्द्रीय हेल्थ मिनिस्टर हर्षव‌र्द्धन ने कहा था कि इसे अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन ख्भ् दिसंबर, ख्0क्ब् को राष्ट्र को समर्पित किया जाएगा, पर यहां की ग्राउंड रियालिटी इस घोषणा से कोसों दूर है। कंस्ट्रक्शन कम्पनी ही नहीं, एम्स एडमिनिस्ट्रेशन भी यह मानता है कि अभी 70 परसर्ेंट काम बाकी है। कंस्ट्रक्शन कंपनीज का कहना है कि न मंत्री और नहीं कोई अधिकारी यह बात पूछने आया कि आखिर कितना काम बाकी है, बस घोषणा कर दी गई।

'पेशेंट तो कम ही आते हैं'

एम्स पटना के डायरेक्टर प्रो। जीके सिंह ने बताया कि यहां तो पेशेंट कम ही आते हैं, इसलिए अगर कंस्ट्रक्शन वर्क स्लो चल रहा है तो इसका कोई खास असर पेशेंट केयर पर नहीं पड़ेगा। ओपीडी में हर डिपार्टमेंट के पेशेंट का इलाज हो रहा है। यहां ओपीडी में बेड स्ट्रेंथ अभी क्80 है, पर भ्0 पेशेंट तक ही बेड यूज हो रहा है। जब यहां के पेशेंट से बातचीत की गई, तो पता चला कि यहां तो पेशेंट की लंबी लाइन लगी रहती है। लोकल और दूर-दराज हर जगह के पेशेंट यहां आते हैं।

काफी कुछ बनना बाकी है

अभी तक जो कुछ फंक्शनल है, वह मात्र फ्0 परर्सेट है। अभी आधा कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट का आधा काम भी नहीं हो पाया है। यहां पेशेंट के लिए ओपीडी तो शुरू कर दी गई है, पर अभी बहुत कुछ बाकी है शुरू करना। इनमें ट्रामा सेंटर, फ्0 ऑपरेशन थियेटर, स्पेशलाइज डिपार्टमेंट सेंटर, हॉस्टल, गैस प्लांट, वार्ड ब्लॉक आदि। यही वजह है कि यहां अभी तक चौबीसों घंटे हेल्थ केयर सर्विस प्रोवाइड कराना एक सपना ही बना हुआ है।

कंपनी को नहीं मिला फंड

करीब तीन महीने पहले काम में तेजी लाने के मकसद से कंस्ट्रक्शन कंपनी ने एडिशनल मोबलाइजेशन के रूप में क्भ् करोड़ रुपए की मांग की थी, पर नहीं मिला। कंपनी का कहना है कि इसके कारण उनके काम पर असर पड़ा है।

प्रोजेक्ट वर्क, फंग्शनालिटी, फैसिलिटी और पेशेंट केयर में से प्रोजेक्ट वर्क ही पिछड़ा हुआ है, बाकी कहीं कोई दिक्कत नहीं है। सेंट्रल हेल्थ मिनिस्टर हर्षव‌र्द्धन ने भी यहां की फंग्सनालिटी को एप्रोप्रिएट कहा था। जहां तक एडवांस मशीन की बात है तो करीब 99 परर्सेट ट्रीटमेंट इसके बिना ही हो जाता है। अगर यहां चौबीसों घंटे इमरजेंसी की सुविधा शुरू कर सकें, तो यह सबसे बड़ी बात होगी।

प्रो। जीके सिंह, डायरेक्टर, एम्स पटना

मेरी मां को अल्सर की बीमारी है। जेनरल मेडिसिन डिपार्टमेंट में लंबी लाइन थी। दो घंटे के बाद ही दिखा पाया।

-विजय सिंह, नौबतपुर

मेरे कमर में पिछले कुछ दिनों से दर्द था, तो यहां दिखाने आई। डॉक्टर से दिखाने के लिए पहले से ही बहुत भीड़ थी।

-मीना देवी, बभनपुर

मैं अपने बेटे को दिखाने के लिए यहां आया। अल्ट्रासाउंड के लिए कहा है डॉक्टर ने, पर यहां तो टेस्ट के लिए एक महीना लगेगा। बाहर से टेस्ट कराना होगा।

-शिवपार्वती नंदन, फुलवारीशरीफ