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PATNA : दिवाली में हर कोई पटाखे जलाने को लेकर उत्साहित रहता है। लेकिन इस बार पटाखे जलाने से पहले एक बार जरूर सोचें। पटना दुनिया का पांचवां सबसे प्रदूषित शहर बन चुका है। एयर क्वालिटी इंडेक्स के अनुसार वर्तमान में पटनाइट्स दोगुना ज्यादा प्रदूषित हवा में सांसें ले रहे हैं। अगर इस स्थिति से निपटने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो जाए।

पटना में भी बनने लगा स्मॉग

देशभर में इस समय दिल्ली की हवा सबसे प्रदूषित है और यह सबसे खतरनाक स्तर को भी पार कर गया है। एनसीआर में 10 दिनों के लिए कंस्ट्रक्शन पर रोक लगा दिया गया है। पॉल्यूशन फैलाने वाली इंडस्ट्री को भी बंद करने का आदेश जारी कर दिया गया है। अगर पटना की बात करे तो यह कुछ कदम ही पीछे है। इसका कारण है कि यहां भी दिल्ली जैसा स्मॉग बनना शुरू हो गया है। इसके साथ ही ठंड की शुरूआत से हवा की गति मंद होने और नमी की मात्रा बढ़ने से भी प्रदूषण का असर अभी से महसूस किया जा सकता है। एक्सप‌र्ट्स की माने तो पटना की हवा में पॉल्यूशन की स्थिति अभी से ही अस्वास्थकर है। दिवाली के बाद यही स्थिति और भी भयावह हो सकती है।

गंगा किनारे के शहर प्रदूषित

प्रदूषण का स्तर दिल्ली के बाद गंगा के किनारे बसे शहरों में ज्यादा है। इसमें भी पटना अव्वल है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आंकड़े भी यही दर्शाते हैं। एक्सप‌र्ट्स के अनुसार गैस और प्रदूषक तत्व मिलकर स्मॉग बनाते हैं। यह विंटर सीजन में ही होता है। इन दिनों वेस्टरली विंड चल रही है। इसमें राजस्थान की ओर से चलने वाली हवा रेत के बारीक कणों को पूरब की ओर बहाकर गंगा के मैदानी हिस्सों में बिखेर देता है। पटना इससे खासा प्रभावित है।

कोयला और लकड़ी जलाने से बढ़ी परेशानी

पर्यावरणविद एवं सीड्स संस्था के प्रमुख रमापति कुमार का कहना है कि प्रदूषक तत्व हर मौसम में रहते हैं। लेकिन ठंड में इसका असर बहुत ज्यादा होता है। इस सीजन में कूड़े को जलाना, गंगा के किनारे ईट भट्ठों का पुराने तरीके से संचालन, छोटे होटलों और ढाबा में कोयले का प्रयोग आदि भी बड़ा कारण है।

ठंड शुरू होते ही राजधानी में बढ़ने लगा प्रदूषण का स्तर

ठंड शुरू होते ही स्मॉग का बनना।

वातावरण के सबसे निचले स्तर पर सर्वाधिक प्रदूषण रिकॉर्ड होना।

ठंड के आते ही प्रदूषक तत्व खुली हवा में घुलकर विसर्जित न हो वातावरण के निचले स्तर पर ही जमा होते रहना।

घनी आबादी और ओपन स्पेस बहुत कम होना और प्रदूषित तत्व जमा रहना।