चार दिन बाद मिले नए कप्तान

जिले के कप्तान केवल खुराना की अचानक विदाई के चार दिन बाद अजय रौतेला के रूप में दून को नया कप्तान मिला। मूल रूप से अल्मोड़ा जनपद के बरगल रौतेला के रहने वाले अजय रौतेला को पुलिसिंग का लंबा अनुभव है। महकमे को डिप्टी एसपी के पोस्ट पर ज्वॉइन करने वाले रौतेला यूपी के पीलीभीत, कानपुर नगर, देहरादून, मुजफ्फरनगर, उन्नाव, लखनऊ, देहरादून, चमोली और हरिद्वार में सर्किल ऑफिसर रह चुके हैं। इसके बाद जब उन्हें प्रमोशन मिला तो वे हरिद्वार, रूद्रप्रयाग, देहरादून के पद पर तैनात रहे। प्रमोशन मिलने के बाद अजय रौतेला वर्ष 2001 में आईपीएस बने।

खराब है ट्रैफिक का हाल

बतौर आईपीएस अजय रौतेला एसपी पिथौरागढ़ व पौड़ी, कमांडेंट 40 वीं वाहिनी पीएसी, एसएसपी उधमसिंह नगर, कमांडेंट 31 वीं वाहिनी पीएसी, उप प्रधानाचार्य पीटीसी नरेंद्र नगर और हाल में कमांडेंट 46 वीं वाहिनी पीएसी में तैनात रहें। बातचीत के दौरान उन्होंने कहा मीडिया के जरिए पता लगा कि दून का ट्रैफिक सिस्टम पटरी से उतर गया है, जिसे सुचारू रूप से चलाने के लिए वे विशेष पहल करेंगे। नए कप्तान ने पूर्व एसएसपी दून केवल खुराना द्वारा किए गए ट्रैफिक सुधार की सराहना भी की। वुमेन सेफ्टी भी राजधानी के नए कप्तान की प्राथमिकता में शामिल है। इसके अलावा त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को शांतिपूर्वक संपन्न कराना उनके लिए अहम है।

अपराध पर काबू के साथ शांति व्यवस्था बनाए रखना पुलिस की प्राथमिकता होगी। ट्रैफिक सिस्टम को लेकर बेहतर प्रयास किए जाएंगे, ताकि जनता को असुविधा न हो। वुमेन सेफ्टी के लिए ठोस कदम उठना भी प्राथमिकता में शामिल है।

-अजय रौतेला, एसएसपी, देहरादून

जिम्मेदारी के आगे चुनौतियां हैं तमाम  

राजधानी के नए कप्तान के लिए पदभार ग्र्रहण करते ही कई चुनौती मुंह खोले खड़ी हैैं। जिन पर खरा उतरने के बाद ही वे जनता की नजर में लोकप्रियता हासिल करते हैैं। कौन-कौन सी है ये चुनौती जानते हैैं इस रिपोर्ट में

क्राइम कंट्रोल : राजधानी में दिनों दिन अपराध का ग्र्राफ बढ़ता जा रहा है। बदमाश दिन-दहाड़े हत्या, लूट डकैती सहित अन्य आपराधिक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैैं। महज हत्याओं की बात करें तो इस साल हत्या की तीन वारदात सामने आ चुकी है। जबकि पिछले साल हत्या की 24 वारदातें हुई थी, जिसमें से आधे से भी कम वारदातों का खुलासा हुआ था।

ट्रैफिक कंट्रोल : राजधानी में ट्रैफिक का दबाव बढ़ता जा रहा है, लेकिन सड़कों का उसके अनुरूप चौड़ीकरण नहीं हो पा रहा है। नतीजा घंटों सड़कों पर वाहन रेंगते रहते हैैं। ट्रैफिक आम जनता से जुड़ा हुआ मुद्दा है। जिससे हर कोई इत्तेफाक रखता है। हालांकि गत वर्ष ट्रैफिक को लेकर काफी अच्छा काम हुआ था, लेकिन अभी भी कुछ सुधार किए जाने बाकी हैं।

मनोबल बढऩा : पुलिस महकमे में ग्र्राउंड लेवल पर काम करने वाले दारोगा और सिपाहियों का मनोबल खासा गिरा हुआ है। वे उत्साह विहीन हो चुके हैैं। जिस कारण वे काम में भी मन लगा पा रहे हैैं। ऐसी स्थिति में उनका मनोबल बढ़ाने की जरूरत है। यदि इनका मनोबल बढ़ाए जाए तो वह हताश निराश हो चुके पुलिस कर्मियों के लिए संजीवनी का काम करेगी।

मुखबिर तंत्र : पुलिस का मुखबिर तंत्र खासा कमजोर हो गया है। जिस कारण अपराधी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ पाते हैैं। मुखबिर तंत्र की कमजोरी की बात आला अधिकारी भी स्वीकार कर चुके हैैं। मुखबिर तंत्र को मजबूत करना पुलिस के लिए खासा अहम है।

हाईटेक : अपराधी लगातार हाईटेक होते जा रहे हैैं, लेकिन पुलिस अभी भी पुराने ढर्रे पर काम कर रही है। पुलिस के पास जो भी सुविधाएं है वह काफी पुरानी हो चुकी हैं। पुलिस को हाईटेक किए जाने की खासी जरूरत है। ताकि वह अपराधियों से लोहा ले सके।

अनुशासन : भले ही उत्तराखंड पुलिस को मित्र पुलिस कहा जाता हो, लेकिन यह बात कई बार गलत साबित हो जाती है। कई मर्तबा पुलिस तहजीब और अदब से पेश नहीं आती, जिस कारण लोगों में पुलिस की नकारात्मक छवि बनती है जो पुलिस के लिए ठीक नहीं है। इस छवि को सुधारने के लिए कुछ कदम उठाए जाने जरूरी हैं।

नशे पर शिकंजा : एजुकेशन हब के तौर पर पहचान रखने वाली राजधानी अब नशे के धंधेबाजों का अड्ड़ा बन गई है। वे छात्रों को नशे का आदी बना रहे हैैं। पुलिस जिन्हें अरेस्ट कर रही है वे सिर्फ इस्तेमाल किए जाने वाले लोग हैैं। असल सौदागर अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैैं। यदि नशे के इस नेक्सेस के तोडऩे में कामयाबी हासिल होती है तो ये बड़ी उपलब्धि होगी।