सेना के तमाम दावे पर अंगुली

जम्मू-कश्मीर में एलओसी से सटे केरन सेक्टर के शालबट्टू इलाके में डेरा डाले पाकिस्तानी घुसपैठियों को सेना ने भले ही 8 अक्टूबर को खदेड़ दिया हो, लेकिन इस अभियान का भूत उसका पीछा नहीं छोड़ रहा है. अब केंद्रीय खुफिया एवं सुरक्षा एजेंसियों ने इस मुठभेड़ को लेकर सेना के दावे पर अंगुली उठाई है. उनका कहना है कि यह अभियान व्यवहारिक तौर पर 13 अक्टूबर को समाप्त हुआ जबकि सेना ने 8 अक्टूबर को इस ऑपरेशन के खत्म होने का एलान किया था. इस घटनाक्रम के मद्देनजर रक्षा मंत्री एके एंटनी ने इन सवालों का जवाब सेना से पूछने का फैसला किया है. इस महीने के अंत में सेना के तीनों अंग के प्रमुखों और रक्षा सचिव के साथ बैठक कर वह मुठभेड़ की पूरी सच्चाई जानने की कोशिश करेंगे.

पीएम ने जताई नाराजगी

आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि केरन घुसपैठ से निपटने के तौर-तरीकों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाराजगी जताने के बाद ही एंटनी ने उच्चस्तरीय बैठक करने का निर्णय किया. तीनों अंग के प्रमुखों और रक्षा सचिव आरके माथुर के साथ बैठक में वह 24 सितंबर से 8 अक्टूबर तक चले केरन मुठभेड़ की पूरी तह तक जाएंगे.

ऑपरेशन पूरा होने में इतना टाइम क्यों

रक्षा मंत्री यह जानने की कोशिश करेंगे कि ऑपरेशन के पूरा होने में आखिरकार 15 दिनों का वक्त क्यों लगा और इस दौरान कब क्या-क्या हुआ. वह इस प्रकरण को लेकर खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब भी सेना से जानना चाहेंगे. बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन के भी मौजूद रहने की संभावना है. सूत्रों के अनुसार सोमवार से शुरू हो रहे सैन्य कमांडरों के चार दिवसीय सम्मेलन में भी इस मुद्दे के प्रमुखता से उठने की उम्मीद है.

सेना की एफआईआर पर सवाल

सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय खुफिया एवं सुरक्षा एजेंसियों ने केरन सेक्टर में मुठभेड़ को लेकर सेना की एफआइआर पर भी सवाल उठाया है. उनका कहना है कि एफआइआर में जिन स्थानों पर मुठभेड़ का जिक्र है, वे शालबट्टू से काफी दूर हैं. खुफिया एजेंसियों ने कश्मीर में तैनात सेना की 15वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह के 26 सितंबर के उस बयान की भी धज्जी उड़ाई है, जिसमें उन्होंने शालबट्टू में डेरा डाले 30 से 40 आतंकियों में से 12 घुसपैठियों के मारे जाने का दावा किया था.

चौतरफा घेराबंदी का दावा फिर कैसे भागे

एजेंसियों का कहना है कि अगर शालबट्टू में 12 घुसपैठिए मारे गए तो उनके शव वापस ले जाने के लिए कम से काम 24 लोगों की जरूरत रही होगी. यह कैसे संभव है जब सेना ने घुसपैठियों की चौतरफा घेराबंदी का दावा किया था तो वे कैसे अपने साथियों का शव लेकर शालबट्टू से बाहर निकल कर पाकिस्तान चले गए. सेना ने इस पूरे अभियान में पांच जवानों के घायल और एक के शहीद होने की बात कही थी. लेकिन शालबट्टू में एक भी घुसपैठिए का शव नहीं मिला था.

8 नहीं 13 को हुआ कब्जा

खुफिया एजेंसियों ने खुखरी, कुल्हार और मंगेता स्थित अग्रिम निगरानी चौकियों पर दोबारा कब्जे को लेकर भी सेना के दावे की धज्जियां उड़ाई है. उनका कहना है कि बीएसएफ और सेना के जवान 8 को नहीं बल्कि 13 अक्टूबर को ही इन चौकियों पर काबिज हुए. केरन सेक्टर में घुसपैठ तब हुई थी जब सितंबर के दूसरे पखवाड़े में इन तीनों अग्रिम चौकियों को कुमाऊं रेजिमेंट के जवानों ने खाली किया लेकिन उनकी जगह लेने के लिए गोरखा रेजिमेंट के जवान समय से वहां नहीं पहुंच पाए थे.

23 सितंबर को चला घुसपैठ का पता

भारतीय सेना को इस घुसपैठ का पता 23 सितंबर को तब चला, जब एक सैन्य गश्ती दल अग्रिम निगरानी चौकी खुखरी की तरफ जा रहा था. घुसपैठियों ने उस पर ताबड़तोड़ फायरिंग की थी. इसके बाद सेना की 268 माउंटेन ब्रिगेड ने 24 सितंबर को शालबट्टू इलाके को खाली कराने के लिए अभियान शुरू किया था.

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