कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी 'अक्षयनवमी' कहलाती है। इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्नादि के दान से अक्षय फल प्राप्त होता है।

ब्रह्मावैवर्तपुराण के वचन के अनुसार, अष्टमी विद्धा नवमी ग्रहण करना चाहिये। दशमी विद्धा नवमी त्याज्य है। इस वर्ष शुक्रवार दिनांक 16 नवम्बर को दिन 7 बजकर 12 मिनट से नवमी लग रही है, जो शनिवार दिनांक 17 नवम्बर 2018 को दिन 9 बजकर 6 मिनट तक रहेगी। उपवास (आंवला वृक्ष के नीचे भोजन) हेतु अपरान्ह व्यापिनी तिथि ग्रहण की जाती है, जो 16 नवम्बर को मनायी जायेगी। दान हेतु पूर्वाह्न व्यापिनी ग्राह्य होने से 17 नवम्बर को अक्षय नवमी मनायी जायेगी।

व्रत विधान

प्रातः काल स्नानादि के अनन्तर दाहिने हाथ में जल, अक्षत्, पुष्प आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का  संकल्प करें -

'अद्येत्यादि अमुकगोत्रोsमुक शर्माहं(वर्मा, गुप्तो, वा) ममाखिलपापक्षयपूर्वकधर्मार्थकाममोक्षसिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये'

ऐसा संकल्प कर धात्री वृक्ष (आंवला) के नीचे पूरब की ओर मुखकर बैठें और 'ऊँ धात्र्यै नम:' मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मन्त्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें। 

मंत्र

पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।

ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूलेSक्षयं पय:।।

आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।

ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूलेSक्षयं पय:।।

इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में निम्न मंत्र से सूत्र लपेटें-

अक्षय नवमी 2018: आंवले के पेड़ का ऐसे करें पूजन,जानें व्रत और दान की तिथि

दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।

सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोSस्तु ते।।

इसके बाद कपूर या घृतपूर्ण दीप से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें-

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।

आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करें

अक्षय नवमी 2018: आंवले के पेड़ का ऐसे करें पूजन,जानें व्रत और दान की तिथि

इसके बाद आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोजन भी कराना चाहिए और अन्त मे स्वयं भी आंवले के वृक्ष के सन्निकट बैठकर भोजन करें। एक पका हुआ कोंहड़ा( कूष्माण्ड) लेकर उसके अंदर रत्न, सुवर्ण, रजत या रुपया आदि रखकर निम्न संकल्प करें-

'ममाखिलपापक्षयपूर्वकसुखसौभाग्यादीनामुत्तरोत्तराभिवद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये'

तदनन्तर विद्वान तथा सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कूष्माण्ड दे दें और निम्न प्रार्थना करें-

कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।

दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।

पितरों के शीतनिवारण के लिए यथा शक्ति कम्बल आदि ऊर्णवस्त्र भी सत्पात्र ब्राह्मण को देना चाहिये।

यह अक्षय नवमी 'धात्रीनवमी' तथा 'कूष्माण्ड नवमी' भी कहलाती है। घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि में आंवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा दान आदि करने की परम्परा है अथवा गमले में आंवले का पौधा रोपित कर घर मे यह कार्य सम्पन्न कर लेना चाहिए।

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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