तो रेगिस्तान बन जाएगा शहर

 हॉलीवुड की एक मूवी आई थी द डे आफ्टर टुमारो। इसमें दिखाया गया था कि कैसे इंसान ने नेचर के साथ खिलवाड़ किया और नेचर ने उसका बदला सुनामी, भीषण ठंड और भारी बारिश से लिया। मूवी में दिखाया गया था कि कैसे पूरा का पूरा शहर दैवीय आपदा का शिकार होता है और इंसान लगातार गिरते टेम्परेचर के कारण बर्फ की तरह जमने लगते हैं। जिन्होंने इस मूवी को देखा था उनकी यादें अमेरिका में माइनस पचास डिग्री सेल्सियस से ऊपर टेम्परेचर के जाने के बाद फिर से ताजा हो गई हैं। ठीक इसी तर्ज पर इलाहाबाद सहित कई शहर व स्टेट्स फ्यूचर में रेगिस्तान बन जाने का खतरा है क्योंकि करेंट वेदर कंडीशंस ऐसे ही हालातों को जन्म देती नजर आ रही हैं।

तो रूठ जाएंगे मेघ

एयू में वेदर कंडीशन को लेकर चल रहे मंथन के दौरान एयू में ज्योग्राफी डिपार्टमेंट के एक्स हेड आफ डिपार्टमेंट और कन्ट्री के जाने माने वेदर एक्सपर्ट प्रो। सवीन्द्र सिंह ने खास बातचीत में बताया कि पहले बंगाल की खाड़ी के उत्तरी हिस्से में चक्रवात बनता था। जिससे पश्चिम बंगाल, मेघालय, पूर्वी उत्तर प्रदेश (जिसमें इलाहाबाद भी आता है), बंगाल, बिहार के इलाके आते हैं, वहां अच्छी बरसात होती थी। 21वीं सदी की शुरुआत से ही चक्रवात बनने का केन्द्र मध्य बंगाली की खाड़ी तक पहुंच गया। इससे उपरोक्त जगहों पर अच्छी वर्षा नहीं हो पा रही है और फ्यूचर में बरसाती मेघ हमसे पूरी तरह रूठ जाएं तो आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए। उन्होंने इसका कारण सागर के जल पर पडऩे वाले ग्लोबल वार्मिंग के असर को बताया। इसी के चलते समुद्र का भी जल स्तर बढ़ता जा रहा है। टेम्परेचर बढऩे के कारण बर्फ भी तेजी से पिघल रही है। प्रो। सिंह ने बताया कि भारत मौसम विज्ञान विभाग ने भी इससे संबंधित रिसर्च वर्क के बेस पर अलर्ट जारी कर दिया है और गवर्नमेंट से बातचीत करके सुधार के उपाय किए जा रहे हैं।

किसानों को बेचनी पड़ रही हैं जमीनें

प्रो। सविन्द्र सिंह ने ग्लोबल वार्मिंग से चक्रवात पर पडऩे वाले असर की समीक्षा करते हुए फ्यूचर के भयावह परिणाम को गिनाते हुए कहा कि अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा तो बनारस, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद आदि जिले फ्यूचर में रेगिस्तान नजर आएंगे। इससे आम जनजीवन तो प्रभावित होगा ही खेती किसानी का भी विनाश हो जाएगा। मूल रूप से गाजीपुर के ही रहने वाले प्रो। सिंह ने बताया कि वहां बरसात की किल्लत और खेती की बहुत ज्यादा गुंजाइश बची हुई न देख उन्हें अपनी जमीन तक बेचनी पड़ गई है। यही हाल वहां के बाकी किसानों का भी है जो अपनी जमीनें बेचने को मजबूर हैं। कहा कि अगर मौसमी परिवर्तन को जल्द कन्ट्रोल नहीं किया गया तो नीलम और फेलिन जैसे तूफानों को रोकना बेहद मुश्किल हो जाएगा.   

यूरोप में भी बदल गई मौसमी दशाएं

अक्सर आपने सोचा होगा कि जाड़ा, गर्मी और बरसात अपने नियत समय पर नहीं पड़ रही है। पहले ठंड नवम्बर की शुरुआत से शुरू होकर फरवरी लास्ट तक पड़ती थी। लेकिन करेंट वेदर कंडीशन के चलते अब ठंड का आगाज ही नवम्बर के लास्ट से हो रहा है जोकि मध्य मार्च तक खिंच गया है। अप्रैल में गर्मी की शुरुआत होती थी और 15 जून तक इसका खात्मा हो जाता था। लेकिन अब तो अप्रैल, मई और जून तीनों महीने भीषण गर्मी से तपना शुरू हो जाते हैं। जून में तो पारा पचास डिग्री सेल्यिस के आंकड़े को छू लेने को बेताब होता है। यही नहीं अब तो 17 जून को मानसून के दस्तक देने की कल्पना ही नहीं की जा सकती। मानसून 10 जुलाई के बाद ही दस्तक दे रहा है। बरसात की समयावधि भी 17 जून से सितम्बर तक होती है। इसमें भी अच्छा खासा बदलाव आ चुका है। क्लाइमेंट में आए चेंज के चलते ही पूरे यूरोप में मौसमी दशाएं बदल चुकी हैं।

प्रो। पंत का lecture आज

रिफ्रेशर कोर्स के दौरान डॉ। एसएस ओझा ने एलिनो और लालिना के इफेक्ट के बारे में बताया। उन्होंने प्रशान्त महासागर से चलने वाली हवाओं के बारे में भी जानकारी दी। इस अवसर पर डॉ। सुनीत द्विवेदी, डॉ। शैलेन्द्र राय, डॉ। जयंत त्रिपाठी, डॉ। सुधीर कुमार सिंह, डॉ। सत्येन्द्र हजारिका, डॉ। दीपाली चांडे, डॉ। तारा सिंगराम, डॉ। प्रियंवदा सिंह आदि मौजूद रहे। ट्यूजडे को आईआईटी मुम्बई में एयरो स्पेश इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रो। आरके पंत का लेक्चर दोपहर ढाई बजे से होगा।