अलकौसर सोसाइटी की चेयरमैन ने समाजसेवा में समर्पित कर दिया जीवन

त्यौहारों पर अनाथालय के बच्चों के साथ वक्त बिताना है पैशन

Prakashmani.Tripathi@inext.co.in

अपने लिए जिए तो क्या जिएतू जी ऐ दिल, जमाने के लिएएक मूवी का यह सांग अलकौसर सोसाइटी की चेयरमैन नाजिया नफीस पर बिल्कुल सटीक बैठता है। मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर की पोस्ट। लाखों का पैकेज। रहने के लिए घर। आने-जाने के लिए कंपनी का वाहन। दूसरे शब्दों में आराम की जिंदगी गुजारने का सारा सामान मौजूद। लेकिन, जीवन का मकसद इतना ही है? इस सवाल ने परेशान करना शुरू कर दिया तो सब कुछ छोड़ दिया और जीवन समर्पित कर दिया अनाथ और गरीब बच्चों की सेवा में।

पढ़ाई अब भी जारी है

ये हैं नाजिया नफीस। अलकौसर सोसाइटी की संस्थापक अध्यक्ष। पढ़ाई में बेहद रुचि रखने वाली नाजिया को बचपन से ही गरीब बच्चों को पढ़ाने का शौक था। इसके लिए वह बच्चों को टाइम तो देती ही थीं अपनी पाकेटमनी से उनके लिए लर्निग मॅटिरियल का इंतेजाम भी करती थीं। नाजिया पढ़ाई में भी तेज थीं। मेरी वाना मेकर से इंटरमीडिएट और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद एमबीए किया। हाल ही में उन्होंने मॉस कॉम के पीजी का एग्जाम दिया है। इसके अलावा भी कई एग्जाम्स क्वालीफाई किए। इस दौरान उन्हें एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब ऑफर हुई। इसे उन्होंने ज्वाइन भी कर लिया। परफारमेंस बेहतर रही तो प्रमोशन का ऑफर भी मिला और पैकेज लाखों में पहुंच गया। कुछ ही सालों तक जॉब करने के बाद उन्हें लगा कि जॉब उनके जीवन का मकसद नहीं है। इसके बाद उन्होंने जॉब छोड़कर बच्चों के लिए कुछ करना तय किया और समाजसेवा के फील्ड में उतर आई। अपनी सोसाइटी बनाई और इससे लोगों को जोड़ने में लगी हुई हैं तो बेसहारा बच्चों की मदद करना चाहते हैं।

गोद लिया पूर्व माध्यमिक विद्यालय

हाल ही में उन्होंने अलोपीबाग में स्थित पूर्व माध्यमिक विद्यालय को गोद लिया है। फिलहाल वहां की स्थिति में सुधार करने की दिशा में कार्य कर रही हैं। बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए उन्होंने कई कारपोरेट घरानों से मदद भी ली। इन बच्चों के लिए ड्रेस, स्वेटर, लर्निग मॅटिरियल आदि का इंतेजाम वह खुद करती हैं।

पूरा परिवार करता है सहयोग

पांच सालों से खुद को पूरी तरह से समाजसेवा के लिए समर्पित कर देने वाली नाजिया की उम्र अभी 30 साल भी नहीं है। वह बताती हैं कि पापा खाड़ी देश में जॉब करते थे। परिवार वेल एस्टेब्लिश्ड है। इससे कभी कोई दिक्कत नहीं आई। भाई और परिवार के दूसरे सदस्य मेरे रुझान के बारे में बचपन से जानते हैं, इसलिए उन्होंने कभी मुझे निराश नहीं किया। जरूरत के अनुसार हर मौके पर खड़े रहे। कभी फाइनेंशियल सपोर्ट दिया तो कभी मोरल। नाजिया कहती हैं कि इंसान को वह काम जरूर करना चाहिए जिसमें उसे संतोष और सुकून मिले। मुझे इस काम में यह दोनों मिलता है इसीलिए मैने इसे चुना है।

हिन्दुओं के त्यौहार भी मनाती हैं

नाजिया त्योहारों के समय इन बच्चों के बीच जाना नहीं भूलतीं। रक्षा बंधन पर अनाथ बच्चों को राखी बांधना और उन्हें गिफ्ट देना नहीं भूलतीं तो दशहरा, ईद और दिवाली जैसे त्योहार पर ममफोर्डगंज में स्थित अनाथ बच्चियों के लिए गृह में वक्त बिताना मिस नहीं करतीं। नाजिया की रुचि देखकर डीपीओ भी उन्हें पूरा सहयोग करते हैं। उन्हें इन स्थानों पर आने-जाने की परमिशन आसानी से मिल जाती है। पंजाब नेशनल बैंक ने भी उनके प्रयास को सराहते हुए हेल्प की है। नाजिया कहती हैं कि इस कारवां को इतना बड़ा बनाना है कि हर बच्चे को उसका वाजिब हक मिले।