ईद उल अजहा पर दी जाती है जानवर की कुर्बानी

कुर्बानी का होता है तीन हिस्सा

ALLAHABAD: ईद उल अजहा माहे जिलहिज की दस तारीख को मनाई जाती है। जो पैगम्बर हजरत इब्राहिम द्वारा अपने प्यारे बेटे हजरत इस्माईल की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। जिसमें जानवर की कुर्बानी की जाती है। गोश्त के तीन बराबर का हिस्सा किया जाता है। एक हिस्सा गरीबों का, दूसरा हिस्सा पड़ोसियों व रिश्तेदारों का और एक हिस्सा खुद के लिए होता है। कुर्बानी का गोश्त अल्लाह तक नहीं पहुंचता है क्योंकि अल्लाह को बस कुर्बानी पसंद है।

बेटा बाप के आदेश को अल्लाह का हुक्म समझे

अंजुमन हुसैनिया दरियाबाद के संयोजक सैयद रियाज अस्करी ने बताया कि ईद उल अजहा और मोहर्रम दो कुर्बानियों की याद है। ईद उल अजहा में खुशियां मनाई जाती हैं क्योंकि, कुर्बानी में हजरत इब्राहिम की जान बच गई थी। मोहर्रम में गम किया जाता है इस कुर्बानी में हजरत इमाम हुसैन व और उनके साथिर्यो पर बेइंतहा जुल्म ढाए गए थे। उन्होंने बताया कि हजरत इब्राहिम की कुर्बानी में चार बातें काबिले गौर है। इसलिए इस कुर्बानी का यह पैगाम है कि अगर बाप अल्लाह के हुक्म को सबसे ऊपर रखे, बेटा बाप की बात को अल्लाह का हुक्म समझे और मां दुआ देती रहे तो अल्लाह मौत भी टाल देता है।

कुर्बानी की चार बातें काबिले तारीफ

बाप ने बेटे की मोहब्बत पर अल्लाह के हुक्म को तरजीह दिया

बेटे ने बाप के ख्वाब को ख्वाब नहीं अल्लाह का हुक्म माना

बेटे की होने वाली कुर्बानी से मां बेखबर थी और उसकी लम्बी उम्र के लिए दुआएं मांग रही थी

गर्दन छुरी के नीचे आने के बाद भी हजरत इस्माईल बच गए

बकरीद आज, तैयारी है खास

इस्लाम में एक साल में दो तरह की ईद मनाई जाती है। एक ईद जिसे मीठी ईद कहा जाता है और दूसरी बकरीद। दूसरा त्योहार पैगम्बर ह़जरत इब्राहिम द्वारा अपने प्यारे बेटे ह़जरत इस्माईल की कुर्बानी की याद में शनिवार को ईद उल अजहा यानि बकरीद के रूम में मनाया जाएगा। जहां बकरीद की नमाज के बाद ही अकीदतमंदों द्वारा बकरों की कुर्बानी दी जाएगी, वहीं मस्जिदों में बकरीद की नमाज अता करने के लिए शुक्रवार को साफ-सफाई और वजू करने के लिए मस्जिदों के बाहर बड़े-बड़े ड्रम में पानी की व्यवस्था की जा चुकी है। ईद उल अजहा को सुन्नते इब्राहिम भी कहते हैं। दरगाह मौला अली प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष सैयद अजादार हुसैन ने बताया कि अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए अपनी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देने का हुक्म दिया। हजरत इब्राहिम को लगा कि उन्हें सबसे प्रिय तो उनका बेटा ही है, इसीलिए उन्होंने अपने बेटे की ही बलि देना स्वीकार किया। तब उन्हें लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो पुत्र को सामने जिंदा देखा। बेदी पर कटा हुआ दुम्बा पड़ा हुआ था। तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई।

कहां पर कितने बजे होगी नमाज

बकरीद की नमाज सुबह सवा सात बजे से शुरू होगी। मस्जिद मजलूम शाह जानसेनगंज में सुबह 7.15 बजे खास नमाज अता की जाएगी। जबकि रामबाग स्थित ईदगाह मैदान में सुबह नौ बजे, जामा मस्जिद चौक सुबह 8.30 बजे, शिया जामा मस्जिद में सुबह 8.30 बजे नमाज अता की जाएगी।