मृतक आश्रित सेवा नियमावली का उद्देश्य आश्रित के लिए पद आरक्षित करना नहीं

prayagraj@inext.co.in

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सभी को नौकरी का समान अवसर मिले यह सामान्य अधिकार है और मृतक कर्मचारी के आश्रित को नियुक्ति मिले यह सामान्य अधिकार का अपवाद है। मृतक आश्रित सेवा नियमावली का उद्देश्य आश्रित के लिए पद आरक्षित करना नही है। यह कर्मचारी की मौत से परिवार पर आयी तात्कालिक विपत्ति का सामना करने की अनुकम्पा नियुक्ति है। यह सामान्य नियम का अपवाद है। इससे आश्रित को नियुक्ति पाने का अधिकार नही मिल जाता। कोर्ट ने याची के मामले को अपवाद मानने से इंकार कर दिया और एकलपीठ के फैसले को सही करार देते हुए आदेश के खिलाफ विशेष अपील ख़ारिज कर दी है।

अनिश्चित समय तक आरक्षित नहीं रख सकते पद

यह आदेश जस्टिस भारती सप्रू तथा जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने मिर्जापुर की पूनम यादव की अपील पर दिया है। अपील पर राज्य सरकार के अधिवक्ता बीपी सिंह कच्छवाह ने कहा कि सरकार आश्रित के लिए अनिश्चित समय तक पद आरक्षित नही रख सकती। एक निश्चित अवधि में दाखिल अर्जी पर ही विचार हो सकता है। बता दें कि याची के श्वसुर की पुलिस विभाग में सेवा के दौरान 22 दिसम्बर 1999 को मौत हो गयी। याची के पति ने 2004 में मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग में अर्जी दी। इसी बीच 29 मई 2004 को पति की वाहन दुर्घटना में मौत हो गई। 23 जनवरी 2014 को याची ने स्वसुर के आश्रित के रूप में नौकरी की मांग में अर्जी दी। विभाग ने यह कहते हुए अर्जी खारिज कर दी कि याची के पति सेवा में नही थे।

बलहीन मानकर खारिज की याचिका

हाई कोर्ट में दाखिल याचिका पर कोर्ट ने पुलिस विभाग को नए सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया। विभाग ने कहा कि परिवार में मृतक की विधवा पुत्र वधू शामिल है। कर्मी की मृत्यु के समय याची विधवा नहीं थी। विभाग ने हाई कोर्ट की पूर्णपीठ के शिव कुमार दुबे केस के फैसले के सिद्धांतों के आधार पर एक सितंबर 18 को अर्जी खारिज कर दी। जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी। जस्टिस यशवंत वर्मा ने याचिका को बलहीन मानते हुए खारिज कर दी। इसे विशेष अपील में चुनौती दी गयी थी।