-हाइ कोर्ट ने एडहॉक पर लेक्चरर्स की नियुक्ति पर उठाया सवाल

-तीन महीने में ऐसी नियुक्तियों पर कार्रवाई के साथ जांच कराने का आदेश

-1998 के आदेश को सरकार ने 2011 में शासनादेश जारी करके कर दिया था निष्प्रभावी

ALLAHABAD (13 May, JNN): सरकार ने नीतिगत फैसला लेते हुए ख्0क्क् में ही डिग्री कॉलेजेज में एडहॉक पर लेक्चरर्स की नियुक्ति पर बैन लगा, क्998 में पारित खुद के आदेश को निष्प्रभावी कर दिया तो नियुक्तियां कैसे हो रही हैं। कार्यकाल कैसे बढ़ाया जा रहा है? इलाहाबाद हाइ कोर्ट ने प्रदेश के डिग्री कॉलेजों में मानद प्रवक्ता की व्यवस्था समाप्त होने के बाद भी उच्च शिक्षा निदेशक डॉ। मिया जान व डॉ। जेडी मित्रा द्वारा मानद प्रवक्ताओं की नियुक्ति जारी रखने को कानून के खिलाफ माना है। तीन महीने के भीतर जांच कर कार्रवाई करने का आदेश दिया है।

यह आदेश जस्टिस एपी साही व राजन राय की खण्डपीठ ने डॉ। श्वेता बंसल की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। याची मानद प्रवक्ता थी। उसने कार्यकाल बढ़ाने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने कहा कि ख्0क्क् के शासनादेश आने के बाद याची को पद पर बने रहने का वैधानिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सात अप्रैल 98 के शासनादेश के तहत नियुक्त मानद प्रवक्ताओं की स्वत: नवीनीकरण की व्यवस्था नहीं थी। राज्य सरकार ने ख्9 मार्च ख्0क्क् के शासनादेश से 98 के शासनादेश को निष्प्रभावी कर दिया और नीतिगत फैसला लिया कि डिग्री कॉलेजों में खाली फ्97भ् प्रवक्ता के पदों पर नियमित नियुक्ति होने तक सेवानिवृत्त अध्यापकों की नियुक्ति की जाएगी।

कोर्ट ने कहा है कि ख्भ् नवम्बर क्फ् के नए शासनादेश से खाली पदों पर सेवानिवृत्त अध्यापकों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की व्यवस्था दी है। कोर्ट ने अन्य फैसले में सरकार को जून क्ब् में खाली सभी पदों को भरने का आदेश देते हुए सरकारी योजना को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने कहा है कि हर हाल में छात्रों को अध्यापक मिलने चाहिए। छात्रों व अध्यापकों की हाजिरी भी ली जाए और वेबसाइट पर डाला जाए। क्998 के शासनादेश से स्टाप गैप अरेंजमेंट के तहत मानद प्रवक्ता की नियुक्ति की गई थी जिसे समाप्त कर दिया गया है। यह व्यवस्था सरकारी सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेजों के लिए लागू की गई है। कोर्ट ने कहा है कि मानद प्रवक्ताओं की योजना समाप्त हो गई है। अब किसी को भी कार्यरत रहने का हक नहीं है।