-भारत रत्न मदनमोहन मालवीय ने 1939 में शुरू की थी नाम बदलने की मुहिम

इतिहास पर एक नजर

-हिंदू मान्यताओं के मुताबिक इस धरती पर सृष्टि रचनाकर्ता ब्रम्हा ने पहला यज्ञ किया था। जिसके प्रथम के प्र और यज्ञ के याग से नाम प्रयाग पड़ा।

-1858 में अंग्रेजों के शासन के दौरान शहर का नाम इलाहाबाद का रखा गया। इसे आगरा अवध संयुक्त प्रांत की राजधानी बना दिया गया।

-आजादी की लड़ाई का केंद्र इलाहाबाद ही था। वर्धन साम्राज्य के राजा हर्षव‌र्द्धन के राज 644 सीई में भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने पोलोये नाम के शहर का विवरण किया था जिसे इलाहाबाद माना जाता है।

-ह्वेनसांग ने संगम वाले शहर में राजा शिलादित्य द्वारा कराए गए स्नान का जिक्र किया। जिसे कुंभ मेले का सबसे पुराना प्रमाण माना जाता है।

-1996 के बाद इलाहाबाद का नाम बदलने की मुहिम फिर से शुरू हुई। इसमें तमाम साधु-संन्यासियों ने अहम रोल निभाया।

-आजादी के पहले जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के सामने भी प्रयागराज नाम रखने का प्रस्ताव रखा गया था।

ALLAHABAD: लंबे समय बाद आखिर इलाहाबाद का नाम प्रयागराज हो गया। इस ऐतिहासिक बदलाव की शुरुआत भारत रत्न मदन मोहन मालवीय ने 1939 में छेड़ी थी, जिसे अनेक प्रयासों के बाद अब जाकर सफलता मिली। इस फैसले का तीर्थ पुरोहितों व प्रयागवाल सभा ने स्वागत किया। गौरतलब है कि 13 और 14 अक्टूबर को इलाहाबाद के दो दिनी दौरे पर आए सीएम योगी आदित्यनाथ ने कुंभ मार्गदर्शक मंडल की बैठक में पेश किए इस प्रस्ताव को मौखिक सहमति दे दी थी।

सैकड़ों साल बाद फिर बनेगा प्रयागराज

जानकारी के मुताबिक इलाहाबाद का शास्त्रों में प्राचीन नाम प्रयाग ही मिलता है। लेकिन मुगल सम्राट अकबर ने 1583 में प्रयाग में यमुना तट पर किले का निर्माण कराया और इस शहर का नाम बदलकर इलाहाबास कर दिया जो कालान्तर में इलाहाबाद हो गया। प्रयाग की पहचान लौटाने का फैसला अब योगी सरकार ने लिया है। हालांकि संगम पर आने वाले श्रद्धालुओं की मानें तो अभी भी इलाहाबाद को प्रयाग के नाम से ही जानते हैं। भले ही शहर का नाम इलाहाबाद हो। उनके मन में प्रयाग के नाम से ही आस्था और श्रद्धा है।