अमरनाथ की यात्रा साधारण यात्रा नहीं है, वरन संपूर्ण जीवन-यात्रा का निचोड़ है। यह एक ऐसी यात्रा है, जो जीवन को सही मायने में सार्थक बना सकती है। श्रीनगर से यात्री पहलगांव अथवा बालटाल होकर इस पवित्र गुफा तक जाते हैं।

बालटाल का मार्ग छोटा है, लेकिन पहलगांव का मार्ग लंबा होने के बावजूद सुरक्षित है और अब मार्ग में कई सुविधाएं भी उपलब्ध रहती हैं। जनश्रुति के अनुसार, भगवान शंकर और जगदंबा पार्वती इसी मार्ग से पवित्र गुफा तक गए थे। यह मार्ग चंदनवाड़ी और शेषनाग से होकर पंचतरणी तक पहुंचता है और फिर पवित्र गुफा की यात्रा आरंभ होती है। संपूर्ण मार्ग में प्रकृति का अनुपम सौंदर्य तो है, लेकिन मार्ग बहुत कठिन और खतरों से भरा हुआ है। यह सच है कि जो मार्ग परमात्मा तक ले जाए वह सुगम होगा भी कैसे?

वैसे अब साधनों की उपलब्धता ने यात्रा को सरल बनाया है। बालटाल से हेलीकॉप्टर से भी लोग जाते हैं। साधन सरलता तो देते हैं, लेकिन मार्ग का सौंदर्य-सुख और अनूठा आनंद मिलने से छूट भी जाता है। वैसे इस यात्रा को यदि एक रूपक की तरह देखें, तो यह अद्भुत संदेश देती है। पंच महाभूतों के देहाभिमान को त्यागकर तथा कठिन यात्रा के बाद श्रद्धालु जब पहुंचते हैं, तो उन्हें यह लगता है कि प्राण तत्व सूक्ष्म हो गया है, क्योंकि यहां प्राणदायिनी ऑक्सीजन बहुत कम है। वहां प्रकृति और पुरुष अमर तत्व के लिए संवाद करते हैं, तो फिर प्रकट होता है आत्म तत्व, जो लिंगरूप है।

यह आत्मतत्व वैसे तो परमात्मा का अंश रूप है, लेकिन वेदांत कहता है 'पूर्णात पूर्ण उदच्युते'। पूर्ण से जो प्रकट हुआ वह स्वयं भी पूर्ण है। इसलिए अमरनाथ बाबा लिंग रूप में आत्म तत्व भी हैं और स्वयं परमात्मा भी हैं।

मुस्लिम गड़रिये ने खोजा था बाबा बर्फानी का स्थान 

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इस स्थान से जुड़ी अनेक कथाएं भी यहां लोग सुनाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि यह स्थान प्रलय में जल मग्न हो गया था, तब कश्यप ऋ षि ने इसका उद्धार किया और भृगु ऋ षि ने सबसे पहले बर्फानी बाबा के दर्शन किए। एक कहानी उस मुस्लिम गड़रिये की भी है, जिसने इस स्थान को खोज निकला था। आज भी उसके वंशजों को यहां के चढ़ावे का एक हिस्सा मिलता है।

अमरकथा सुनकर अमर हो गए कबूतर
एक कहानी उन कबूतरों की भी है, जिन्होंने अमरकथा सुन ली थी और अमर हो गए। कई लोग कहते हैं कि उन्होंने इस गुफा में उन कबूतरों का दर्शन किया है। कहानियां चाहे जो भी कहें, लेकिन यह स्थान प्रत्येक यात्री को इतना कुछ दे देता है कि जिसे वह चाहे भी तो नहीं भूल सकता।

जानें इस यात्रा का मर्म

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समुद्र तल से लगभग 14000 फीट की ऊंचाई पर जाने पर बेहद कठिन यात्रा के बाद यात्री पवित्र गुफा में पहुंचकर अपनी हर एक पीड़ा को भूल जाए और उसे लगे कि कोई थकान अब शेष नहीं है, तो यह अलौकिक आनंद कैसे भुलाया जाएगा। यही इस यात्रा का मर्म है और यही भारतीय चिंतन का मूर्त रूप है कि कठिन जीवन-यात्रा में देहाभिमान छूटता चला जाए।

अमरकथा का शुभ फल ‘बाबा बर्फानी’
प्रकृति और पुरुष का संवाद स्थापित हो और वह आनंद स्वरूप आत्मतत्व प्रकट हो, जो परमात्मा से मिला दे। गोस्वामी तुलसीदास ने 'रामचरित मानस' में जब शिव स्तुति करते हुआ लिखा- 'तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं / मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरं', तो संभवत: उनके मन में बर्फानी बाबा की ही छवि रही होगी। यह छवि अमरकथा का शुभ फल है, जो प्रत्येक वर्ष कुछ दिनों के लिए प्रकट होती है।

इससे अनेकानेक लोगों का जीवन धन्य हो जाता है। इस यात्रा में जाने वाले तो धन्य हुए ही, लेकिन जो अपनी जीवन यात्रा में देह के अभिमान से मुक्त हो रहे हैं और प्राणों के सूक्ष्म होते क्षणों में भी अपनी प्रकृति से आत्म-तत्व तक जाने का संवाद कर रहे हैं, तो उन सबके भीतर (पवित्र गुफा समान) भी स्वयं शिव आकार ले रहे हैं। यही शिव लिंग रूप में आत्मतत्व हैं, लेकिन मूल रूप में परम ही हैं और इन्हें ही हम प्रेम और श्रद्धावश 'बर्फानी बाबा' अमरनाथ कहकर बुलाते हैं। 

-अशोक जमनानी

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