बादल फटने से अमरनाथ यात्रा में फंसा जत्था वापस लौटा, आई नेक्स्ट से शेयर की सहमा देने वाला मंजर

BAREILLY:

बाबा अमरनाथ की यात्रा के दौरान वहां फंसे बरेली का 49 लोगों का जत्था मंडे को पहुंच गया है। बेहद मुश्किलों के बाद घर पहुंचे तो भगवान पर भरोसा बढ़ा, लेकिन वहां की मुश्किलों और स्थानीय लोगों के रवैये ने मन में टीस पैदा कर दी। तकलीफ इस बात की भी थी साथ गए एक साथी का जिंदगी का साथ छूट गया। अब वह घर पहुंच गए हैं, लेकिन उन पलों को याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कहते हैं कि कभी-कभी तो इस बात पर भी शक होने लगा था कि क्या वापस घर पहुंच पाएंगे? कुदरत ने जो तकलीफ दी, उसके साथ ही वहां के स्थानीय लोगों ने भी मजबूरी का फायदा उठाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा। लौट कर आए दर्शनार्थियों से आई नेक्स्ट से उनसे बात की। सुनिए उनके दर्द की कहानी, उन्हीं की जुबानी

बस समझ लीजिए बाबा ने बचा लिया

हम दर्शन करके वापसी कर रहे थे। इसी दौरान सोनबर्ग नामक जगह पर भंडारा में शामिल होने के बाद कैब से वापसी कर रहे थे। गाड़ी में एक हवलदार का मोबाइल चार्ज होने के लिए लगा रह गया था। ऐसे में उसे वापस करने के लिए 10 किमी। पीछे गए। मोबाइल देने के बाद जैसे ही सफर शुरू किया तो पता चला कि जिस रास्ते से आए थे, वहां पर बादल फट गया है। 5 किमी। की दूरी पर क्रमश: 3 जगह बादल फटने से वाहनों का आवागमन पूरी तरह से बंद हो गया था। तमाम वाहन मलबे में दबे थे। ऐसे में, वहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं था। कोई भी जाने को तैयार नहीं था। लिहाजा, पैदल चलने के सिवाए कोई रास्ता नहीं बचा हुआ था। इसके बाद उन लोगों को करीब 20 किमी। का सफर पैदल तय करना पड़ा।

कैंट निवासी अनिल कुमार गुप्ता

30 रुपए में रोटी, 80 रुपए में बोतल खरीदी

बादल फटने से रास्ता लगभग बंद हो गया था। डर इस बात का सता रहा था कि कहीं मौसम और ज्यादा न बिगड़ जाए। सैकड़ों लोग रास्ते में ही फंसे हुए थे। तकलीफ की बात यह है कि इस मजबूरी का फायदा वहां के स्थानीय दुकानदार उठाने से नहीं चूके। बादल फटने का पता चलने ही वहां पर खाने-पीने के रेट आसमान में पहुंच गए। 30 रुपए में एक रोटी व पानी की बोतल 80 रुपए में दुकानदार बेच रहे थे। सोनमर्ग में घटिया होटलों ने किराया बढ़ाकर 4 हजार रुपए कर दिया। दाल 120 रुपया क्वार्टर मिल रही थी। ज्यादातर जरूरी सामानों की कीमत 10 गुना तक बढ़ गई थी। जब जिंदगी पर आती है तो फिर पैसा नहीं दिखता। हर कोई इतने महंगे सामानों को भी खरीदने को मजबूर था। मैं चार बार से ज्यादा बाबा अमरनाथ की यात्रा कर चुका हूं। आमतौर पर 15 हजार खर्च होता था, लेकिन इस बार 40 हजार खर्च हो गया।

प्रेम नारंग

बुरी तरह से सहम गए थे

बालटाल में इस कदर फंस गए थे कि कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। कभी-कभी तो इतना डर लगता था कि कल का सूरज देख पाएंगे कि नहीं? इस तरह के ख्याल मन में आने लगा था। मैं फैमिली के साथ गया था। पहली बार मैं सहमा हुआ था। एक एक पल बड़ी मुश्किल से कट रहा था। मलबे में लाशें दबी हुई थीे। घोडे़ भी मलबे में दबे हुए थे। चारों तरफ चीख पुकार मची हुई थी। मॉच्र्युरी में लाशों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी। ऐसे वीभत्स दृश्य थे कि आज भी याद करके सिहर उठता हूं। 16 की शाम को जब से बादल फटने की सूचना मिली, तब से नींद नहीं आई। घर पहुंचकर ऐसा लगा मानों जन्नत नसीब हो गई हो।

-अशोक मेहता

हर जगह है अच्छे लोग

यकीनन, हम लोगों की वापसी बेहद डरा देने वाली थी। किसी बात का ठिकाना ही नहीं था। कब क्या हो जाए?। यह बात सही है कि ज्यादातर दुकानदार वहां पर लूटने में लगे हुए थे। लेकिन ऐसे भी लोग थे, जो वहां दर्शनाथियों की मदद करने में जुटे हुए थे.बादल फटने के बाद सेना मदद में जुटी हुई थी। उस जगह को जैसे ही हम लोगों ने क्रास किया आगे कई मुसलमान भाइयों ने कैंप लगा रखे थे। वह सभी दर्शनार्थियों के लिए निशुल्क जलपान के पैकेट बांटने समेत आगे बढ़ने के तरीकों को भी बता रहे थे। ताकि हर दर्शनार्थी जल्द से जल्द अपने परिवार के पास पहुंच जाए।