बस फिर क्या था उन्होंने ऐसे पांव को आकार दिया कि दुर्घटना के एक साल के भीतर ही वे फिर से पर्वतों पर चढ़ाई के लिए निकल पड़े. ये पांव 'बायोनिक पावर असिस्टेड' पांव थे. आजकल वे मैसेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में बोयोकैट्रोनिक्स अनुसंधान समूह के निदेशक हैं. अब वे अपनी टीम के साथ मिलकर अमरीका और न्यू यूरोप में भी बायोनिक अंग लगाने का काम कर रहे हैं.

चढ़ाई ने बदल दिया

17 वर्षीय ह्यूग तक़रीबन रोज़ ही पर्वतों की चढ़ाई करने जाते थे. वे हादसे के बारे में बताते हैं, "उस दिन मैं माउंट वाशिंगटन के चढ़ाई अभियान पर था. ये एक बर्फ़ से ढका पर्वत है. ऊंचाई हज़ारों फ़ीट की थी. मुझसे ग़लती यह हुई कि मैंने ख़राब मौसम के बावजूद चढ़ाई जारी रखी."

चढ़ाई के दौरान मौसम अचानक बदलने लगा. हवाएं तेज़ हो गईं. ह्यूग ने कहा, "बढ़ते-बढ़ते कोहरा इतना घना हो गया कि केवल पांच फ़ीट दूर खड़ा मेरा दोस्त दिखाई नहीं दे रहा था. हम नीचे उतरने को मजबूर हो गए."

उतरते वक़्त संतुलन गड़बड़ाने से ह्यूग और उनके साथी दोनों गिर पड़े और पेड़ की डालियों में फंस गए. उनकी देह पर बर्फ़ गिर-गिरकर जम रही थी. वे बुरी तरह फंस चुके थे. तापमान शून्य से नीचे था. इस तापमान में वे कई दिनों तक फंसे रहे जो जानलेवा साबित हुआ.

ह्यूग हर्र बताते हैं, "हम बर्फ़ में क़रीब चार दिन तक फंसे रहे. जान तब बची जब हमें बर्फ़ का एक बड़ा सा गोला देखा. इस गोले को एक तरफ़ से काटकर हमने एक गुफ़ा बनाई. फिर उस गुफ़ा में पेड़ की डालियों को तोड़कर बिछाया."

धीरे-धीरे पांवों से चलना मुश्किल हो गया. पांव का निचला हिस्सा एकदम सुन्न हो चुका था. फिर एक हेलिकॉप्टर के ज़रिए उन्हें बचाया गया. दुर्भाग्य से बचाव दल के एक सदस्य अल्बर्ट की मौत हो गई.

डरावना अनुभव

ह्यूग को अस्पताल में डॉक्टरों ने बताया चोट के कारण पांवों की हालत इतनी नाज़ुक हो चुकी है कि उन्हें काटना पड़ेगा.

ह्यूग कहते हैं, "मुझे अपने साथ जो हुआ, उसकी तनिक परवाह नहीं थी. बल्कि मैं अल्बर्ट की मौत के लिए ख़ुद को ज़िम्मेदार समझता था." ह्यूग महीनों अस्पताल में रहे. वहीं बनावटी पांव लगाए गए. मगर वे अपने इन पांवों से संतुष्ट नहीं थे.

ह्यूग ने कहा, "मेरे बनावटी पांव किसी काम के नहीं थे. एकदम निष्क्रिय. मुझे ख्याल आया कि आज जब विज्ञान इतनी तरक्क़ी कर चुका है, हम चांद पर पहुंच गए हैं तो ये नक़ली पांव इतने बेकार क्यों बने हैं?"

उन्होंने कहा, "मैं तभी सोचने लगा कि यही सही समय है कुछ सोचने कि. तकनीक की सहायता से ऐसे अंग बनाए जा सकते हैं जो हूबहू जैविक अंगों के समान काम कर सकें."

अपना पांव ख़ुद डिज़ाइन किया

दुर्घटना से पहले ह्यूग का सपना था कि वे दुनिया के बेहतरीन पर्वतारोही बनें. इसलिए तब वे पढ़ाई लिखाई में दिलचस्पी नहीं रखते थे.

ह्यू ने बनावटी पांव बनाने के लिए ट्रेनिंग लेनी शुरू की. इन्हें किस तरह से काटना, जोड़ना या घुमाना है, ये सब सीखा.

इसी बीच उन्हें पता चला कि पहाड़ों पर चढ़ाई के लिए किस तरह के ख़ास क़िस्म के बनावटी पांव होने चाहिए.

वे कहते हैं, "मेरे लिए मेरे कटे पांव अयोग्यता नहीं थे. अब मुझे महसूस हो रहा था कि मुझमें सबसे हटकर कुछ अलग करने की योग्यता आ गई है. अब मैं पहाड़ों पर फिर नहीं चढ़ूंगा, बल्कि ज्यादा बेहतर तरीक़े से चढ़ पाऊंगा."

फिर से चढ़ाई

ह्यूग हर्र ने जो पांव बनाए वे इंसानी पांव से एकदम अलग थे. एकदम छोटे से पांव. इसे उन्होंने बायोनिक पांव नाम दिया.

बाद में साल 2006 में ह्यूग ने अंगों का निर्माण करने वाली एक कंपनी बनाई.

अमरीका और कनाडा में सैंकड़ों लोगों को इस कंपनी ने बायोनिक्स पांव लगाए. इसे बायो एंकल फुट सिस्टम कहा जाने लगा.

बायो एंकल फुट सिस्टम में बहुत सारे सेंसर होते हैं. ये बिलकुल ऐसे ही काम करते हैं जैसे असली पांव की मांसपेशियां और त्वचा हरकत करती हैं.

बायोनिक पांव ह्यूग को इतनी अच्छी तरह फ़िट आए कि अगले एक साल के भीतर उन्होंने पहले से ज्यादा जोश और जुनून से पर्वतारोहण शुरू कर दिया.