- साहित्यकार अमृत लाल नागर के जन्म शतवार्षिकी समारोह का पहला दिन

- साहित्यकारों ने नागर जी की रचनाओं और उनके व्यक्तित्व के बारे में साझा किए अनुभव

LUCKNOW: अमृत लाल नागर की गिनती उन लेखकों में होती है, जिन्होंने न तो परम्परा को नकारा और न ही आधुनिकता से नाता तोड़ा। प्रेमचंद के बाद हिंदी साहित्य को जिन साहित्यकारों ने संवारा उनमें अमृत लाल नागर का नाम सबसे ऊपर आता है। बूंद और समुद्र, मानस का हंस जैसी कालजयी रचनाओं के लेखक अमृत लाल नागर के जन्म शतवार्षिकी समारोह में उनके लेखन, साहित्य, बाल साहित्य, नाट्य लेखन और तमाम विधाओं से जुड़ी यादों को साहित्यकारों ने साझा किया। इस दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार व साहित्य अकादमी की ओर से हिंदी संस्थान के निराला सभागार में किया गया।

बहुविधा के धनी थे नागर

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में गुजराती साहित्यकार रघुवीर चौधरी और मुख्यातिथि अचला नागर मौजूद रहीं। अध्यक्षीय व्याख्यान में विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि लेखक की उम्र बहुत होती है। उसमें काल को स्थानांतरित करने की कला होती है। वहीं साहित्य अकादमी के हिंदी परामर्श के सदस्य सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा कि नागर के अलावा कोई ऐसा साहित्यकार नहीं हुआ, जिसमें इतनी विधाएं हों। उनके अंतिम के चार उपन्यास आधुनिक भारत को दर्शाते हैं। दिल्ली साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ तिवारी ने कहा कि अमृत लाल नागर साहित्य के दर्पण ही नहीं, निर्माता थे।

पात्रों से रचते थे जीवनगाथा

पहले सत्र में अमृतलाल नागर की औपन्यासिक कृतियों पर चर्चा की गई। इस सत्र की अध्यक्षता गोविंद मिश्र ने की। सत्र में माधव हाडा ने अमृतलाल नागर के उपन्यास मानस का हंस और खंजन नयन पर चर्चा करते हुए कहा कि नागर जी जासूसी उपन्यासों के शौकीन थे। उनके उपन्यासों से ही उनके साहित्यप्रेम का पता चलता था। साहित्यकार ममता कालिया ने कहा कि नागर जी के उपन्यासों ने सिद्ध कर दिया कि वो हिंदी गद्य अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम हैं। वर्ष 1946 से वो निरंतर लिखते रहे। वो बहुत प्रसन्न जीवन जीते थे। किसी लेखक का इस तरह जीना आश्चर्य पैदा करता है। रोहिणी अग्रवाल ने सुहाग के नुपुर, बूंद और समुद्र, नाच्यो बहुत गोपाल उपन्यास कर जिक्र करते हुए कहा कि नागर जी अपने पात्रों के माध्यम से जीवन गाथा को रचते थे।

बनी रहती थी पाठकों की रुचि

दूसरे सत्र में अमृत लाल नागर की कहानियां एवं बाल साहित्य के विषय पर चर्चा हुई, जिसकी अध्यक्षता रमेश चंद्र शाह ने की। परिचर्चा में शिवमूर्ति ने कहा कि अमृत लाल जी एक बहुत ही अच्छे किस्सागो थे। उनकी कहानियों में लखनवी अंदाज मिलता था। वो कहानी में रहस्य का बरकरार रखते थे जिससे पाठकों की रुचि बनी रहती थी, उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन अच्छी बात है, मगर इसकी शुरुआत लेखक के जिंदा रहते हो तो ज्यादा अच्छा है। वहीं प्रकाश मनु ने कहा कि प्रेमचंद के बाद सबसे बड़े किस्सागो व साहित्यकार हुए। उन्होंने बच्चों के लिए बाल साहित्य लिखा। वो बाल साहित्य को इतनी खूबसूरती से लिखते थे कि बच्चों के साथ बड़े भी उनकी कहानियों को पढ़ते थे। वो बच्चों को उपदेश नहीं देते थे बल्कि दोस्ताना तरीके से अपनी बात कहते थे। उनके द्वारा लिखी गई बजरंगी नौरंगी, बजरंगी पहलवान अक्ल बड़ी की भैंस जैसे उपन्यास लिखे।

टुकड़ों-टुकड़ों में देख रहे

तीसरे सत्र में अमृत लाल नागर का कथेतर गद्य एवं हास्य व्यंग्य पर साहित्यकारों इतिहासकारों ने अपने विचार रखें। सत्र की अध्यक्षता गोपाल चतुर्वेदी ने की। दीक्षा नागर ने कहा कि पढ़ा लिखा वर्ग साहित्य को देख नहीं रहा है, वहीं दूसरी तरफ जो जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं वो टुकड़ों-टुकड़ों में देख रहे हैं। कथेतर गद्य की साहित्य में महत्वपूर्ण भूमिका है। नागर जी कहानियों में व्यक्तित्व कृतित्व के साथ उनके युग व काल का परिचय मिलता है। इसके अलावा योगेश प्रवीन, योगेंद्र प्रताप सिंह ने अपने विचार रखें।

भाव का भूखा हरिशचंद्र यहां बैठा है

वहीं, कार्यक्रम में अमृत लाल नागर के लिखे नाटक युगावतार का मंचन हुआ। नाटक का निर्देशन ललित सिंह पोखरिया ने किया। नागर के 1955 के आस-पास लिखे गये इस नाटक में भारतेंदु हरिश्चंद्र के उन पहलूओं को दिखाया गया जो अब तक किसी भी लेखक व साहित्यकार ने नहीं दिखाया था। नाटक में लोगों की मदद के लिए अपने को कर्ज में डुबा देने वाले राजा हरिश्चंद्र ने अपनी वसीयत से बेदखल हो जाने के बाद भी लोगों की मदद करना नहीं छोड़ा। उन्होंने उस समय अकाल से जूझ रहे लोगों के लिए भीख तक मांगी। मंच पर अम्बरीश बॉबी मंजुला सिंह, सुमित श्रीवास्तव संदीप वर्मा आदि ने अभिनय किया।

उनके साथ कई कार्यक्रमों में साथ काम किया। एक बार वो कार्यक्रम के दौरान ही अपने पान की डिबिया खोलकर पान खाने लगे। नागर जी के सरल स्वभाव का हर कोई कायल था।

- विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,

साहित्य अकादमी के अध्यक्ष

मेरी रंगमंच की पाठशाला के पहले अध्यापक थे। उनके नक्षत्र इंटरनेशनल संस्था से मैं जुड़ा रहा, उनके साथ नाटक मे भी काफी काम किया। उनके जैसे व्यक्तित्व वाला इंसान मैंने आज तक नहीं देखा

- उर्मिल थपलियाल,

वरिष्ठ रंगकर्मी

एक बार मैं उनके साथ नाटक देखने गया था, तो वो आगे सीट पर बैठ गये और मुझे पीछे सीट पर भेज दिया। उन्होंने कहा कि ये जगह कमाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। खुद मेहनत करो और इस जगह को खुद कमाओ।

- संदीपन,

लेखक