ये शोध नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर ने किया है जिसमें कहा गया है कि बढ़ते तापमान की वजह से जानवरों को ज़्यादा ऊर्जा ख़र्च करनी पड़ती है, जिससे उनका आकार सिकुड़ रहा है।

दूसरी ओर रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि बढ़ते तापमान का वनस्पति प्रजातियों पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि ज़्यादा नमी की वजह से उनकी लंबाई पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि ‘फ़ूड चेन’ में अहम भूमिका निभाने वाली कुछ फ़सलों और पानी में रहने वाले जन्तुओं की जनसंख्या पर भी ग्लोबल वॉर्मिंग का बुरा असर पड़ सकता है।

लेकिन इस शोध के विपरीत कई वैज्ञानिकों का कहना है कि आकार और जनसंख्या में ऊंच-नीच होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और सभी प्रजातियाँ जलवायु परिवर्तन के अनुरूप ख़ुद को ढाल लेती हैं।

जीवाश्म रिकॉर्ड

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर की रिपोर्ट के मुताबिक़ शोध के दौरान सूक्ष्म जीवों से लेकर बड़े जानवरों तक, क़रीब 45 प्रतिशत प्रजातियों की पीढ़ियों के आकार में कमी देखने को मिली है।

शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि तेज़ी से बढ़ते तापमान और बारिश के बदलते तरीके या पैटर्न का जानवरों के शरीर पर गंभीर असर पड़ सकता है।

जलवायु परिवर्तन पर इससे पहले किए गए शोध में सामने आया था कि जानवरों के प्राकृतिक वास और प्रजनन संबंधी प्रक्रिया में बदलाव आ रहे हैं। लेकिन ये पहली बार है कि जानवरों और वनस्पति के आकार पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले असर पर शोध किया गया है।

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर का कहना है कि जीवाश्म रिकॉर्ड से उन्हें पता चला कि बढ़ते तापमान की वजह से समुद्री और दूसरे जीवों के आकार में पीढ़ी दर पीढ़ी सिकुड़न आई थी।

साढ़े पाँच करोड़ साल पहले भौंरे, मधुमक्खियों, मकड़ियों, ततैयों और चींटियों के आकार में हज़ार सालों के अंतराल में 50 से 75 प्रतिशत सिकुड़न आई थी। जहां तक गिलहरी जैसे स्तनधारी जानवरों की बात है तो उनका आकार 40 प्रतिशत कम हुआ।

जलवायु परिवर्तन पर बने संयुक्त राष्ट्र के पैनल के मुताबिक़ कार्बन प्रदूषण की वजह से धरती का तापमान एक डिग्री सेल्सियस से बढ़ा है और अगर इस प्रक्रिया में तेज़ी आती है, तो इस शताब्दी के अंत तक तापमान में चार से पांच डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है।

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