जिस लड़की ने अपने पिता के सपने को सच किया वो हैं एनीज़ कनमणि जॉय जो कि सिविल सेवा परीक्षा 2012 पास करने में कामयाब रही हैं। एनीज़ कनमणि जॉय ने ना सिर्फ 2012 में परीक्षा पास की बल्कि 65वां रैंक भी हासिल किया है।

ऐसा नहीं हैं कि एनीज़ ने ये पहली बार किया हैं। 2011 में भी एनीज़ ने सिविल सेवा पास की थी। तब उनका रैंक 580 था। उसी के आधार पर एनीज़ फिलहाल भारतीय अकांउट सेवा के तहत ऑफिसर ट्रेनिंग ले रही हैं।

आईएएस बनने की प्रेरणा कैसे मिली इस सवाल के जवाब ने एनीज़ कहती हैं, “बचपन से ही पिताजी ने सपना दिखाया था, लेकिन मैंने बचपन से इसकी तैयारी नहीं की थी। वो तो इंटर्नशिप के बाद मैंने इस इम्तिहान की तैयारी की.”

एनीज़ पहली नर्स हैं जो सिविल सेवा परीक्षा पास करने में कामयाब रही हैं। क्या उन्हें पता था कि अगर ये परीक्षा पास कर लेती हैं तो ऐसा करने वाली वो पहली महिला होंगी, इस सवाल के जवाब में एनीज़ कहती हैं, “जब मैंने तैयारी शुरु की तो मैंने सोचा कि किसी आईएएस नर्स से सलाह लेनी चाहिए, लेकिन मैं ऐसी किसी नर्स को नहीं ढूंढ पाई। हालांकि मुझे इस बारे में पक्का पता इम्तिहान पास कर लेने के बाद ही चला। ”

तो उनके पिता ने इस खबर पर क्या कहा, इस सवाल के जवाब में एनीज़ कहती हैं, “जब मैंने पिताजी को फोन पर बताया तो वो कुछ बोल ही नहीं पाए। हालांकि मैं उनकी खुशी समझ सकती हूं.” एनीज़ इस इम्तिहान के पास करने के बाद अपने परिवार से मिलने केरल नहीं जा पाई हैं।

ग्रामीण पृष्ठभूमि होने के सवाल पर एनीज़ कहती हैं, “ग्रामीण पृष्ठभूमि खास मायने नहीं रखती। मायने रखती हैं कि आप में कितना दम है वैसे भी मैं केरल से आती हूं जहां पढ़ाई को बहुत माना जाता हैं। ये आपके लिए बड़ी बात होगी कि एक गांव की लड़की ने इतना बड़ा काम किया,मुझे तो सबकुछ साधारण लगता है.”

एनीज़ एक खास बात बताना नहीं भूली, “मेरे पिताजी मानते हैं कि पढ़ाई ही वो असल धन हैं जो हम अपनी बेटी को दे सकते हैं, भले ही हम किसान परिवार से हैं लेकिन उन्होने मुझे बेहतरीन शिक्षा दिलवाई है। हमारे केरल में एक चलन और हैं कि हमारे यहां हर मां-बाप बच्चों के स्कूल ज़रुर भेजते हैं.”

एनीज़ स्वीकार करती हैं कि उन्होने पिछले दो साल में नौ-नौ घंटो पढ़ाई की हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या आपको लगता हैं कि आपने पिछले दो साल में कुछ मिस किया हैं तो एनीज़ ने कहा कि मैने हो सकता हैं कि कुछ सामजिक त्योहार या मुलाकात ना कि हो लेकिन ऐसा कुछ खास मिस नहीं किया। वो हिन्दी की कहावत का हवाला देते हुए कहती हैं “कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है.”

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