देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई का 'आज़ाद खेल मैदान' जो हमेशा खेलते कूदते बच्चों से भरा होता है, शनिवार को चेहरे पर 'गाई फौक्स' मुखौटे लगाए हुए लोगों से पटा पड़ा था। गाई फौक्स सोलहवीं सदी में स्पेन की फौज में लड़ने वाले एक योद्धा थे। उनके जैसी वेश-भूषा धारण करना हैकर्स ग्रुप एनोनिमस की पहचान कही जाती है।

हाथों में इंटरनेट सेवा पर लगाए गए 'प्रतिबंधों को हटाने की मांग कर रहे' बैनर लिए हुए प्रदर्शनकारियों में से एक, उन्नीस वर्षीय अमीषा कहती हैं, ''मैं यहां इंटरनेट पर आज़ादी के समर्थन में आई हूं। ऑनलाइन पर बातचीत पर प्रतिबंध लगाकर रखा गया है.''

चेहरे को स्कार्फ और धूप के चश्मे से छुपाए हुए 20-वर्षीय निशांत कहते हैं, ''भारत चीन और ईरान की राह पर जा है। वो लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुंचना देना चाहते। इन लोगों ने कुछ ऐसे साइट्स पर रोक लगा दी है जिनमें दी गई जानकारियां एक नागरिक के लिए काफी ज़रूरी है.''

इंटरनेट चैट रूम के ज़रिए बीबीसी से बात करते हुए एनोनिमस के सदस्यों ने कहा कि वो भारत के आम लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, दूसरों की तरह साधारण इंटरनेट का प्रयोग करने वाले हैं और एक बात को सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं।

हैकरों का आतंक

भारत में इस समय से कम से कम बारह करोड़, एक लाख लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। एनोनिमस इंडिया भारत में इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनियों रिलायंस कम्युनिकेशंस और एयरटेल द्वारा फाइल शेयरिंग को रोकने की प्रक्रिया के विरोध में है, जो हैकर्स समूह के मुताबिक इंटरनेट का प्रयोग करने वालों के अधिकारों में कटौती के समान है।

भारत में इंटरनेट सेवा देने वाली कई कंपनियों ने हाल में इंटरनेट कॉपीराइट पर अदालत के फैसले के बाद कई फाइल शेयरिंग साइट्स को ब्लॉक कर दिया था। एनोनिमस के एक सदस्य के अनुसार, ''हम ऐसे अनियंत्रित न्यायिक प्रतिबंधों का विरोध कर रहे हैं, जिसके बारे में सरकार को भी पता नहीं है.''

कई वेबसाइट्स को ब्लॉक करने और उनमें दी गई जानकारियों को शेयर करने पर लगी रोक के विरोध में एनोनिमस समूह ने भारत की पंद्रह से ज़्यादा साइट्स को हैक कर लिया जिनमें सुप्रीम कोर्ट, दो राजनैतिक दल और कुछ टेलिकॉम कंपनियों की साइट्स शामिल थीं।

इस समूह ने कुछ दिन पहले रिलायंस कम्युनिकेशंस के सर्वर में भी दाखिल होने का दावा किया और एक ऐसी सूची जारी की थी जिसपर भारतीय सर्विस प्रोवाइडर ने रोक लगा रखी थी। हालांकि रिलायंस समूह ने साइट्स पर रोक लगाने के मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन बीबीसी का ध्यान 26 मई के अपने उस बयान की तरफ आकर्षित किया जिसमें कहा गया था कि रिलायंस समूह इस तरह के पास आईटी सुरक्षा के वैसे साफ्टवेयर हैं जो अनाधिकृत घुसपैठ को रोक पाने में पूरी तरह से सक्षम है और उनके सर्वर को हैक नहीं किया जा सकता।

गलत असर

एनोनिमस समूह का कहना है कि वो पाईरेसी का समर्थन नहीं करते हैं लेकिन फाइल शेयर करने वाली कई साइट्स वैधानिक तरीके से चल रहीं हैं जिनमें तस्वीरें और सॉफ्टवेयर कोड शेयर करना शामिल है। एनोनिमस के सदस्य टॉमजॉर्ज कहते हैं, ''फाइल शेयर करना इंटरनेट की जीवन रेखा है और इसी से इंटरनेट का जन्म हुआ है.''

लेकिन इंटरनेट संबंधी अभियान चला रहे मी़डियानामा ब्लॉग के संपादक निखिल पाहवर का मानना है कि भारत में इंटरनेट सेवा के काफी हद तक नियंत्रित होने के बावजूद वे एनोनिमस द्वारा साइट्स हैक करने की नीति का समर्थन नहीं करते।

पाहवर कहते हैं, ''ऐसी बहुत सी संस्थाएं हैं जो सरकार को ये समझाने की कोशिश कर रही है कि उनकी इस नीति के दूरगामी नकारात्मक असर हो सकते हैं, लेकिन जब हम सरकारी साइट्स पर हमला करने लगते हैं तब उसका भी काफी गलत प्रभाव होता है.''

पाहवर आगे कहते हैं, ''ऐसे कदमों का प्रतिकूल असर पड़ेगा क्योंकि इससे कहीं ना कहीं नेता और ज्यादा सख्त कानून लाने के लिए प्रेरित होंगे। सरकार अपनी इस बात पर अडिग है कि इन साइट्स पर नियंत्रण जरूरी है, ताकि किसी भी तरह की अप्रिय और निंदात्मक सामग्री इंटरनेट पर ना डाली जाए.'' लेकिन एनोनिमस का साफ कहना है कि वे ऐसा तब तक करते रहेंगे जब तक सरकार प्रतिबंधों को हटा नहीं लेती है।

एनोनिमस समूह का कहना है कि वो पाईरेसी का समर्थन नहीं करते हैं लेकिन फाइल शेयर करने वाली कई साइट्स वैधानिक तरीके से चल रहीं हैं जिनमें तस्वीरें और सॉफ्टवेयर कोड शेयर करना शामिल है। एनोनिमस के सदस्य टॉमजॉर्ज कहते हैं, ''फाइल शेयर करना इंटरनेट की जीवन रेखा है और इसी से इंटरनेट का जन्म हुआ है.''

 

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