मजदूरी तो उनकी मजबूरी है जनाब!

उनकी जिंदगी में दर्द इस कदर पैबस्त है कि दिन के जगने से लेकर रात के सो जाने तक वो हर सांस बड़ी बेबसी के साथ लेते हैं। अपना और परिवार का पेट भरने के लिए मजदूरी उनकी मजबूरी है। आज जब दुनिया एंटी चाइल्ड लेबर डे मना रही है तो हमने बनारस में बाल मजदूरों के हालात का जायजा लिया। जाहिर है कि जो दिखा वो बड़ा कड़वा था

मुझे न लौटाना मेरा ये बचपन!

जिंदगी की जद्दोजहद में हर लमहा मर रहा है बचपन

बनारस में हर तरफ दिखते हैं चाइल्ड लेबर

हाड़तोड़ मेहनत करके जुटा रहे दो जून की रोटी

VARANASI : हर वक्त चेहरे पर मासूम हंसी, कभी चांद पाने की हसरत तो कभी फूलों पर मंडराती तितली के पीछे भागने की आदत यही तो है बचपन। इंसान की जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल जिसकी वह मियाद वह कभी खत्म नहीं होने देना चाहता। इस शहर में हर जिंदगी इतनी खुशनसीब नहीं, हर बचपन इतना खूबसूरत नहीं। कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें यह तो पता नहीं होता कि दिन और रात क्यों होती लेकिन पेट भरने के लिए दो रोटी का इंतजाम कैसे होता बखूबी मालूम है। दुनिया को धर्म और ज्ञान की रोशनी देने वाले इस शहर में बाल मजदूरी का अंधेरा पसरा हुआ है। हजारों बच्चे चंद रुपयों के लिए हाड़ तोड़ मेहनत करने को मजबूर हैं। इनमें से ढेरों खतरनाक कल-कारखानों में काम करते हैं। इसका असर उनकी जिंदगी पर पड़ता है। ऐसे बचपन के गुजरने के बाद वह उसे फिर पाने की हसरत कभी दिल में नहीं रखते हैं।

भारी तादात है इनकी

बाल मजदूरी के दंश से बनारस अछूता नहीं है। प्रदेश में तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा बाल मजदूर बनारस में ही हैं। उनके उत्थान के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्थाओं की मानें तो इनकी संख्या ख्0 से ख्ख् हजार के बीच है। इनमें छह साल से क्ब् साल तक के बच्चे शामिल है। भले ही इनकी उम्र खेलने-कूदने की हो लेकिन इन बच्चों का समय स्कूल में कॉपी, किताबों और दोस्तों के बीच नहीं बल्कि होटलों, घरों, उद्योगों में बर्तन, झाड़ू, पोछा और औजारों के बीच बीतता है। बनारस में तीन माह से कम समय से मजदूरी करने वाले बच्चों की संख्या लगभग ब्भ्00 है। छह माह से मजदूरी में जुटे मासूमों की संख्या लगभग दो हजार के आसपास है। अन्य लम्बे समय से काम में लगे हुए हैं।

हर तरफ बचपन का हरण

-शहर का ऐसा कोई कोना नहीं है जहां बाल मजदूर न हों

-देश-दुनिया तक पहुंचने वाली बनारसी साड़ी के कारोबार में इनकी संख्या सबसे अधिक है

-खासतौर पर साडि़यों पर कढ़ाई के लिए उनके नन्हें और कोमल हाथों का इस्तेमाल किया जाता है

-कड़ाई के बावजूद ग्रामीण इलाकों कपसेठी, सेवापुरी, पिण्डरा हरहुआ आदि में कारपेट फैक्ट्री में बच्चे काम करते हैं

-बिल्डर्स के लिए पसंदीदा शहर बने बनारस में रियल स्टेट इंडस्ट्री में गिट्टी, बालू, ईंट ढोने का काम बच्चे कर रहे हैं

-सैकड़ों की संख्या में रैग पिकर्स बच्चे हैं जिनकी उम्र क्ब् वर्ष से कम होती है

-ईट-भट्ठा पर काम करने वालों में पुरुष-महिलाओं के साथ बच्चे भी नजर आते हैं

-शहर में मौजूद होटल, रेस्तरां, गेस्ट हाउस, पेइंग गेस्ट हाउस में बच्चों से काम लिया जाता है

-हर तरह की दुकानों में सामान आदि ढोने की जिम्मेदारी मासूम कंधों पर होती है

-डाई, केमिकल, बीड्स आदि के कारखानों में बच्चे खतरनाक काम कर रहे हैं

-शहर में मौजूद सट्टियों में नन्हें बच्चे हर वह काम कर रहे हैं जिसे करने में बड़े भी तकलीफ महसूस करते हैं

-पंचर बनाने वाले, बारात में लाइट ढोने वाले, घाटों पर माला-फूल बेचने वाले, बच्चों के खिलौने-गुब्बारे बेचने वाले बच्चे हैं

शिकार बनाता है परिवार

बाल मजदूरी के लिए सबसे पहले परिवार दोषी होता है। दो जून की रोटी के लिए जूझने वाला परिवार अपने जंग में परिवार के हर सदस्य को शामिल कर लेता है। इनमें वह मासूम भी होते हैं जिन्हें ठीक ढंग से जिंदगी के मायने भी नहीं मालूम होते हैं। वहीं व्यवसाय से जुड़ा हर शख्स चाइल्ड लेबर की चाहत रखता है। छोटे बच्चे मेहनत से काम करते हैं। बदले में उन्हें किसी वयस्क से काफी कम मजदूरी देनी पड़ती है। वह किसी तरह की परेशानी भी नहीं खड़ी करते हैं। हर तरह से उनका शोषण किया जाता है लेकिन विरोध करने की स्थिति नहीं होती है। परिवार की मंशा होने की वजह से पुलिस या प्रशासनिक अधिकारियों को चाइल्ड लेबर के खिलाफ कार्रवाई करना भी आसान नहीं होता है

यह है चाइल्ड लेबर एक्ट

-स्कूल न जाने वाले छह से क्ब् साल के बच्चे जो किसी तरह का काम करते हैं वह चाइल्ड लेबर की श्रेणी में आते हैं

-बाल मजदूर की इस स्थिति में सुधार के लिए सरकार ने क्98म् में नेशनल चाइल्ड लेबर प्रोटेक्शन एण्ड रेगुलेशन एक्ट बनाया

-जिसके तहत बाल मजदूरी को एक अपराध माना गया तथा रोजगार पाने की न्यूनतम आयु क्ब् वर्ष कर दी

-वर्ष ख्00ख् में एक्ट में कुछ जरूरी बदलाव किए गए

-जनवरी ख्00भ् में नेशनल चाइल्ड लेबर प्रोजेक्ट स्कीम को ख्क् विभिन्न भारतीय प्रदेशों के ख्भ्0 जिलों तक बढ़ाया गया

-चाइल्ड लेबर एक्ट के मुताबिक नियोक्ता जो इसमें शामिल हो उसे छह महीने की कैद और ख्0 हजार रुपये जुर्माना की सजा हो सकती है

- जैसा कि वरिष्ठ अधिवक्ता नीलकण्ठ तिवारी ने बताया