बताया जा रहा है कि स्पैम से लड़नेवाली एक संस्था का एक वेबसाइट चलानेवाली कंपनी के साथ मतभेद हो गया जिसकी प्रतिक्रिया में इंटरनेट की मूलभूत सुविधाओं पर हमले होने लगे.

सरल शब्दों में कहा जाए तो जानकारों को चिंता है कि अगर इस हमले पर क़ाबू नहीं पाया गया तो बैंकिंग और ईमेल सुविधाओं पर भी असर पड़ सकता है.

अभी से इसका असर ‘नेटफ्लिक्स’ पर देखा जा रहा है. पांच देशों की साइबर पुलिस इन हमलों की तहक़ीक़ात में जुट गई है.

ब्रितानी सरकार का इंटरनेट काटने की क्षमता

हमलावरों ने जिस तकनीक का इस्तेमाल किया है उसे ‘डिस्ट्रिब्यूटिड डिनायल ऑफ सर्विस’ कहते हैं. इसमें ‘टार्गेट’ को बहुत तादाद में ट्रैफ़िक भेजा जाता है

ताकि वो पहुंच के बाहर हो जाए.

प्रोफेसर ऐलन वुडवर्ड, सर्रे विश्वविद्यालय में साइबर-सिक्यूरिटी के विशेषज्ञ

इस हमले में लंदन और जेनेवा में स्थित एक ग़ैर-सरकारी संगठन ‘स्पैमहौस’ के ‘डोमेन नेम सिस्टम सर्वर’ को निशाना बनाया गया.

ये सर्वर वो होते हैं जो डोमेन नामों, जैसे बीबीसी.को.यूके, को वेबसाइट के इंटरनेट प्रोटोकॉल ऐड्रेस से जोड़ता है.

स्पैमहौस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी स्टीव लिनफोर्ड ने बीबीसी को बताया कि ये हमला अप्रत्याशित स्तर पर हुआ है.

उन्होंने कहा कि, “इसका निशाना अगर ब्रितानी सरकार हो तो इसमें इतनी ताक़त है कि उनका सारा काम ठप्प हो जाए और वो इंटरनेट से बिल्कुल कट जाएं.”

लिनफर्ड ने कहा कि जब बैंकों पर ऐसे साइबर हमले होते हैं तो उनकी तीव्रता 50 गिगाबिट्स प्रति सेकेंड होती है लेकिन ये हमले 300 गिगाबिट्स प्रति सेकेंड पर हो रहे हैं.

सर्रे विश्वविद्यालय में साइबर-सिक्यूरिटी के विशेषज्ञ, प्रोफेसर ऐलन वुडवर्ड के मुताबिक़ इस हमले का असर पूरी दुनिया में इंटरनेट की सेवाओं पर पड़ रहा है.

प्रोफेसर वुडवर्ड ने बीबीसी को बताया, “अगर आप एक सड़क को सोचें, तो ये हमले उसपर इतना ट्रैफि़क डाल रहे हैं, कि ना सिर्फ़ सड़क जाम हो गई है, बल्कि उसके आसपास चलने की भी जगह नहीं बची है.”

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