- एंटीबायोटिक दवाओं के दुष्प्रभाव का मेडिकल कॉलेज में तैयार हो रहा डाटा

- नई एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति भी मरीजों में बढ़ा रजिस्टेंस, सेल्फ मेडीकेशन बढ़ी वजह

द्मड्डठ्ठश्चह्वह्म@द्बठ्ठद्ग3ह्ल.ष्श्र.द्बठ्ठ

यन्हृक्कक्त्र: मेडिकल फेटरनिटी में एंटीबायोटिक दवाओं का मिसयूज बड़ा मसला रहा है। अब एंटीबायोटिक दवाओं के ज्यादा इस्तेमाल से होने वाले दुष्प्रभाव भी साफ तौर पर नजर आने लगे हैं तो हेल्थ डिपार्टमेंट को इसका ख्याल आया है। डॉक्टर्स ने भी इस अब इस पर ध्यान देना शुरू किया और सांगठनिक स्तर पर चर्चा के बाद एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल को लेकर कुछ गाइडलाइन तैयार की हैं।

तीन कैटेगरी में एंटीबायोटिक

डब्लूएचओ ने 2017 में जरूरी दवाओं की सूची में 55 दवाएं जोड़ी थी। जिसके बाद इस लिस्ट में कुल 433 दवाएं शामिल हैं। इन दवाओं को एक्सेस, वाच और रिजर्व कैटेगरी में बांटा गया है। एक्सेस कटेगरी में वो दवाएं रखी गई हैं। जोकि सामान्य संक्रामक बीमारियों में प्रयोग होती हैं। वाच कैटेगरी में ज्यादा प्रतिरोधक उच्च क्षमता की दवाएं हैं। वहीं रिजर्व कैटेगरी में वह दवाएं आती हैं जोकि सीमित बीमारियों में जरूरत पड़ने पर ही दी जाती हैं।

मरीजों का डाटा होगा तैयार

मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट कॉलेज से संबद्ध अस्पतालों में आने वाले ब्लड सैंपलों की एक स्टडी कर रहा है। कितने मरीजों के ब्लड सैंपलों में एंटीबायोटिक दवाओं के रजिस्टेंस मिले हैं इसका पूरा डाटा तैयार किया जा रहा है। इसके लिए खास तौर से स्वास्थ्य विभाग की तरफ से एक पत्र कॉलेज प्रशासन को लिखा गया है जिसमें एंटीबायोटिक दवाओं के दुष्प्रभावों को लेकर मरीजों का एक डाटा तैयार करने को कहा गया है।

आईएपी ने बनाई गाइडलाइंस

बच्चों के इलाज में एंटीबायोटिक दवाओं के यूज को लेकर इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक की तरफ से एक गाइडलाइन तैयार की गई हैं। जिसमें बच्चों की अलग अलग बीमारियों में एंटीबायोटिक दवाओं का स्तर किस हद तक करना है यह भी तय किया गया है। मेडिकल कॉलेज में बालरोग विभाग के हेड डॉ.यशवंत राव के मुताबिक बच्चों को शुरुआत में कम से कम एंटीबायोटिक दवाएं दी जानी चाहिए। वहीं फार्माकोलॉजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ। अंबरीश गुप्ता बताते हैं कि एंटीबायोटिक दवाओं का यूज बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों के इलाज में ही होना चाहिए। एंटीबायोटिक दवाओं का सेल्फ मेडीकेशन बेहद खतरनाक है। यह न सिर्फ शरीर के कई अंगों पर प्रभाव डालता है। वहीं शरीर में बैक्टीरिया के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को भी खत्म कर देता है।

सीजनल बीमारियों में एंटीबायोटिक गैर जरूरी

मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.विकास मिश्रा बताते हैं कि अभी कई सीजनल बीमारियों जैसे डायरिया, सर्दी,जुखाम, बुखार, खांसी, गले में खराश इत्यादि में भी लोग मेडिकल स्टोर से दवा लेकर खा लेते हैं। इनमें कई एंटीबायोटिक भी होती हैं,जबकि इन बीमारियों में एंटीबायोटिक की जरूरत ही नहीं होती। उन्होंने बताया कि किसी पेशेंट की कल्चर जांच कराने के बाद ही उसे एंटीबायोटिक दवा देनी चाहिए। क्योंकि कई सालों से बाजार में नई एंटीबायोटिक नहीं आई है। जब तक कल्चर जांच में रजिस्टेंस न पता चल जाए डॉक्टर्स भी एंटीबायोटिक दवा न चलाए। इसका उन्हें ध्यान रखना चाहिए।