- अपने आप न ले एंटीबायोटिक, गंभीर बीमारी होने पर नहीं करेंगी असर

- केजीएमयू में इंफेक्शियस डिजीज अपडेट-2016 का आयोजन

LUCKNOW: सर्दी, खांसी, जुकाम या कोई भी बीमारी होने पर एंटीबायोटिक लेना ठीक नहीं। डॉक्टर भी बिना जरूरत के ही धड़ल्ले से एंटीबायोटिक मरीजों को खिला रहे हैं। ऐसे में गंभीर बीमारी होने पर ये दवा असर ही नहीं करती। डॉक्टर्स को एंटीबायोटिक दवाओं के सही प्रयोग और बीमारी की सही डायग्नोसिस के लिए केजीएमयू में शनिवार से शुरू हुई दो दिवसीय इंफेक्शियस डिजीज अपडेट-2016 में जानकारी दी गई।

डेवलप हो रहा फंगल इंफेक्शन

केजीएमयू के डॉ। डी हिमांशु ने बताया कि मरीजों में एंटीबायोटिक के ओवरयूज के कारण अब फंगल रजिस्टेंस भी डेवलप हो रहा है। मरीजों के लिए जरूरी है कि डॉक्टर ने जितनी दवा दी, उसकी पूरी डोज खाएं। पांच दिन की दवा प्रेस्क्राइब है तो पूरे पांच दिन ही दवा लें। अन्यथा दवा रजिस्टेंट हो जाएगी और भविष्य में बीमारी होने पर असर ही नहीं करेगी। उन्होंने बताया कि अस्पतालों में नई एंटीबायोटिक पॉलिसी को लागू करना होगा। इससे मरीज के स्वास्थ्य के साथ ही आर्थिक क्षति से भी बचाया जा सकता है। नई पॉलिसी में कई एंटीबायोटिक कांबिनेशन को बंद कर दिया गया है।

कमजोरी को बताते हैं फीवर

केजीएमयू के डॉ। डी हिमांशु ने बताया कि इस समय बहुत मरीज ऐसे आते हैं, जिनका फीवर लगातार उतरता ही नहीं। जांच में पता चलता है कि उन्हें फीवर था ही नहीं। कमजोरी के कारण उन्हें लगता है कि फीवर है और मरीज लगातार एंटीबायोटिक लेना शुरू कर देते हैं। यह गलत है। बहुत से मरीज ऐसे भी हैं जिन्हें लगातार दवाएं लेने के कारण फीवर होता है। ऐसे में उनकी दवा बंद करते हैं तो एक दो दिन में फीवर ठीक हो जाता है। इसे ड्रग इंड्यूस्ड फीवर कहते हैं। इसलिए सभी लोगों को चाहिए कि घर पर ही थर्मामीटर रखें। अगर फीवर होता है तो उसे नापते रहें। जब डॉक्टर के पास पहुंचे तो पूरी जानकारी दें। ताकि बीमारी के कारण का सही पता लग सके और सही इलाज मिल सके।

80 परसेंट डॉक्टर बिना जरूरत दे रहे दवाएं

केजीएमयू के डॉ। एके त्रिपाठी के अनुसार लगभग 80 परसेंट डॉक्टर बिना जरूरत के ही एंटीबायोटिक खिला रहे हैं। जिसके कारण लोगों में रजिस्टेंस डेवलप हो रहा है। ये वे लोग हैं गांव, गली मोहल्ले में बैठकर जुकाम, सिंपल फीवर या किसी भी छोटी बीमारी में बिना जरूरत के ही दवा दे रहे हैं। अगर सरकार कोई एंटीबायोटिक पॉलिसी बनाती है तो भी इन लोगों को कंट्रोल करना बड़ी चुनौती होगी। वहां जांच और दवाएं कैसे देंगे।

80 परसेंट को एंटीबायोटिक की जरूरत ही नहीं

केजीएमयू के डॉ। केके सावलानी ने बताया कि फीवर बैक्टीरिया, वायरस और फंगल इंफेक्शन के कारण भी होता है। जिसमें से 80 परसेंट मरीजों को एंटीबायोटिक की जरूरत ही नहीं होती। केवल बैक्टीरिया के इंफेक्शन में ही इसका असर होता है। उन्होंने कहा कि रेजीडेंट डॉक्टर्स के लिए जरूरी है कि वे मरीज की सही डायग्नोसिस करें ताकि एंटीबायोटिक का अनावश्यक उपयोग रोका जा सके।

हैंड हाइजीन से दूर रहेगा डॉक्टर

केजीएमयू के डॉ। हैदर अब्बास ने बताया कि 90 परसेंट इंफेक्शन बैक्टीरिया के कारण होते हैं। ट्रांसप्लांट के मरीज, हाई डोज स्टीरायड, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी ओर कम प्रतिरोधक क्षमता वाले मरीजों में ये इंफेक्शन आसानी से हो जाते हैं। इन इंफेक्शन को रोकने के लिए जरूरी है कि अस्पताल जाने से पहले और निकलने के बाद, कुछ भी खाने-पीने से पहले हम हाथ जरूर धोएं। 80 परसेंट इंफेक्शन से इसी से ही बचा जा सकता है।

तो कराएं इंफेक्शन की जांच

एसजीपीजीआई के डॉ। अफजल आजिम ने बताया कि आईसीयू से भी मरीज को इंफेक्शन हो सकता है, जो कई कारणों से होता है। अगर आईसीयू में मरीज की हालत सुधरने के साथ दवाएं देने के बावजूद बिगड़ रही है तो एंटीबायोटिक देने की बजाए फीवर का कारण पता करें। क्योंकि इसका 50 परसेंट में इंफेक्शन भी हो सकता है और 50 परसेंट अन्य कारणों से भी समस्या हो सकती है।

जरूरी है सीएमबी वायरस की जांच

ट्रांसप्लांट के पहले सीएमबी जांच जरूर होनी चाहिए। इस वायरस के कारण मरीज को हेपेटाइटिस, कोलाइटिस और पैंक्रियाटिस जैसी समस्याएं होती हैं। पहले से यह जांच करके हम मरीज को होने वाली समस्याओं से बचा सकते हैं। उन्होंने बताया कि भर्ती मरीजों में इंफेक्शन होने का बड़ा कारण कैथेटर का प्रयोग भी है। इसलिए सही से कैथेटर लगाया जाए और मरीज को होने वाली समस्याओं से बचाया जाए।

केजीएमयू में जल्द लागू होगी एंटीबायोटिक पॉलिसी

इस मौके पर केजीएमयू के वीसी प्रो। रविकांत ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाएं लिखने के प्रोटोकॉल का अनुपालन होना चाहिए। ऐसा न करने वाले सर्जन्स को 20 दिन ओटी में प्रवेश से रोक देना चाहिए। जल्द ही केजीएमयू में भी एंटीबायोटिक पॉलिसी लागू होगी। कम्प्यूट्रीकृत सिस्टम से डॉक्टर्स द्वारा लिखी जाने वाली दवाओं पर फार्माकोलॉजी विभाग निगरानी करेगा। उन्होंने बताया कि प्रोटोकॉल अपनाकर, मरीज की दवाओं पर खर्चे को कम कर सकते हैं। हमे सुपरस्पेशलाइज ट्रीटमेंट देना होगा प्राइमरी हेल्थ सेंटर्स की तरह नहीं।