हर जगह चर्चा और बहस

वासेपुर में आरा मोड़ पर सिंघ जी’ की चाय दुकान हो या फिर मस्जिद के पास का अयूब होटल, हर जगह इन दिनों चर्चा और बहस के बीच माहौल गर्म हो उठता है. मुद्दा है-गैंग ऑफ वासेपुर. आगामी २२ जून को सिल्वर स्क्रीन पर अवतरित होने वाली इस फिल्म के प्रोमोज, डायलॉग्स के टुकड़ों और सांग्स के मुखड़ों में वासेपुर की जो झलक सामने आ रही है, उसपर यहां के लोगों का सख्त एतराज है. खास तौर पर माइनॉरिटी तबके के लोग इस बात को लेकर आशंकित हैं कि फिल्म में वासेपुर की पेश की जा रही खूंरेजी वाली तस्वीर और गालियों वाले डायलॉग से उनके शहर की पूरे देश में बदनामी होगी और लोग बाहर में खुद को वाासेपुर का बाशिंदा बताते हुए शर्मिंदा होंगे.

यह है,रील नहीं रियल वासेपुर

ऐसा है हमारा वासेपुर

करीब डेढ़ लाख की आबादी वाला वासेपुर, धनबाद म्यूनिसिपल एरिया के वार्ड नंबर १७ और 18 के अंतर्गत आता है. धनबाद बैंक मोड़ से भूली जाने वाले रास्ते में पडऩे वाले इस सब-टाउन में मुस्लिमों की आबादी सबसे ज्यादा है, लेकिन हिंदुओं और आदिवासियों की भी खासी तादाद है. चूडिय़ों के कारोबार के लिए यह इलाका मशहूर है. इसके अलावा फर्नीचर, ज्वेलरी, जूता-चप्पल, टायर्स-ट्यूब्स, वेल्ंिडग और तमाम तरह के कारोबार करनेवाले लोग यहां रहते हैं. हजारों लोग आस-पास की कोलियरियों में छोटे-बड़े ओहदे पर काम करते हैं. कुछ लोग कोलियरियों में जीएम-सीजीएम जैसे पोस्ट पर भी रहे हैं. वासेपुर की गलियों से निकल कर इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस में ऊंचे पदों पर पहुंचे अबू इमरान और मो खालिद का नाम यहां के लोग खास तौर पर लेते हैं. करीब सौ से भी ज्यादा लोगों ने डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर और साइंटिस्ट का करियर चुना है. जिले की सियासत में भी यहां के लोगों का अच्छा दखल है. वासेपुर मोमिन वेलफेयर सोसाइटी के प्रेसीडेंट 72 वर्षीय हाजी यूनुस अंसारी कहते हैं कि यह अच्छे, इज्जतदार और ओहदेदार लोगों का इलाका है. अब एक फिल्मकार अपनी पॉपुलैरिटी के लिए इसे पर्दे पर क्रिमिनल्स की बस्ती के रूप में पेश कर रहा है. ऐसी ओछी हरकत आखिर कैसे बर्दाश्त की जा सकती है?

 

यह है,रील नहीं रियल वासेपुर

जनाब इज्जत बख्शना जानते हैं!

जानते नहीं हो...यह वासेपुर है...! यहां कबूतर भी एक पंख से उड़ता है और एक पंख से अपनी इज्जत बचाता है! -यह वो डायलॉग है, जो फिल्म गैंग ऑफ वासेपुर के प्रोमो में प्रमुखता से दिखाया जा रहा है. वासेपुर के बाशिंदों की इस डायलॉग पर जबर्दस्त नाराजगी है. हाजी यूनुस अंसारी कहते हैं, फिल्म के डायरेक्टर अनुराग कश्यप तक हमारी यह बात पहुंचा दीजिए कि ये अमनपसंदों का इलाका है. हम तो मेहमाननवाजी के लिए जाने जाते हैं. बाहर से आनेवालों को हम इज्जत बख्शते हैं. उन तक हमारा ये पैगाम पहुंचा दीजिए- जनाब! किसी की इज्जत उछालना हमारी फितरत नहीं है. धनबाद डिस्ट्रिक्ट कांग्रेस के जेनरल सेक्रेट्री परवेज अख्तर भी इस डायलॉग पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं. उन्होंने इस बाबत सेंट्रल इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग मिनिस्टर अंबिका सोनी को लेटर लिखकर फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने की डिमांड की है.

The Real Wasseypur: वीडियो देखें -

स्क्रीन प्ले राइटर वासेपुर का

वासेपुर के लोग फिल्म को लेकर भले कड़ा एतराज कर रहे हों, पर इस फिल्म के स्टोरी और स्क्रीन प्ले राइटर  जीशान कादरी खुद वासेपुर के कमल मकदूबी रोड के रहने वाले हं. उनके पिता इमरान कादरी ईसीएल में एग्जीक्यूटिव इंजीनियर थे. वासेपुर के लोगों में जीशान कादरी के प्रति भी नाराजगी जबर्दस्त है. उनका कहना है कि इसी सरजमीं पर पला-बढ़ा लड़का अपनी ही माटी-पानी की ऐसी तौहीन करेगा, इसका अंदाज किसी को न था.

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हमारी इज्जत इस तरह ना उछालो

फिल्म पर लोगों का यह एतराज अब अदालती लड़ाई की शक्ल अख्तियार करने वाला है. वासेपुर एकता मंच के प्रेसिडेंट जावेद खान, जो कि डिस्ट्रिक्ट बीजेपी के प्रेसिडेंट भी हैं, ने फिल्म के प्रोड्यूसर-डायरेक्टर अनुराग कश्यप को न सिर्फ लीगल नोटिस भेजा है बल्कि इस फिल्म का प्रदर्शन रोकने के लिए धनबाद डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में एक कंप्लेंट रिट भी दाखिल किया है. जावेद कहते हैं :  धनबाद-झरिया का कोयलांचल भले माफियाओं के बीच खूनी लड़ाई का गवाह रहा हो, लेकिन फिल्म में वासेपुर की जो छवि सामने लाई जा रही है, उससे इस पूरे इलाके की बदनामी होगी. हम किसी को भी इस तरह अपनी इज्जत तार-तार करने की इजाजत नहीं देंगे, चाहे वह बॉलीवुड का कितना भी बड़ा डायरेक्टर क्यों न हो.’

यह है,रील नहीं रियल वासेपुर

Wasseypur in ‘reel’

डायरेक्टर-प्रोड्यूसर अनुराग कश्यप अपनी फिल्मों के लिए अक्सर एक्सक्लूसिव सब्जेक्ट चुनते हैं. गैंग ऑफ वासेपुर उनकी पहली कॉमर्शियल फिल्म है, जो झारखंड के धनबाद में कोयला माफियाओं के बीच 40 के दशक से अब तक जारी गैंगवार पर बेस्ड है. सिल्वर स्क्रीन पर अवतरित होने के पहले कान फिल्म फेस्टिवल में डंका बजा चुकी इस फिल्म को अनुराग रियलिटी और फिक्शन का मिश्रण बताते हैं. वह कहते हैं कि हमने कुछ काल्पनिक घटनाक्रम का सहारा जरूर लिया है, लेकिन कोशिश रियलिटी दिखाने की है. फिल्म का नाम गैंंग ऑफ वासेपुर रखे जाने के पीछे भी मकसद यही है कि यह धनबाद कोयलांचल की रीयल स्टोरी लगे.

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जब कैमरा छिपाना पड़ा

फिल्म ऑनस्क्रीन रीयल लगे, इसके लिए अनुराग की टीम ने कई बार इसकी शूटिंग अपने कैमरे छुपाते हुए की. अनुराग का कहना है कि कैमरे छुपाने का फैसला इसलिए लिया गया कि पूरे माहौल और मूड को नैचुरलिटी के साथ पकड़ा जा सके. लोग अक्सर कैमरा देखकर कॉन्शस हो जाते हैं और इससे रियल मूड को पकडऩे में परेशानी आती है. यह जरूरी था कि हम मााहौल को ज्योंं का त्यों अपनी फिल्म में उतारें.

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सबसे लंबी फिल्म

खास बात यह कि पूरी फिल्म पांच घंटे से भी ज्यादा  लंबी है. चूंकि कोई भी डिस्ट्रीब्यूटर इतनी लंबी फिल्म पर इन्वेस्टमेंट को तैयार नहीं था, लिहाजा उन्होंने इसे दो पार्ट में बनाया हैै. इसका सीक्वल भी इसी साल रिलीज किया जाना है. कान फिल्म फेस्टिवल में फिल्म के दोनों पार्ट प्रदर्शित किए गए. कान फेस्टिवल में प्रदर्शित होनेवाली तमाम फिल्मों में यह सबसे लंबी फिल्म रही.

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वाराणसी में शूटिंग

फिल्म के ज्यादातर हिस्सों की शूटिंग वाराणसी में हुई है. वजह साफ है, यह ऐसा शहर है जहां बिहारी -परिवेश और मूड वाले शॉट्स कैप्चर करना आसान था. शूटिंग 110 दिनों में पूरी की गई. कुछ हिस्सों की शूटिंग धनबाद कोयलांचल के आस-पास के लोकेशंस पर भी हुई है.

कैसे-कैसे किरदार

इसके कलाकारों में मनोज वाजपेयी, पीयूष मिश्रा, पान सिंह तोमर फेम डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया  राईमा सेन, हुमा कुरैशी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी आदि हैं. मनोज खुद बिहारी हैं. ऐसे में उनके लिए फिल्म के मेन कैरेक्टर को सहजता के साथ जीना मुश्किल नहीं था. इसके अलावा पीयूष मिश्रा इसके पहले गंगाजल और अपहरण जैसी बिहारी पृष्ठभूमि वाली फिल्मों में सशक्त अभिनय का जलवा दिखा चुके हैं. तिग्मांशु भी बेहद दमदार और सबसे लंबे रोल में बताए जाते हैं. फिल्म के पहले पार्ट में वे जहां 1941 से 1990 का पीरियड दिखा रहे हैं, वहीं दूसरे पार्ट में इसके बाद से लेकर 2009 तक के घटनाक्रमों को समेटने की कोशिश है.

फिल्म में 25 गाने

फिल्म की खासियत इसके सांग्स भी हैं. प्रोमोज में दिखाए जा रहे कई गाने लोगों की जुबां पर चढऩे लगे हैं. फिल्म के दोनों पाट्र्स मिलाकर कुल 25 गाने बताए जाते हैं. जिय्य हो बिहार के लाल, जिय्य सौ-सौ साल.. गीत  से जाहिर है कि अनुराग के टारगेट ऑडिएंस में बिहार, यूपी और देश के तमाम हिस्सों में रहनेवाले बिहार-यूपी  के लोग सबसे ऊपर हैं.

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