- 27वें अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन में साहित्यकारों ने पूर्व राष्ट्रपति की किताबों पर की चर्चा

LUCKNOW: सती प्रथा को मिटाने में राजाराम मोहन के अलावा अकबर ने भी काफी योगदान दिया था, लेकिन अकबर को लोग सती प्रथा को दूर करने के लिए नहीं जानते। इसी तरह डॉ। एपीजे अब्दुल कलाम ने भी वैज्ञानिक क्षेत्र के अलावा साहित्य के क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। उनके इस योगदान के बारे में दुनिया में कम ही लोग बात करते हैं। ये बातें डॉ। शहिदा ने 27वें अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन के दूसरे दिन मिसाइलमैन डॉ। कलाम पर सेमिनार के दौरान कही गई।

सिर्फ एक किताब नहीं

शनिवार को जय शंकर सभागार में हुए सेमिनार में शायर शारिब रुदौलवी ने डॉ। कलाम के व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि डॉ। कलाम इंसानियत के शायर थे। उन्होंने सदैव भाईचारे का संदेश दिया। वह बच्चों से बहुत प्यार करते थे। उन्होंने विंग्स ऑफ फायर, इग्नाइटेड माइंड्स, माई जर्नी, इंडिया 2020, द लाइफ ट्री जैसी किताबों और डिफेंडर्स ऑफ बॉर्डर्स यू आर ग्रेट सन्स ऑफ माई लैंड और ब्लेस माई नेशन विद् विजन जैसी अनेक किताबें लिखीं। उनकी कई अंगे्रजी की किताबों को कौमी काउंसिलिंग दिल्ली ने उर्दू में अनुवाद भी किया है।

अपने लेख से प्रेरित किया

दुबई से आए अतिथि रचनाकार डॉ। जुबैर फारूक ने अगली पीढ़ी में उर्दू तालीम की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि अदब तभी जिंदा रहेगा, जब बुनियादी काम होगा। प्रो। शाफे किदवई ने उनकी ख्वाब वो हकीकत है जो सोने न दे रचनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि डॉ। कलाम का व्यक्तित्व और काव्य संसार एक बेहतर इंसान बनने और कैसे जिंदगी में कामयाबी हासिल करें, इसके लिए प्रेरित करता है।

उर्दू सिर्फ मुशायरे तक सीमित नहीं

वहीं, खान मसूद खान ने पलायन पर डॉ। कलाम के दिए प्रेजेंटेशन की चर्चा करते हुए अपनी नजर में उन्हें एक अर्थशास्त्री भी बताया और कहा कि उर्दू की तरक्की को लोग मुशायरे तक ही सीमित मान लेते हैं, जबकि जरूरत उर्दू में तमाम विषयों की किताबों के अनुवाद की बहुत आवश्यकता है। सेमिनार की अध्यक्षता डॉ। इर्तिजा करीम ने की। इस दौरान अशफाक हुसैन, कतर से अहमद सबीह बुखारी, दुबई के सुहैल काकोरवी, प्रो। अहसन रिजवी, बलदेव भाई शर्मा, हबीबुल नबी, साकेब किदवई आदि वक्ताओं ने भी अपनी विचार रखे।