संत राजिन्दर सिंह जी महाराज। हर इंसान समझता है कि जो वह कर रहा है, वह सबसे अच्छा है। वह जैसी जिंदगी जी रहा है, उससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। कई बार हम यह भूल जाते हैं कि सद्गुणों का जिंदगी में होना बहुत जरूरी है। इंसान यह भूल जाता है कि जब उसके अंदर घमंड पैदा हो जाता है, तो फिर उसके कदम उसे प्रभु से दूर ले जाते हैं। कई बार प्रभु की खोज में लगे हुए लोगों के अंदर भी घमंड आ जाता है। इंसान सोचने लगता है कि मैंने बहुत दान-पुण्य किया है, मैं बहुत से तीर्थस्थानों पर गया हूं, मैं औरों का ख्याल रखता हूं।

इन दो अवस्थाओं में ही जीते हैं अधिकतर लोग

महापुरुष बार-बार हमें यही समझाते हैं कि हम ऐसी जिंदगी जिएं जो नम्रता से भरपूर हो। कुछ लोगों को अपने आप पर बड़ा घमंड होता है, उनको लगता है कि उनके कारण ही सबकुछ हो रहा है। वे सोचते हैं कि मैं बहुत अच्छा हूं, मैं बहुत पढ़ा-लिखा हूं, मैंने बहुत पैसे कमाएं हैं, मेरा बहुत बोलबाला है। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो केवल यह नहीं समझते कि मैं बहुत अच्छा हूं बल्कि औरों को बताते भी फिरते हैं कि मैं बहुत अच्छा हूं, मेरे पास बहुत सारे पैसे हैं, मैंने यह नई कार खरीदी है, मैं यहां सैर करके आया हूं, मेरे पास ये है, मेरे पास वो है। ज्यादातर लोग इन दो अवस्थाओं में ही जीते रहते हैं।

इसलिए इंसान सच्चाई की जिंदगी नहीं जी पाता

आपका सबसे बड़ा शत्रु है अहंकार,जो आप से छीन लेता है सच्ची जिंदगी

अपने अहंकार को काबू में न रखा जाए, तो फिर इंसान सच्चाई की जिंदगी नहीं जी पाता क्योंकि जहां पर घमंड आ जाता है, वहां पर आदमी बढ़-चढ़कर बातें करनी शुरू कर देता है, वह सच्चाई को भी बदल देता है। झूठी चीज को भी ऐसे दिखाएगा जैसे वह सच्ची हो। उसकी जिंदगी सच्चाई से दूर होनी शुरू हो जाती है। महापुरुष समझाते हैं कि इंसान अहंकार में सच्चाई से बहुत दूर चला जाता है। उसे अंदर से लगता है कि सब उसकी वाह-वाह करें। किसी की मदद करने के बजाय वह अपनी बड़ाई में ही लगा रहता है।

गुस्से का कारण है अहंकार

आपका सबसे बड़ा शत्रु है अहंकार,जो आप से छीन लेता है सच्ची जिंदगी

अहंकार के कारण ही इंसान को गुस्सा भी आता है। अगर एक अहंकारी आदमी आया और सामने वाला भी अहंकारी निकला, तो पहला अपनी बात करेगा पर दूसरा उसकी बात सुनेगा नहीं। पहला सुनाना चाह रहा है, दूसरा सुन नहीं रहा, तो पहले के अंदर गुस्सा बढ़ता ही चला जाएगा।

जीवन में जरूरी है स्थिरता

महापुरुष समझाते हैं कि हम यह न सोचें कि सारे गुण जरूरी नहीं हैं। अधूरे और अनियमित विकास से हम अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकते। हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार को काबू में करना है और एक संतुलित व स्थिर जिंदगी जीनी है। वह स्थिरता हमें तब मिलती है, जब हम अंदर की दुनिया में कदम उठाते हैं।

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