-मंडलीय हॉस्पिटल की इमरजेंसी व्यवस्था ध्वस्त

-मरीजों के अटेंडेंट ही कर रहे वॉर्ड ब्वाय का काम

सीन-1

लोहता क्षेत्र से दुर्घटना में घायल दो गंभीर मरीज मंडलीय अस्पताल पहुंचे। इस दौरान उस मरीज को एम्बुलेंस से उतारने के लिए कोई भी वॉर्ड ब्वाय नहीं पहुंचा। डाक्टर्स द्वारा रेफर किए जाने पर भी अटेंडेंट खुद ही स्ट्रेचर लाकर दोनों को एम्बुलेंस तक ले गए।

सीन-2

पीलीकोठी से करंट की चपेट में आए एक मरीज को इस्ट्रेचर तक नहीं मिला, जिससे परिजन उसे गोद में लेकर इमरजेंसी तक पहुंचे। प्राथमिक उपचार के बाद उसे वॉर्ड तक पहुंचाने के लिए भी कोई वॉर्ड ब्वाय मौजूद नहीं था।

दोनों सीन बता रहे हैं मंडलीय हॉस्पिटल कबीरचौरा के इमरजेंसी वॉर्ड की व्यवस्था ध्वस्त हो गयी है। 25 बेड के इस वॉर्ड में सिर्फ दो वॉर्ड ब्वाय से काम रहे हैं। जबकि जरूरत पांच की है। वॉर्ड ब्वाय की संख्या कम होने से मरीजों के अटेंडेंट को ही उनकी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। मरीज को एम्बुलेंस से इमरजेंसी तक पहुंचाना हो या वॉर्ड से ओपीडी तक ले जाने के लिए स्ट्रेचर लाना हो सभी काम अटेंडेंट को ही करना पड़ रहा है।

जो है वो भी नहीं करते काम

इमरजेंसी वॉर्ड में गंभीर मरीज पहुंचते है। मरीज को वॉर्ड तक लाने पुलिस थाने में तहरीर जमा कराने का काम भी वॉर्ड ब्वाय का होता है। लेकिन यहां सभी काम अटेंडेंट को ही करना पड़ता है। उधर इमरजेंसी में डयूटी पर मौजूद डॉक्टरों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एक साथ कई मरीजों को देखने में एक डॉक्टर को काफी मशक्कत करना पड़ी। इमरजेंसी में मात्र एक डॉक्टर के उपस्थित होने की वजह से आए दिन मरीज और डॉक्टरों के बीच विवाद होता रहता है। कुछ दिन पहले ही एक मरीज की मौत के बाद डॉक्टर और अटेंडेंट के बीच मारपीट हुआ था। इस दौरान डॉक्टर पर आरोप लगा था कि वे बुलाने पर मरीज के पास नहीं पहुंचे थे।

छुट्टी के दिन ज्यादा समस्या

इमरजेंसी में सबसे ज्यादा समस्या छुट्टी के दिन आती है। ओपीडी बंद होने के बाद इमरजेंसी में ही डॉक्टरों को मरीजों को देखना पड़ता है। ऐसे में इमरजेंसी की हालत भी ओपीडी जैसी हो जाती है।

वॉर्ड ब्वाय को ज्यादा कुछ बोल नहंी सकते। बोलने पर राजनैतिक दबाव पड़ने लगता है। वैसे भी यहां वॉर्ड ब्वाय और चिकित्सकों की कमी है। जब तक यह पूरी न हो जाती तब तक समस्या बनी रहेंगी।

डॉ। बीएन श्रीवास्तव, एसआईसी, मंडलीय हॉस्पिटल