-सड़कों की खोदाई से शहर की फिजा में घुला जहर

-कंक्रीट के उड़ते धूल से लगातार बढ़ रहा प्रदूषण का स्तर

-महमूरगंज, चितईपुर, अदर्ली बाजार समेत दर्जनों एरिया में

अगर आप सांस या अस्थमा के रोगी हैं और घर से बाहर निकल रहे हैं तो जरा सावधान हो जाइए। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि बनारस की हवा में जहर घुल रहा है, यहां कंक्रीट की उड़ती धूल जबरदस्त प्रदूषण फैला रही है, जो दमा के रोगियों के मर्ज को पहले से ज्यादा बढ़ा सकती है। यह खुलासा क्लाइमेंट एजेंडा की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट की माने तो इन दिनों शहर के दर्जनों ऐसे एरिया है जहां की हवा में जबरदस्त जहर घुल रहा है। जिसकी सबसे बड़ी वजह सड़कों की लगातार हो रही खोदाई और उससे निकले कंक्रीट के उड़ते धूल है।

-हाई लेवल पर 2.5 व पीएम 10

नॉन कंस्ट्रक्शन क्षेत्रों की तुलना में कैंट, महमूरगंज, चितईपुर, अदर्ली बाजार, पांडेयपुर, अवलेसपुर, डीएलडब्ल्यू, जैसे दर्जनों एरिया में हो रहे कंस्ट्रक्शन वर्क और सड़कों की खोदाई से स्थिति बेहद खराब हो चुकी है। स्थिति ये है कि पीएम 2.5 व पीएम 10 का लेवल तीन गुना ज्यादा हो चुका है।

शुद्ध हवा की हो रही कमी

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में वर्ड के टॉप सबसे पॉल्यूटेड सिटी में शुमार बनारस में प्रदूषण बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है। जिसको लेकर शासन ने अभी गंभीरता नहीं दिखाई है। सिटी में रोजाना बढ़ते वाहनों के आवागमन व निर्माण कार्य से उत्पन्न हानिकारक धूल के कण वातावरण में शामिल होकर सांस के माध्यम से लोगों के फेफड़ों तक पहुंच रहे है। द क्लाइमेट एजेंडा के सीनियर रिसर्चर धीरज कुमार का कहना हैं कि शहर के ज्यादातर एरिया में साफ और शुद्ध हवा की कमी होती जा रही है। पर्यावरण की ताजी हवा में विविक्त, जैविक अणुओं, और अन्य हानिकारक तत्वों के मिलने के कारण प्रदूषित हो रही है।

दिवाली बाद बिगड़ेगी स्थिति

जानकारों का कहना है कि प्रदूषण नियंत्रण को लेकर अभी से नहीं चेता गया तो दिवाली के बाद स्थिति और भी भयानक हो जाएगी। उनका कहना हैं कि दिवाली बाद आस पास के जिलों में पराली जलना शुरु हो जाएगा, जिससे एयर पाल्यूशन का लेवल और भी ज्यादा बढ़ेगा। यही नहीं सर्दी के बढ़ने से भी सांस और दमा रोगियों की तकलीफ चौतरफा बढ़ेगी।

से भी है कारण

सिर्फ धूल नहीं अन्य वजहों से भी हवा जहरीली होती जा रही है। धूल उद्योगों का व्यापक प्रसार, प्लास्टिक का ज्यादा उपयोग, अनियंत्रित निर्माण कार्य, कचरा व पराली का जलना, जैनेसेट, धुओं छोड़ने वाले वाहनों की संख्या में वृद्धि और घरेलू उपयोग के लिए ऊर्जा के परंपरागत स्त्रोतों का अधिक मात्रा में दोहन पर्यावरण में बदलाव का प्रमुख कारण है।

इन बीमारियों के हो रहे शिकार

शहर के जहरीली हवा के चलते लोगों में सांस, दमा, आंख, नाक व गले का इन्फेक्शन, सांस फुलना, दिल का रोग, फेफड़े का कैंसर, अस्थमा, टीवी, ह्रदय घात, एवं श्वांस संबंधी बीमारियां बीमारियों के शिकार हो रहे है। शहरों में स्थिति खतरनाक सीमा को पार कर चुकी है।

ये है उपाय

हवा में जहर घोलने वाले तत्वों की मात्रा घटाकर इस समस्या से बचा सकता है। इसके लिए वन-संरक्षण और वृक्षारोपण भी इसका एक प्रभावी इलाज है। वायु-प्रदूषण को कम करने वाले उपायों पर अगर तत्काल ध्यान दिया जाय तो स्थिति कंट्रोल में आ सकती है।

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वर्जन

बीच में कुछ स्थिति ठीक हुई थी, लेकिन इधर कुछ माह में एयर पॉल्यूशन अपने हाईएस्ट लेवल पर पहुंच चुका है। जिसे कंट्रोल में लाना बेहद जरुरी है।

धीरज कुमार दबगरवाल, सीनियर रिसर्चर, दी क्लाइमेट एजेंडा

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा

पूर्व निर्धारित मानक पीएम 2.5- 60 माइक्रोग्राम

पूर्व निर्धारित मानक पीएम 10-100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर