-आध्यात्मिक गुरु श्रीएम की अगुवाई में कन्याकुमारी से कश्मीर तक निकली आशा यात्रा पहुंची बनारस

-कहा, धर्म नहीं संप्रदाय की लोग लड़ रहे लड़ाई, धर्म का मर्म जानने की बताई जरूरत

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VARANASI

धर्म के सही अर्थ को जानने का प्रयास लोगों ने नहीं किया। हर किसी ने धर्म की अलग परिभाषा बनायी और उसी के लिए लड़ने मरने पर उतारू हो गया। जबकि वास्तविकता यह कि कोई भी धर्म की लड़ाई नहीं लड़ रहा है। यह तो संप्रदाय की लड़ाई है।

विश्व में शांति, सद्भाव व मानव धर्म के प्रसार के लिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक निकली आशा यात्रा के बनारस पड़ाव में आध्यात्मिक गुरु व मार्गदर्शक श्रीएम ने आई नेक्स्ट से हुई बातचीत में सोमवार को धर्म की व्याख्या कुछ इन्हीं शब्दों में की। उन्होंने कहा कि तेरा धर्म और मेरा धर्म कह कर हमने धर्म को बहुत छोटा कर दिया है। धर्म तो सार्वभौम है और सभी के लिए है। जैसे सत्य बोलना धर्म है, दूसरों के कष्ट को महसूस करना और उसके निवारण के लिए प्रस्तुत होना धर्म है। कहा कि धर्म का कोई झगड़ा ही नहीं है। ये झगड़े तो राजनीतिक हैं। नेता स्वहित में जनभावनाओं का अपने-अपने तरीके से लाभ उठाते हैं। यह लोगों की जिम्मेदारी है कि वे धर्म के मर्म को समझें। लोग खुद को सिर्फ मानव समझें तो अपने आप ही शांति और सद्भाव का माहौल बन जायेगा। यही मानव धर्म है।

मानवता के अंकुरण का्रयास है

श्रीएम ने कहा कि मैं जहां जाता हूं वहां के स्कूल कॉलेज यूनिवर्सिटीज में जरूर जाता हूं। स्टूडेंट्स के मन में मानवता के बीज बोने और उसके अंकुरण के प्रयास में लगा हूं। मुझे उम्मीद है कि मेरा प्रयास सफल होगा। उन्होंने कहा बनारस श्रीकाशी विश्वनाथ का धाम और सनातन धर्म का हेडक्वार्टर है। इसके बाद भी जब यहां धर्म मजहब से परे सभी सिर्फ बनारसी हैं तो फिर पूरे देश में भला ऐसा क्यों नहीं हो ऐसा हो सकता। बोले, अक्सर यहां आता रहता हूं। यहां कि मिट्टी का असर ही कुछ ऐसा कि बार-बार आने का मन करता है। कहा कि मानव धर्म तो यहां की आत्मा में बसा है। कबीर भी मानव धर्म परंपरा के पोषक थे। लगता है कि कबीर के अधूरे कार्यो को पूरा करना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है। बताया कि उनकी आशा यात्रा में हिन्दू भी शामिल हैं और मुसलमान भी। सिक्ख भी हैं और इसाई भी। राजनीतिक बंधनों से ऊपर उठकर भी लोग हमारे साथ हैं। कहा कि सत्य केवल एक है पर हम उसे अलग अलग नामों से पुकारते हैं। जीवन का स्त्रोत एक है।

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विरासत में मिली मानवता

नवंबर क्9ब्8 में तिरुवनंतपुरम् (केरल) के पठान परिवार में जन्मे मुमताज अली को मानवता के संस्कार विरासत में मिले हैं। पिता महबूब खान से योगासन सीखा और गायत्री मंत्र को उनकी ही दराज से निकालकर दस साल की उम्र में कंठस्थ किया। पिता हर धर्म सप्रंदाय को आदर व सम्मान देते थे जिसका असर इनके आचरण में दिखा। यही कारण रहा कि हर धर्म व मजहब को समझा जाना। क्9 वर्ष की उम्र में गुरु महेश्वरनाथ के सानिध्य में आए। बाबा ने मधुकरनाथ नाम दिया और हिमालय यात्रा पर निकले। इसमें अनेक संतों से मुलाकात हुई और मानवता प्रसार के निमित्त आध्यात्मिक ध्येय पूरा हुआ। मुमताज-मधुकरनाथ और मानव का समग्र रूप भी 'एम' में समाहित हुआ।

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बनारस में भव्य स्वागत

कन्याकुमारी से होते हुए आशा यात्रा पांच हजार किमी की दूरी पूरी कर सोमवार को बनारस के अमरा पहुंची। बड़ी संख्या में उपस्थित लोगों ने यात्रा और उसमें शामिल लोगों का भव्य स्वागत किया और दल ने पंचकोट घाट स्थित अतिथिगृह में विश्राम किया। अब क्भ् दिसम्बर को सुबह 7.फ्0 बजे क्रीं कुंड से सारनाथ तक यात्रा निकाली जाएगी। यात्रा ख्0 दिसंबर तक काशी में रहेगी। इसी दिन बीएचयू में अंतरराष्ट्रीय शांति-सद्भाव सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा।