पत्राचार संस्थान मामले में एमएचआरडी पहुंचा इविवि

एकेडमिक काउंसिल की बैठक में हुआ फैसला, भेजा प्रत्यावेदन

ALLAHABAD: इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पत्राचार संस्थान के सन्दर्भ में दिए गए आदेश के क्रम में बनी ज्वाइंट फैकेल्टी कमेटी के मिनट्स को विवि की एकेडमिक काउंसिल ने मंजूरी दे दी है। फ्राइडे को हुई एकेडमिक काउंसिल की मीटिंग में तय हुआ कि यदि एमएचआरडी व यूजीसी पत्राचार संस्थान को चलाने व बकाया धनराशि देने को तैयार हों तो विवि बीए व बीकॉम कोर्स फिर से संचालित करने को तैयार है।

नियमित वेतन का निर्देश

इस आशय का प्रत्यावेदन विवि ने एमएचआरडी व यूजीसी को भेज दिया है। ज्ञातव्य है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्राचार संस्थान को सत्र 2016-17 से खत्म करने के इविवि के आदेश को विगत दिनों क्षेत्राधिकार से बाहर मानते हुए रद्द कर दिया था। यही नहीं सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्णय लिए जाने तक बकाया वेतन सहित नियमित वेतन देने का निर्देश दिया था।

एकाएक नहीं खत्म कर सकते सेवा

कुलसचिव ने छह सितम्बर 2016 की अधिसूचना से पत्राचार संस्थान को बंद कर दिया था, जिसे चुनौती दी गई थी।

कोर्ट ने कहा है कि संस्थान के कर्मचारियों की स्थिति 14 जुलाई 2005 के पहले की बनी रहेगी

30 साल से कार्यरत कर्मचारियों की अचानक सेवाएं समाप्त कर वेतन देने से इनकार नहीं किया जा सकता

पत्राचार संस्थान में बीए व बीकॉम सेल्फ फाइनेंस के तहत चलता था

पहले यहां छात्रों की संख्या अधिक थी। छात्रों की संख्या कम हुई तो यह संस्थान घाटे में चला गया

यहां 100 से ज्यादा कर्मचारी कार्यरत थे

केंद्रीय दर्जा मिलने के बाद पत्राचार संस्थान को विवि का हिस्सा नहीं माना गया

लिहाजा विवि ने इसे बंद करने का निर्णय लिया

हाई कोर्ट ने कहा था कि संस्थान अध्यादेश से पूर्व की तरह कार्य करता रहेगा

भारी भरकम धनराशि की जरूरत

पत्राचार संस्थान को चलाने के लिए एकमुश्त करोड़ों रुपए की भारी भरकम धनराशि चाहिए होगी। इनमें कर्मचारियों का वेतन, पेंशन आदि शामिल है। विवि के पास देनदारी की इतनी बड़ी धनराशि देने को नहीं है। ऐसे में यदि यूजीसी यह ग्रांट विवि को देती है तभी पत्राचार संस्थान संचालित हो सकता है। अन्यथा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की शरण भी ली जा सकती है।