यह दिखाने की कोशिश की है

एमएनपीएस ऑडिटोरियम में बांग्ला फिल्म ‘अलिक सुख’ प्रदर्शित की गई। निर्देशक शिबोप्रसाद मुखोपाध्याय व सह निर्देशक नंदिता राय ने ‘अलिक सुख’ (क्षणिक सुख) में यह दिखाने की कोशिश की है कि डाक्टरी के पेशे में जरा सी लापरवाही की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।
इस फिल्म में भी डॉ। किंशुक घोष अपनी सालगिरह पर पत्नी को तोहफे में फ्लैट देने के लिए इस कदर आतुर थे कि एक पेशेंट की प्रसव के दौरान मौत हो गई। वे बिल्डर के यहां कागजी कार्रवाई और फिर कोलकाता के ट्रैफिक जाम में ऐसे फंसे कि मरीज की ऑपरेशन थियेटर में मौत हो गई। परिजनों ने नर्सिंग होम में तोडफ़ोड़ तो मचाई ही, पेशेंट जब आत्मा के रूप में उनकी पत्नी रुमी (ऋतुपर्णो सेनगुप्ता) के इर्द-गिर्द मंडराना शुरू कर दिया तो रुमी और किंशुक का जीना भी हराम हो गया। निर्देशक ने डॉक्टरी में होने वाली लापरवाही और उसके नतीजे का खूबसूरत चित्रण किया है। जागरण फिल्म फेस्टिवल के सलाहकार अजीत राय ने बताया कि यह फिल्म कान फिल्म फेस्टिवल में भी प्रदर्शित हुई थी। प्रदर्शन के दौरान फिल्म के निर्देशक शिबोप्रसाद मुखोपाध्याय, सह निर्देशक नंदिता राय व फिल्म में कविता मंडल के पति का किरदार निभाने वाले विश्वनाथ बसु भी प्रेजेंट थे। फिल्म के बाद दर्शकों से उन्हें ढेरों बधाई मिलीं। मौके पर चीफ गेस्ट श्रीलेदर्स के मालिक शेखर डे और सीनियर थिएटर आर्टिस्ट धीरज जाना भी प्रेजेंट थे।

बयां कर रही है लोगों का दर्द
निर्देशक गौतम घोष की नई फिल्म ‘शून्य अंको’ झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाकों में उद्योग की स्थापना के नाम पर लगातार उजाड़े जा रहे जंगल, पहाड़ की वजह से होने वाले नुकसान, इससे बड़े पैमाने पर हो रहे विस्थापन, विस्थापित होने वाले लोगों के दर्द को बड़ी संजीदगी से बयान तो कर ही रही है, इसके साथ ही ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ और सच्चे विकास का खाका भी खींचती है। फिल्म ‘ट्राइबल बेल्ट’ के पिछड़ेपन का सवाल उठाने की कोशिश करती है जैसे महसूस होता है कि यह हमारा सबसे बड़ा और पहला सवाल है। फिल्मांकन इतना जबर्दस्त है कि दर्शक अपने आपको फिल्म के दृश्यों के बीच पाते हैं।


दैनिक जागरण ने छोटे शहरों में फिल्म फेस्टिवल का आयोजन कर बड़ा कदम उठाया है। हमलोग सिर्फ सुनते थे कि फिल्म फेस्टिवल होता है।
-जीतेंद्र

‘पतंग’ क्लासिक फिल्म है, इसके बारे में काफी कुछ सुना था, देखकर सपना सच हुआ।
-मो। नसीर


जागरण फिल्म फेस्टिवल का आयोजन कर दैनिक जागरण ने सार्थक पहल की है। यहां प्रदर्शित सभी फिल्म लीक से हटकर हैं और हमें सोचने को मजबूर करती हैं।  
-राम नरेश सिंह

पहली बार कोई फिल्म फेस्टिवल देखने आई हूं। जागरण फिल्म फेस्टिवल के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। यहां दिखाई जाने वाली फिल्म यथार्थ के काफी करीब हैं।  
-रीता देवी

जागरण का यह प्रयास सराहनीय है, क्योंकि टेल्को क्षेत्र में उसने आयोजन किया है। इससे टेल्को निवासियों को भी फिल्म फेस्टिवल में भाग लेने का मौका मिला।  
-शत्रुध्न सिंह

Report by : jamshedpur@inext.co.in