निगम ने नहीं ली सुध

जर्जर भवनों की जिम्मेदारों ने सालों से सुध नहीं ली। इन बिल्डिंग्स में रह रहे लोगों के मुताबिक, अधिकारियों ने जानकारी के बाद भी उनके एरिया में निरीक्षण नहीं किया। जबकि 1959 के अधिनियम के तहत नगर आयुक्त को रहने के लिहाज से खतरनाक भवनों को गिराने के लिए ओनर को नोटिस देने का अधिकार है। अगर दी गई समय सीमा में ओनर उस जर्जर हिस्से को नहीं गिराता है, तो नगर आयुक्त उसे गिराकर इसका खर्च ओनर से वसूल सकते हैं। 2 अप्रैल 2012 से 24 जून 2013 तक कुल 13 लोगों ने अपने जर्जर भवनों की लिस्ट निगम को दी। अधिकारी अभी तक इनकी फाइलों का रिकॉर्ड मेंटेन करने में ही व्यस्त रहे।

विवादित मामलों में मजबूर निगम

इन बिल्डिंग्स के केस में निगम के अधिकारियों की वर्किंग गैर जिम्मेदाराना रही है। वहीं कई ऐसे मामले भी हैं, जहां अधिकारी कार्रवाई नहीं कर पाते हैं। जर्जर भवनों के मामले में करीब 80 फीसदी भवन लावारिस हैं या फिर इसे लेकर ओनर और रेंटर में कानूनी जंग चल रही है। इन मकानों के रेंटर 50 से 70 सालों से यहां रह रहे हैं। कुछ में ओनर की मौत के बाद उसके वारिसों ने भवन लावारिस करार दिया। वहीं कई केसेज ऐसे भी हैं, जिसमें ओनर ने निगम से भवन को गिराने की एप्लीकेशन दी तो रेंटर ने कब्जा बना रहने के चलते कोर्ट में अर्जी दे दी। परिवार और बच्चों पर खतरे के बावजूद लोग मकान पर कब्जा बनाए रखना प्रिफर कर रहे हैं।

एक साल में कुछ नहीं बदला

जर्जर भवनों पर कार्रवाई के नाम पर निगम के जिम्मेदार साल भर से सो रहे हैं। पिछले साल जगाने पर इन जिम्मेदारों ने कार्रवाई की जिम्मेदारी अधिनियम में संशोधन के नाम पर बीडीए के पाले में डाल दी थी.  मेयर ने जर्जर भवनों को नोटिस दिए जाने और कार्रवाई की बातें भी कहीं। लेकिन साल भर बाद भी हालात ढाक के तीन पात जैसे ही रहे। बीते एक साल में जर्जर भवनों पर न तो कार्रवाई हुई और न ही अधिकारी इस साल इन्हें आईडेंटिफाई ही कर पाए।

'पिछले 38 सालों से यहां रह रहे हैं। कहीं और ठिकाना नहीं है इसलिए ओनर के छोड़ देने पर भी नहीं गए। निगम ने कुछ साल पहले कंप्लेन पर एक हिस्सा गिराया, लेकिन इस दौरान बाकी बिल्डिंग को भी काफी नुकसान पहुंचा। किराएदार की रसीद न होने से निगम में कंप्लेन भी नहीं कर सकते.'

- अनिल प्रताप सिंह, शेरसिंह बिल्डिंग, सुभाष नगर

'पिछले 60 सालों से इसी मकान में रह रहे हैं। पति इसी मकान में प्याउ में पानी पिलाने का काम करते थे। अब परिवार सहित इसी हालत में रहते हैं। मकान मालिक ने तो पहले ही कब्जा छोड़ दिया। निगम वालों ने भी कभी कोई नोटिस नहीं दी। अब जैसे भी हो यहीं रहेंगे.'

- मुन्नी, साहूकारा एरिया

'जर्जर मकानों को नोटिस भेजने का काम शुरू हो चुका है। अब तक करीब 35 लोगों को नोटिस भेजी जा चुकी है। कई मामले कोर्ट में हैं। ऐसे में दोनों पक्षों को होने वाले नुकसान का जिम्मेदार खुद होने की नोटिस भेज दी जाती है। निगम की टीम गठित की गई है, जो ऐसे मकानों का निरीक्षण करेगी। '

- उमेश प्रताप सिंह, नगर आयुक्त

'सिटी के जर्जर मकानों के मालिकों को नोटिस भेजे जाने की प्रोसेस शुरू हो चुकी है। ऐसे कई भवन विवादित है, जिन पर कोर्ट के आदेश तक निगम कोई कार्रवाई नहीं कर सकता। जो विवादित नहीं हैं, उन्हे नोटिस भेज रिपोर्ट डीएम को भेजी जा रही है। ऐसे मकानों को खाली कराने की जिम्मेदारी प्रशासन की है.'

- डॉ। आईएस तोमर, मेयर

'नगर निगम ठीक-ठाक बिल्डिंग को जर्जर भवन की नोटिस देकर ओनर से मोटा मुनाफा कमाने में पूरी तरह एक्टिव है। जबकि जर्जर भवनों के सही मामलों के लिए पूरी तरह उदासीन है। अपने सभासदी के पिछले 18 सालों के दौरान मैने एक बार भी निगम को जर्जर भवनों का आइडेंटीफाई करते नहीं देखा। '

- राजेश अग्रवाल, नेता,

सभासद दल