Lucknow: सतखण्डे से रानियों का चांद को देखना, नौबत खाने से गूंजती हुई सुबह शाम की आवाजें, चमकदार तालाब के पानी में घंटाघर और पिक्चर गैलरी के तैरते अक्स और उसी के किनारे पर सैर करते लोग, शान से खड़ा रूमी दरवाजा और उसके नीचे से गुजरते इक्के और तांगे, बड़े इमामबाड़े की छलकती हुई बाऊली
इस शहर से अन्जान लोगों को शायद यह बातें किताबी लगें, लेकिन कभी शहर का मिजाज ऐसा ही था। लेकिन अब तस्वीर बिल्कुल जुदा है। अब सतखण्डे पर चांद क्या शरीफ लोग इसके पास से गुजरने से डरते हैं क्योंकि यह अब जराइम का अड्डा बन चुका है। तालाब का चमकीला पानी काई और कूड़े से हरा हो चुका है। रूमी दरवाजा जहां कहने को ताला लगा है, लेकिन आशिक अपने दिल की बात दीवारों पर डंके की चोट पर लिख कर जाते हैं। धरोहर दिवस के मौके पर आई नेक्स्ट ने जाना शहर के हैरीटेज के अनकहे दर्द को।
नाम का है ताला
एक शहनशाह ने बनवाकर हंसी ताजमहल हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाकअक्सर यह शेर गरीब आशिकों की जुबान पर रहता है, लेकिन ताज महल की बड़ाई करने वाले किसी आशिक ने रूमी दरवाजे के सबसे ऊपर चढ़कर दीवारों पर इसे दर्ज कर दिया है। सिर्फ यही नहीं दरवाजों को फांद कर लोग उस पर चढ़ते हैं जबकि इस दरवाजे को ऊंची होती सड़क और हैवी ट्रैफिक ने पहले ही दरार दे दी है.
नीचे बने दरों में कहीं गाडिय़ां खड़ी कर दी गई हैं और कहीं मलबा ढेर है। दिन में यहां जानवर बैठते हैं तो शाम को जुआरी। पास ही में बने रूमी पार्क के केयर टेकर ने बताया कि लोग फांद कर ऊपर चढ़ते हैं और कई बार तो उन्हें शराब पीते भी देखा है। रैली हो या कोई जलसा बाहर से आने वाले लोग इस पर चढ़ते हैं और मनमाने तरीके से यहां की दीवारों पर कभी ना मिट पाने वाले निशान दे जाते हैं.
रूमी दरवाजा यह एक संरक्षित इमारत है.यहां यह बोर्ड तो लगा है और इसी बोर्ड के साये में गुटका और पंचर की दुकान फल फूल रही है।
अब तो टूरिस्ट भी पूछने लगे हैं
बड़े इमामबाड़े की भूलभुलैया के साथ यहां की बावली का भी अपना एक महत्व और इतिहास है। देश ही क्या विदेश से भी लोग यहां की इमारतों को देखने आते और सबके लिए बावली एक खास आकर्षण का केन्द्र थी। पिछले दो साल से रेनोवेशन के नाम पर बावली पर डाले गये पटरे बल्लियां आज तक नहीं हटे हैं। यहां टूरिस्ट को घुमाने वाले गाइडों से जब इस बारे में बात हुई तो उन्होंने यहीं कहा कि अब तो टूरिस्ट भी पूछने लगे हैं कि बावली का पानी कहां हैं। गाइड कहते हैं कि न ही रेनोवेशन का काम पूरा होता है और न पानी ही छोड़ा जा रहा है। बावली सूखी पड़ी है।
काम करने वाले ही करते हैं गलत काम
सन् 1842 में मोहम्मद अली शाह द्वारा बनवाई गई इस इमारत का नाम है सतखंडा जिसके सात खंड पूरे भी नहीं हो पाये थे। इटली की एक मशहूर इमारत की तर्ज पर बना यह सतखंडा आज नशेडिय़ों और जुआरियों का अड्डा बन चुका है। इन दिनों यहां कंस्ट्रक्शन चल रहा है। कुछ महीनों से काम के कारण दिन के हालात तो ठीक हैं, लेकिन रात में आज भी शराब पीने के लिए कुछ लोगों का यह फेवरेट ठिकाना है.
चारों तरफ कूड़े के ढेर में खड़ी इस इमारत में काम करने वाले एक लेबर के एकार्डिंग यहीं काम करने वाले काम के बीच से गायब होते हैं और अक्सर उन्हें मैंने गलत काम करते हुए देखा है। सालों से पास में ही दुकान चलाने वाले एक सज्जन का कहना है कि वैसे तो यहां जाने का रास्ता बंद है, लेकिन कोई ऐसा बुरा काम बचा नहीं है जो यहां होता न हो। यहां तक कि गुण्डे लड़कियों को उठा कर यहां लाते हैं।
टूट रहा है फाटक
छोटे इमामबाड़े से पहले पडऩे वाला गेट जिसे हुसैनाबाद का पहला फाटक बोलते हैं वो दूर से ही अपनी जर्जरता की कहानी बयां करता है। बनी हुई मीनार, गुम्बद यहां तक की छज्जा भी गिर चुका है। अब तो वहां से गुजरने वालों को खतरा भी हो सकता है। अब बात यहां से गुजरकर नौबत खाने की। यहां कभी शाही फरमान सुनाए जाते थे, दोनों वक्त नौबत बजा करती थी, लेकिन अब यहां दुकानें खुल चुकी हैं.
छोटे इमामबाड़े के बाहर भी दुकानों की लम्बी फेहरिस्त है। अब बात हुसैनाबाद के दूसरे फाटक की जो जगह-जगह से जर्जर हो रहा है और इसके नीचे दुकानें चल रही हैं। चप्पलों की दुकान तो कहीं पान की दुकान।
दीवारों पर नजर आ रहे हैं पेड़
शहर के हाईकोर्ट गेट के ठीक सामने नजर आने वाले खण्डहर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। चारों तरफ कंदीलों से रौशन बड़े-बड़े मेहराबी दरवाजे, बेशकीमती किताबों का खजाना और यहां लगने वाली बादशाह नसीरुद्दीन की बैठकें। चौड़े-चौड़े फाटकों पर दरबानों का साया। यूरोपियन स्टाइल में बनाई गई गुलिस्ताने इरम की रौनक कैसरबाग ही नहीं ब्रिटिश में भी मशहूर थीं और लोग इसे बादशाह नसीरुद्दीन की लाइबे्ररी की शक्ल में जानते थे.
कैसरबाग में इसका वजूद आज भी है, लेकिन न वो अहसास है और न वो रौनक। गेट पर चायवालों के ठेले हैं तो दीवारों पर उगे हुए पेड़ जो शायद इसकी बची हुई जिन्दगी के बहुत बड़ा खतरा बन सकते हैं। ज्यादातर हाल बंद पड़े हैं और कुछ हिस्से में स्वास्थ्य विभाग का स्टेशनरी डिपार्टमेंट है।
दीपक तले अंधेरा
इन धरोहरों के आगे बोर्ड लगे हैं कि यहां ध्रूमपान करना मना है, इमारतों की दीवारों पर लिखने के लिए जुर्माना है, यहां बैठ कर शराब पीना मना हैइस तरह के कई सख्त कनून भी बनाए गये लेकिन उनका नतीजा कुछ भी नहीं निकला क्योंकि कानून का कोई पालन नहीं किया गया। सूचना बोर्ड के नीचे ही वो सब कुछ हो रहा है जो करना मना है।
तरक्की की तस्दीक है हेरीटेज
 करीब तीस साल बाद लखनऊ आए इंटरनेशनल फेम के बंग्लादेशी कथक डांसर शिब्ली मोहम्मद ने यहां के हैरीटेज की हालत को देखकर यही कहा था कि डेवलपमेंट का मतलब यह नहीं होता कि हम अपनी संस्कृति और धरोहर को मिटा दें। कहा जा रहा है कि लखनऊ बहुत डेवलप हो गया, लेकिन जहां डेवलपमेंट होना था वहां मुझे नजर नहीं आया। हां जो हमारी धरोहरें हैं जिन्हें लोग विदेश तक से देखने आते हैं उन्हें मैंने बुरी दशा में देखा। जबकि विदेश में अपने हेरीटेज अपने पास्ट को लोग सहेज कर रखते हैं क्योंकि वहीं हमारी तरक्की की तस्दीक करती हैं।
क्या इन्हें बचाना नहीं चाहिए?
यह लखनऊ की चन्द इमारतों का जिक्र है, लेकिन शहर में कई ऐसी धरोहरें हैं जो नायाब हैं, लेकिन बस आखिरी सांसे ले रही हैं। भले ही यह किसी की नीजी सम्पत्ति हो, लेकिन यह हमारे शहर की धरोहर है। जाफर मीर अब्दुल्लाह कहते हैं कि अगर यह खण्हर भी दूसरे मुल्कों में होते तो लोग इन्हें टिकट लेकर देखते। वहीं इतिहासकार योगेश प्रवीन कहते हैं कि यह धरोहरें हमारे लिए बहुत कीमती हैं, लेकिन कोई समझ नहीं रहा है.
सवाल यह है कि आखिर क्यों इनसे नजर फेर ली गई है। न जाने कितने धरोहर दिवस आते हैं और निकल जाते हैं, कुछ कार्यक्रम होते हैं और बस साल भर की छुट्टी। हुसैनाबाद के दोनो फाटकों के बीच एक हाट बाजार बनाने की बात हुई थी, लेकिन आजतक कुछ नहीं हुआ। वहां दुकानों ने इमारत की खूबसूरती और एतिहासिक गम्भीरता को खत्म कर दिया है।