-कानून के चलते एंटी ह्यूमन टै्रफिकिंग युनिट भी नहीं डालती हाथ

-पूरे दिन मंदिरों के आसपास लोगों के सामने हाथ फैलाए दिखता है मासूम बचपन

ALLAHABAD: ये बच्चे न स्कूल जाते हैं और न ही इनकी हेल्थ का ध्यान देने वाला कोई है। ये दिन भर धूप में तपते हैं। पब्लिक के सामने हाथ फैलाते हैं। इन हाथों में कभी एक रुपया होता है तो कभी दो रुपए। कभी दुत्कार मिलती है और कभी गार्ड की लाठी। परिवार के पास इतना नहीं है कि इन्हें बेहतर जिंदगी दे सकें और सिस्टम है कि इन्हें बालश्रमिक भी मानने को तैयार नहीं है। अब कानून में इसे बालश्रम नहीं माना गया है तो भला ऑफिसर्स अपना गला यहां क्यों फसाएंगे? तो क्या ऐसे ही चलती रहेगी इनकी जिंदगी।

दुकान की नौकरी गई तो भीख मांगने लगे

सोनभद्र के बीजपुर से तीन साल पहले आए अमर रेकी पहले एक चाय की दुकान पर काम करता था। कुछ दिन पहले बालश्रम के नाम पर शॉप ओनर पर दबाव बना तो उसे हटा दिया गया। आई नेक्स्ट के पूछने पर उसने बताया कि घर में उसके पिता राजकुमार के अलावा मां और चार भाई व तीन बहने हैं। पिता लेबर हैं। वह पिता के कहने पर ही काम करता था। दुकान की नौकरी जाने के बाद कमाई का और कोई जरिया नहीं नजर आया तो भीख मांगने लगा। वैसे आई नेक्स्ट को सिविल लाइंस स्थित साई मंदिर के बाहर उसकी उम्र के कई बच्चे धूप में तपकर लोगों के सामने हाथ फैलाए दिखे। मजेदार है कि इससे वह दिन भर में ख्भ्0 से फ्00 रुपए तक जुटा लेते हैं। यह पैसा वे घर भेजते हैं ताकि बाकी भाई बहनों की जिंदगी सुधरे।

स्कूल जाने का बहुत मन करता है

अमर ने बताया कि वह भी स्कूल जाना चाहता है। पिता ने कभी एडमिशन ही नहीं कराया। परिवारवालों को दो वक्त की रोटी मिल जाए, इसके लिए काम पर लगा दिया। अमर का सबसे खास दोस्त जंजीर भी सोनभद्र का रहने वाला है। वह भी इसी काम में लगा है। वे पत्थर गिरजाघर के पास सड़क के किनारे रात गुजारते हैं और सुबह साई मंदिर तक आते हैं।

क्या है चाइल्ड लेबर एक्ट

सहायक श्रम आयुक्त एवं सहायक कल्याण आयुक्त अमित मिश्रा ने बताया कि चाइल्ड लेवर एक्ट में बालश्रमिक उन्हें ही माना गया है जिनकी उम्र क्ब् साल से कम हो और वे किसी दुकान या फैक्ट्री में काम करते हों। भीख मांगना इसके दायरे में नहीं आता। बालश्रम के मामले में सिविल व क्रिमिनल दो तरीके से कार्रवाई की जाती है। सिविल कार्रवाई के तहत ख्0 हजार रुपए प्रति बच्चे के हिसाब से रिकवरी होती है। क्रिमिनल मामलों में अधिकतम ख्0 हजार रुपए जुर्माना वसूला जाता है। साथ में तीन महीने से लेकर एक साल तक की सजा का प्रावधान है। क्रिमिनल मामले उन स्थानों पर लागू किए जताते हैं, जहां खतरनाक प्रक्रिया के अन्तर्गत कार्य किया जात है। उन्होंने बताया कि एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल और श्रम विभाग की ओर से चलाए गए संयुक्त अभियान में एक अप्रैल ख्0क्फ् से मार्च ख्0क्ब् तक फ्9 बच्चों को मुक्त कराया गया। एक अप्रैल से अब तक छह बच्चों को मुक्त कराया गया।

ऐसे बच्चों के पुर्नवास की है सुविधा

चाइल्ड लेबर एक्ट के अन्तर्गत मुक्त कराए गए बच्चों के पुर्नवास की सुविधा है। इसके अन्तर्गत जिस एरिया में पचास या उससे अधिक बच्चे मुक्त कराए जाते हैं, वहां उनके फैमली मेंबर्स को कई कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने के साथ ही बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल भी खोले जाते हैं। इलाहाबाद में ही सबसे अधिक ऐसे स्कूल यमुनापार एरिया में खोले गए हैं।

चाइल्ड लेबर रखते हैं तो ध्यान दें

आप भी अपने घर में किसी बच्चे से काम लेते हैं तो कुछ तथ्यों का ध्यान रखना आपके लिए जरूरी है।

उस बच्चे का स्कूल में एडमिशन आवश्यक है।

उसे वयस्क व्यक्ति के बराबर सैलरी देनी जरूरी है।

उससे छह घंटे से अधिक काम नहीं लिया जा सकता।

बाल श्रमिक रजिस्टर को लगातार मेंटेन रखना भी जरूरी है।

इसका पालन न होने पर किसी भी व्यक्ति के खिलाफ बालश्रम उन्मूलन एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

बच्चों से भीख मंगवाना एक सोशल इश्यू है। इसके लिए जरूरी है कि लोग स्वंय आगे आएं और ऐसी फैमिली को सपोर्ट करें। तभी इस सामाजिक समस्या का समाधान हो सकेगा।

अमित कुमार मिश्रा

सहायक श्रम आयुक्त एवं सहायक कल्याण आयुक्त