अब्दुल कदीर बलोच का 29 वर्षीय बेटा अब्दुल जलील रेकी 13 फरवरी 2009 को गायब हो गया था और उनके मुताबिक, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने उनका अपहरण किया था। बीते साल 22 नवंबर को ईरान की सीमा से सटे पाकिस्तानी इलाके मंद में अब्दुल जलील रेकी का क्षत-विक्षत शव मिला था।

अब्दुल कदीर ने बीबीसी से बातचीत करते हुए बताया, ''तीन गोलियाँ उनके सीने पर लगी थीं और उनकी पीठ का कोई हिस्सा खाली नहीं था जहाँ हिंसा के निशान न हों, लोहे को गर्म करके और सिगरेट से उनकी पीठ को दागा गया था जबकि बाँया हाथ और टाँग टूटी हुई थी.'' उन्होंने बताया कि उनके बेटे को इतने क्रूर तरीके से मारा गया था कि वो इससे ज़्यादा बयान ही नहीं कर सकते हैं।

बाप का दर्द

उनके मुताबिक़ अब्दुल जलील का पाँच वर्षीय बेटा अब्दुल रफीक दिल की बीमारी का शिकार है। उन्हें बताया गया था कि उनके पिता कहीं गए हुए हैं और जब शव घर आया तो उन्होंने पूछा कि ये किसका शव है?

उन्होंने कहा, ''मैंने अपने दिल पर हाथ रख कर अब्दुल रफीक को उनके पिता का शव दिखाया तो उन्होंने पूछा कि मेरे पिता को किसने मारा है। मैंने कहा कि पाकिस्तानी एजेंसियों और सेना ने उनकी हत्या की है.''

वे कहते हैं, ''रफीक ने पूछा कि मेरे अब्बू की आँख किसने घायल की है, मैंने कहा कि बेटा तेरे पिता को आईएसआई वालों और फौजियो ने मारा है۔''

अब्दुल कदीर बलोच के रिश्तेदारों ने उन्हें काफ़ी रोका कि मासूम बच्चे को यह सब कुछ मत बताओ, लेकिन उन्होंने रोकने के बावजूद भी बताया।

उन्होंने कहा, ''मैंने अपने छोटे पोते को इसलिए बताया कि अभी से उनके दिल में पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियों के लिए नफरत पैदा हो ताकि वो बड़े होकर ज़हनी तौर पर तैयार हो.''

अब्दुल कदीर बलोच 14 फरवरी 2009 से पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसियों के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे है और जब नवंबर 2011 में उनके बेटे का शव मिला तो उनका विरोध समाप्त नहीं हुआ।

'सैंकड़ों लोग अभी भी गायब'

उनके मुताबिक बलूचिस्तान के 14 हज़ार के करीब लोग अभी भी गायब है और वे उनकी रिहाई के लिए संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि जलील रेकी की तरह 14 हज़ार लोग उनके बेटे हैं।

वॉइस फॉर मिसिंग पर्सन्स नामक संस्था का कहना है कि 2004 से लेकर अब तक बलूचिस्तान के करीब 14, 362 लोग गायब हैं, जिनमें 200 से अधिक महिलाएँ भी हैं और तमाम लोग अवैध रुप से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों की हिरासत में हैं।

25 वर्षीय फरजाना मजीद बलोच अपने भाई जाकिर मजीद बलोच की रिहाई के लिए विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। उनके भाई को नौ जून 2009 को बलूचिस्तान के जिला मस्तोंग से अगवा किया गया था।

फरजाना के मुताबिक, खुफिया एजेंसी आईएसआई के अधिकारियों ने उन्हें गैर कानूनी तौर पर हिरासत में लिया है और उनका कुछ पता नहीं चल रहा है कि वो कहाँ हैं।

उन्होंने एम.ए। की पढ़ाई की है और अब पीएचडी में दाखला लिया है, लेकिन भाई की रिहाई के लिए लगातार कोशिश करने से उनकी पढ़ाई भी काफी प्रभावित हो रही है।

उन्होंने कहा, ''मेरी माँ बहुत बीमार हैं और पिछले कई दिनों से लगातार बलोच लोगों के क्षत-विक्षत शव मिल रहे हैं। उनकी वहज से वह काफी परेशान हो जाती हैं कि कहीं उनके बेटे का भी कभी इस तरह शव न मिले.''

'नई पीढ़ी का खात्मा'

उन्होंने बताया कि जान-बूझकर बलोच लोगों की नई पीढ़ी को खत्म किया जा रहा है और यह सिलसिला तब से जारी है जब से बलूचिस्तान पाकिस्तान का प्रांत बना है।

22 वर्षीय जरीना बलोच के भी यही विचार थे और उन्होंने अपने भाई के नमाजे जनाज़ा में भाग लेने के बजाए कराची प्रेस क्लब के सामने बलूचिस्तान के लोगों की रिहाई के लिए विरोध प्रदर्शन को प्राथमिकता थी।

दो दिन पहले उनके भाई सना संगत का शव मिला था जिस पर हिंसा के निशान साफ नजर आते थे। वह दो साल पहले गायब हो गए थे।

ग़ौरतलब है कि पूर्व राष्ट्रपति और सैन्य शासक परवेज़ मुशर्रफ ने 2004 में बलूचिस्तान में अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे बलोच लोगों के खिलाफ सैन्य अभियान की घोषणा की थी और उसी के बाद से प्रांत के लोग गायब होना शुरु हुए थे।

वर्ष 2006 में पाकिस्तानी सेना ने अभियान चलाकर बलूचिस्तान के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री नवाब अकबर बुगटी की हत्या की थी, उसके बाद से बलोच लोगों के आंदोलन में तेज़ी आई थी।

बलूचिस्तान का मुद्दा आजकल काफी चर्चा में है और अमरीका के वरिष्ठ सांसद ने प्रस्ताव दिया है कि बलूचिस्तान के लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार मिलना चाहिए, जिसकी पाकिस्तानी सरकार ने कड़ी आलोचना की है और इसे उसकी संप्रभुत्ता पर हमला करार दिया है।

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